Thursday 20 September 2018

मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने सब साथ आएं


आखिर केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिये मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक़ प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध ठहराने और उस संबंध में कानून बनाये जाने के निर्देश के बाद लोकसभा ने विधेयक पारित करते हुए तीन तलाक़ पर रोक लगाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए थे जिसे कांग्रेस सहित लगभग सभी दलों का समर्थन मिला किन्तु जब वही विधेयक राज्यसभा में लाया गया तब कांग्रेस ने कुछ संशोधन लाकर उसे अटका दिया। इधर भाजपा को लग रहा था कि यदि लोकसभा चुनाव के पहले वह इसे संसद की मंजूरी नहीं दिलवा सकी तो मुस्लिम महिलाओं के बीच उसकी लोकप्रियता बढऩे का सिलसिला रुक जाएगा। यूँ भी भाजपा पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगने लगे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंदौर जाकर दाउदी बोहरा समाज के प्रमुख से गले मिलने और दिल्ली में रास्वसंघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत का मुसलमानों के बिना भारत में  हिंदुत्व की कल्पना नहीं करने जैसे बयान से ये एहसास प्रबल हुआ कि एक तरफ  राहुल गांधी कांग्रेस को सौम्य हिंदुत्व की राह पर ले जा रहे हैं वहीं संघ परिवार और भाजपा मुसलमानों को रिझाने की धुन में अपने मूल सिद्धांतों से भटक रहे हैं। लेकिन गत दिवस जब संघ प्रमुख का मुसलमानों के प्रति नर्म समझा जाने वाला बयान समाचारों की सुर्खियां बना तभी केंद्रीय मंत्रीपरिषद ने तीन तलाक़ रोकने संबंधी अध्यादेश को मंजूरी दी और रात तक खबर आ गई कि राष्ट्रपति ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह देश में तीन तलाक़ पर रोक लगाने का कानून लागू हो गया। कांग्रेस ने बिना देर किए इसे राजनीति प्रेरित बताया तो असदुद्दीन ओवैसी ने इससे मुस्लिम महिलाओं के साथ अत्याचार बढऩे की आशंका व्यक्त कर दी। उप्र से बहरहाल शिया धर्मगुरु ने जरूर समर्थन का बयान दे दिया। अध्यादेश जारी करने का समय निश्चित रूप से राजनीतिक दृष्टि से काबिले गौर है। आगामी दिसम्बर में संसद का शीतकालीन सत्र और उसके बाद अंतिम सत्र लेखानुदान पेश करने के लिए होगा। नवम्बर में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मप्र के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उनके परिणाम लोकसभा चुनाव पर असर डालेंगे ये भी तय सा है। ये देखते हुए कहा जा सकता है भाजपा ने इस फैसले से कई निशाने एक साथ साधे हैं। चूंकि छह महीने में अध्यादेश को पारित करवाना जरूरी होता है इसलिए सरकार आखिरी सत्र में इसे राज्यसभा में पेश कर कांग्रेस के सामने दुविधा उत्पन्न करेगी। यदि कांग्रेस विधेयक को गिरवा देती है तब मुस्लिम महिलाओं के बीच उसकी छवि कठमुल्ला समर्थक की बनेगी वहीं हिंदू मतदाताओं के बीच ये संदेश जाएगा कि राहुल गांधी भले ही हिंदुत्व का दिखावा कर रहे हों लेकिन कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को छोड़ नहीं पा रही। भाजपा को  लग रहा है वह इसके जरिये मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति प्राप्त होने के साथ ही हिन्दू समाज को ये समझाने में सफल हो सकेगी कि वह मुस्लिम समाज के कट्टरपंथियों के सामने झुकने को तैयार नहीं है। लेकिन इससे भी हटकर ये कानून चूंकि मुस्लिम समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति में सुधार लाने में मददगार साबित होगा इसलिये इस विधेयक का कांग्रेस सहित शेष विरोधी दलों को खुलकर समर्थन करना चाहिए। यदि वे अभी भी ढुलमुल रवैया अपनाए रहे तो फिर निश्चित रूप से भाजपा उसका राजनीतिक लाभ उठाने से बाज नहीं आएगी। वैसे भी महिला सशक्तीकरण के प्रति आम राजनीतिक सहमति होने के कारण मुस्लिम महिलाओं को भी मुख्यधारा में लाने का सामूहिक प्रयास समय की मांग है। उल्लेखनीय है कि तीन तलाक़ के विरुद्ध अदालती लड़ाई भी पीडि़त मुस्लिम महिलाओं ने ही शुरू की और विजय प्राप्त की। उस फैसले के पक्ष में मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह खुलकर अपनी खुशी व्यक्त की वह भी एक क्रांतिकारी बदलाव कहा जायेगा। मुस्लिम समुदाय में भी जो सुशिक्षित और प्रगतिशील तबका है वह भी मानता है कि तीन तलाक़ की प्रचलित प्रथा शरीया के अनुरूप नहीं है। ये सब देखते हुए तीन तलाक़ पर रोक लगाने के प्रयास को सर्वदलीय समर्थन मिलना चाहिए। कांग्रेस को यदि लगता है कि भाजपा इसका राजनीतिक फायदा उठाएगी तो वह पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इस स्थिति को बनाने के लिए भी वही जिम्मेदार है। यदि राज्यसभा में कांग्रेस विधेयक का विरोध नहीं करती तब वह भी इसके श्रेय में बराबरी का हिस्सेदार बनती लेकिन अभी भी बाजी उसके हाथ से पूरी तरह नहीं निकली है। उसे चाहिए बजाय आलोचना के वह अध्यादेश का समर्थन करते हुए उसे अगले सत्र में पारित करवाने की बात कहे जिससे मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप से उसे मुक्ति मिल सके। राहुल गांधी की हालिया गतिविधियां हिंदुत्व के प्रति उनके झुकाव को तो प्रदर्शित कर रही हैं किंतु तीन तलाक़ पर रोक लगाने संबंधी कानून में अड़ंगे लगाने की नीति  हिंदुत्व के प्रति उनके रुझान पर सवालिया निशान लगा देगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अध्यादेश को सर्वदलीय समर्थन मिलेगा क्योंकि मुस्लिम महिलाओं की दुरावस्था को दूर करने का ये बेहतरीन मौका है जिसकी सफलता से और भी रास्ते खुलेंगे। यूँ भी 21 वीं सदी में सदियों से चली आ रही रूढिय़ों को जबरन ढोने का कोई औचित्य नहीं है। रही बात मुस्लिम समाज के मुल्ला-मौलवियों के विरोध की तो उन्हें दरअसल ये भय सता रहा है कि तीन तलाक़ पर रोक लगने के बाद हलाला सदृश कुरीति को रोकने संबंधी कानून भी बन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय उस पर भी विचार कर रहा है। इस बारे में देश के विभिन्न हिस्सों से जो खबरें मिलती रहीं हैं उनको पढऩे या सुनने के बाद  कोई भी विवेकशील व्यक्ति तीन तलाक़ और हलाला जैसी प्रथाओं को जारी रखने का समर्थन नहीं करेगा। यूँ भी इस तरह के मामलों पर  वोटों की राजनीति से ऊपर उठकर ही विचार होना चाहिए ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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