Monday 24 September 2018

रॉफेल : प्रधानमंत्री को देश से मुखातिब होना चाहिए



फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने शुक्रवार को सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करते हुए कांग्रेस के इस आरोप को सही ठहरा दिया कि राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायंस को हिस्सेदारी देने के लिए भारत सरकार ने दबाव डाला था जिसके बाद विमान निर्माता कम्पनी  दसॉल्ट  के पास कोई और विकल्प नहीं बचा था। कुछ पत्रकारों को दिए साक्षात्कार में ओलांद ने ज्योंही उक्त जानकारी दी भारतीय राजनीति में  बवाल मच गया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो प्रधानमंत्री के लिए पहले घुमा फिराकर और फिर सीधे - सीधे चोर जैसा शब्द इस्तेमाल किया। पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति के बयान के बाद राफेल सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर लगाए जा रहे आरोप सत्य होते लगे। लेकिन अगले दिन शनिवार को ओलांद का दूसरा बयान प्रसारित हुआ जिसमें उन्होंने अपने पहले बयान से थोड़ा हटते हुए कहा कि भारत सरकार ने अनिल अंबानी को हिस्सेदार बनाने कहा या नहीं ये उन्हें नहीं पता। इस बारे में दसॉल्ट कम्पनी ही पक्के तौर पर कुछ बता सकती है। उन्होंने फ्रांस सरकार की अनभिज्ञता भी इस बारे में उजागर की। उनके इन विरोधाभासी बयानों के बीच फ्रांस सरकार ने भी इस विवाद से पल्ला झाड़ते हुए कहा दिया कि दसॉल्ट और अम्बानी की कंपनी के बीच हुए करार से उसे कोई लेना - देना नहीं है। इस बयान से केंद्र सरकार और भाजपा राहत महसूस कर पाती इसके पहले ही कांग्रेस और आक्रामक हो गई और उसने संसदीय जांच समिति बनाने का दबाव बढ़ा  दिया। साथ ही आज वह सतर्कता आयोग भी जा रही है। इस समूचे विवाद में देखने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री जिन पर पूरा हमला हो रहा है वे अब तक शांत हैं। सरकार की तरफ  से बचाव की जिम्मेदारी रक्षा, कानून और वित्त मंत्री संभाले हुए हैं जबकि राहुल सहित भाजपा विरोधी अन्य पार्टियों ने भी प्रधानमंत्री से सफाई की मांग की है। हालांकि कांग्रेस ने अब तक जितने भी आरोप लगाए वे नये नहीं हैं किन्तु लगातार उनको दोहराए जाने के बावजूद न तो भाजपा और न ही केंद्र सरकार उन्हें गलत साबित कर पा रही है। राहुल गांधी की मजबूरी ये है कि इस मामले में वे इतना आगे बढ़ आए हैं कि पीछे लौटना उनके लिए आत्मघाती होगा। दूसरी तरफ  भाजपा के लिए भी इस मुसीबत से छुटकारा पाना जरूरी है क्योंकि भले ही रॉफेल में हुआ घोटाला साबित न हो पाए किन्तु जिस तरह बोफोर्स घोटाले का आरोप स्व.राजीव गांधी के राजनीतिक पराभव का कारण बना वैसे ही रॉफेल 2019 में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की वजह बन सकता है। इस समूचे विवाद में भाजपा और केंद्र सरकार दोनों का बचाव पक्ष बेहद कमजोर है। विमान की कीमत उतना बड़ा मुद्दा शायद नहीं बनता यदि दसॉल्ट कम्पनी भारत में अपने कारोबारी सहयोगी में रूप में अनिल अंबानी को न चुनती। राहुल का मुख्य आरोप भी यही है कि सरकारी क्षेत्र की एचएएल को दरकिनार करते हुए रिलायंस डिफेंस को हजारों करोड़ का काम क्यों दिलवा दिया ? ओलांद के प्रारम्भिक खुलासे में भी ये बात सामने आई कि भारत सरकार के दबाव में अनिल