Thursday 18 October 2018

पत्रकार बिरादरी पर पैसे और ग्लैमर की काली छाया

विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर का मंत्री पद से त्यागपत्र पूरी तरह अपेक्षित था। सरकारी विदेशी दौरे की वजह से वे बचे रहे वरना मी टू का आरोप लगते ही उनकी छुट्टी हो जाती। दूसरी वजह उनका मुस्लिम होना भी था। भाजपा नेतृत्व ने उनको मंत्री पद से हटाने में तीन दिन शायद इसीलिए लगाए जिससे मुस्लिम समुदाय को ये कहने का अवसर न मिले कि पार्टी उनके साथ भेदभाव करती है। जब ये लगा कि श्री अकबर पूरी तरह से घिर गए हैं तथा इसके आगे उन्हें मोहलत देना उनकी बदनामी का बोझ अपने सिर पर लेना होगा तब उनकी छुट्टी करवा दी गई। उसके पहले वे आरोप लगाने वाली पहली महिला पत्रकार पर अवमानना का मुकदमा दर्ज करवा चुके थे। बावजूद इसके जब उन पर आरोपों की मूसलधार बरसात बंद नहीं हुई तब मजबूरीवश उन्होंने मंत्री पद त्यागने का कदम उठाया। खबर ये है कि श्री अकबर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भेंट के बाद तत्संबंधी फैसला लिया। इसीलिए ये कहा जा रहा है कि श्री अकबर का त्यागपत्र प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर हुआ। मी टू नामक इस अभियान में ये पहला शिकार कहा जायेगा क्योंकि बाकी सभी आरोपी गैर सरकारी शख्सियतें हैं। विदेश राज्यमंत्री के त्यागपत्र को विपक्ष अपनी जीत बता रहा है। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के एन पहले इस मुद्दे से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को भाजपा पर हमला करने का एक मुद्दा और मिल गया। श्री अकबर ने आरोप लगाने वाली महिला पत्रकार को अदालत में घसीटकर जो आक्रामक रुख विदेश से लौटते ही दिखाया वह कितना कारगर होगा ये कहना बेहद कठिन है क्योंकि लगभग  दर्जन महिलाओं द्वारा श्री अकबर पर उत्पीडऩ के आरोप लगाए जाने पर अदालत के लिए उन्हें आसानी से छोड़ देना आसान नहीं होगा। रही बात श्री अकबर की राजनीतिक छवि और बतौर पत्रकार उनकी छवि की तो देखने वाली बात ये रहेगी कि वे खुद मंत्री पद त्यागने के बाद सार्वजनिक तौर पर किस तरह पेश आते हैं? क्योंकि पत्रकार बिरादरी में उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने से उनके लिए सीधे पत्रकारिता में लौटना तो मुश्किल होगा। कोई बड़ा मीडिया हाउस भी उनकी सेवाएं लेने का दुस्साहस नहीं करेगा। बतौर स्वतंत्र पत्रकार या स्तम्भ लेखक के रूप में भी उनकी  स्वीकार्यता पूर्ववत नहीं रहेगी। इसका कारण एक तो उन पर लगा भाजपा का ठप्पा होगा दूसरी बात चूंकि उनके चरित्र पर एक नहीं अपितु दर्जनों उंगलिया एक साथ उठ गईं इसलिए अदालत से जीत जाने के बाद भी वे पहले जैसा सम्मान शायद ही हासिल कर पाएंगे। भारतीय समाज की सोच इस बारे में बेहद परंपरावादी है। आर्थिक भ्रष्टाचार को तो वह नजरअंदाज कर देता है। आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को भी जनता का समर्थन प्राप्त हो जाता है लेकिन जब बात यौन अपराधों या छेड़छाड़ जैसे मामलों की हो तब नैतिकता लोगों पर हावी होने लगती है। यही वजह है कि बिना किसी दस्तावेजी प्रमाण के लगाए गए दशक - डेढ़ दशक पुराने आरोपों पर देश के दिग्गज पत्रकारों में शुमार रहे श्री अकबर की चौतरफा थू-थू हो गई। वैसे इसका एक कारण उनका भाजपाई हो जाना भी बना वरना जिन आरोपों की बौछार उन पर हुई उनके बारे में समाचार जगत इतना अनभिज्ञ नहीं होता जितना दर्शाया गया। उन घटनाओं के बाद भी वे सियासत से जुड़े किन्तु कांग्रेस के साथ। खैर आगे जो भी हो लेकिन एक और प्रसिद्ध पत्रकार विनोद दुआ भी लपेटे में आये किन्तु पत्रकार बिरादरी ने उन पर वैसे हमले नहीं किये जैसे श्री अकबर पर हुए। हालांकि मी टू अभियान ने फिल्म जगत के साथ ही समाचार जगत में आई चारित्रिक गिरावट को जगजाहिर कर दिया। दूसरों की टोपी उछालकर आत्मगौरव की अनुभूति करने वाली पत्रकार बिरादरी केवल श्री अकबर के त्यागपत्र से संतुष्ट हो जाएगी या फिर वह अपने बीच चल रही अनैतिक गतिविधियों पर से भी पर्दा हटाएगी इस पर सभी की निगाहें हैं क्योंकि अब पत्रकारिता मिशन से निकलकर ग्लैमर और धनोपार्जन के मोहजाल में फंस चुकी है। और जहां ग्लैमर और पैसा है वहां क्या-क्या होता है ये बताने की जरूरत नहीं है। उस लिहाज से अग्निपरीक्षा केवल आरोपी पत्रकारों को नहीं पूरी पत्रकारिता को देने की जरूरत महसूस होने लगी है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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