Saturday 1 September 2018

तारीफ में कंजूसी कैसी

मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर अपने बयानों के लिये काफी चर्चित रहते हैं। गत दिवस भोपाल में छिंदवाड़ा के विकास संबंधी एक पुस्तक के विमोचन पर उन्होंने पूर्व केन्द्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि भोपाल को नर्मदा का पानी कमलनाथ की वजह से मिला। उल्लेखनीय है श्री नाथ छिंदवाड़ा के सांसद भी हैं। श्री गौर के अनुसार केन्द्रीय मंत्री के रूप में कमलनाथ ने भोपाल सहित प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिये हर संभव सहायता दिलवाई थी। विधानसभा चुनाव के चंद महीनों पहले भाजपा के वरिष्ठतम नेता द्वारा कमलनाथ की प्रशंसा करने का राजनीतिक परिणाम सर्वविदित है और इसीलिये उनकी पुत्रवधु तथा भोपाल की पूर्व महापौर कृष्णा गौर ने ही ससुर साहेब के बयान से अहसमति व्यक्त कर दी। भाजपा इसे उनकी निजी राय कहकर पल्ला झाड़ सकती है किन्तु श्री गौर ने एक गैर राजनीतिक समारोह में यदि विरोध पक्ष के किसी नेता के अच्छे काम की प्रशंसा कर दी तो इसे सामान्य तौर पर लिया जाना चाहिए। कांग्रेस की नीतियों के बारे में तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। कमलनाथ की व्यक्तिगत प्रशंसा यदि तथ्यों पर आधारित है तो उसे सहज रूप में लिया जाना चाहिए। संघीय सरकार का एक मंत्री यदि राज्य की किसी परियोजना के लिये धन उपलब्ध कराए तो ये उसका कत्र्तव्य है वहीं सैद्धांतिक विरोध के बावजूद यदि राज्य का मंत्री रहा नेता उस सहयोग की खुलकर प्रशंसा करे तो ये उसकी सौजन्यता है जो संघीय ढाँचे और लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। यूं भी गौर साहेब उम्र के जिस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं उसमें इस तरह की स्पष्टवादिता अनपेक्षित नहीं है। बेहतर हो अन्य नेता भी उनसे पे्ररणा लें। यदि किसी ने कोई सराहनीय कार्य किया है तो फिर तारीफ में कंजूसी कैसी। फिर चाहे वह राजनीतिक तौर पर विरोधी ही क्यों न हो?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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