अंबानी को रक्षा उत्पादन में अनुभवहीनता के बाद भी उक्त व्यवसाय दिलवाया गया। चूंकि सौदे को अंतिम रूप देने अनिल भी श्री मोदी के साथ फ्रांस गए थे इसलिए उक्त आरोप को सहसा अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता। यद्यपि फ्रांस सरकार ने ओलांद की बयानबाजी को किसी के लिए फायदेमंद नहीं बताकऱ  भारत सरकार की मदद का प्रयास किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी और ओलांद के बीच जुगलबंदी का आरोप लगाकर मामले को दूसरा मोड़ देने की कोशिश भी की है लेकिन अभी तक उसे लेकर जनमानस आश्वस्त नहीं हो सका है। उल्लेखनीय है ओलांद भी पिछला चुनाव हारकर विपक्ष में है। भाजपा ने ये आरोप भी लगाया कि कमीशन नहीं मिल पाने से ओलांद ने ये विवाद उत्पन्न किया। सच्चाई क्या है ये कोई नहीं बता सकता क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर सच्चाई सामने आती ही नहीं। रक्षा सौदों में यूँ भी गोपनीयता को बनाकर रखा जाता है। भारत सरकार भी इसी की आड़ लेकर रॉफेल सौदे का विवरण सार्वजनिक करने से पीछे हटती रही है जिससे कांग्रेस को अपना आरोप दोहराने का मौका मिलता जा रहा है। लेकिन अब ये विवाद जिस मोड़ पर आ गया है उसमें  प्रधानमंत्री को मौन तोडऩा होगा या फिर कोई ऐसा दस्तावेजी प्रमाण सामने लाना पड़ेगा जो राहुल के आक्रमण को निष्प्रभावी करते हुए उन्हें झूठा साबित कर सके। जब तक वे ऐसा नहीं कर पाते तब तक विपक्ष को हमले के अवसर मिलते रहेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री की शैली इस तरह के मामलों में मौन रहने की रही है किन्तु ये विवाद अलग हटकर है  जिसमें उनकी साख ही नहीं भाजपा की भावी संभावनाएं भी दांव पर लगी हैं। न्यायशास्त्र के अनुसार केवल आरोप लगने से किसी पर दोष सिद्ध नहीं हो जाता लेकिन ये भी सही है कि जिस पर तोहमत लगती है उसका भी फर्ज है कि वह अपनी सफाई में ऐसा कुछ कहे जिससे न केवल आरोप बेअसर हों बल्कि उन्हें लगाने वाले की बदनीयती भी सामने आ सके। फिलहाल ये मान लेना तो जल्दबाजी होगी कि जो कुछ भी राहुल और बाकी विपक्षी पार्टियां कह रही हैं वह पूरी तरह सच है किंतु साथ-साथ ये भी  मान लेना सही नहीं होगा कि रॉफेल सौदे में हुए उच्च स्तर के भ्रष्टाचार के आरोप पूर्णत: गलत हैं। कुल मिलाकर ये प्रकरण मोदी सरकार के गले की फांस तो बन ही गया है भाजपा के लिए भी चक्रव्यूह समान है जिसे छिन्न-भिन्न करते हुए वह सुरक्षित निकलती है या फिर अभिमन्यु की गति को प्राप्त होती है ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन समय और परिस्थितियों का तकाजा है कि प्रधानमंत्री सामने आकर राहुल गाँधी या विपक्ष से नहीं अपितु देश से मुखातिब होकर अपना पक्ष रखें। हो सकता है वे इस हमले का जवाब देने के लिए किसी रणनीति के तहत सही समय की प्रतीक्षा कर रहे हों किन्तु उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए कि समय उनके हाथ से निकल न जाए। अनुभव बताते हैं कि  देर से लिया सही निर्णय भी गलत हो जाता है और फिर रॉफेल विवाद बुद्धिविलास तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गया है। रक्षा से जुड़ा होने से इसका महत्व और संवेदनशीलता और बढ़ गई है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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