Monday 1 October 2018

लखनऊ कांड : सम्वेदनशीलता के साथ जिम्मेदारी का भाव भी जरूरी


दो दिन पहले लखनऊ में आधी रात के समय कार में जा रहे एक निजी कंपनी के अधिकारी की पुलिस की गोली से हुई मौत बेहद दर्दनाक और शर्मनाक घटना है। गोली मारने वाले पुलिस कर्मी की ये सफाई किसी के गले नहीं उतर रही कि मृतक विवेक तिवारी ने रोके जाने पर गाड़ी नहीं रोकी उल्टे उसे अपनी कार से कुचलने का प्रयास किया जिस पर आत्मरक्षार्थ उसने गोली चला दी। घटना के समय मृतक के साथ उसकी एक महिला सहकर्मी भी थी जिसे वे उसके घर छोडऩे जा रहे थे और इसकी जानकारी विवेक ने कुछ देर पहले ही अपनी पत्नी को फोन पर दी भी थी। उक्त घटना से उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अपराधियों के सफाये की जो मुहिम चलाई गई उस पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सत्ता संभालते ही श्री योगी ने पुलिस को कुख्यात अपराधियों के एनकाउंटर की जो छूट दी उससे बड़ी संख्या में अपराधियों ने आत्मसमर्पण किया और जो नहीं आये उन्हें पुलिस ने तलाशकर मौत की नींद सुला दिया। इस मुहिम का अच्छा असर हुआ। अपराधी तत्वों में कानून-व्यवस्था के प्रति भय बढ़ा वहीं आम नागरिक भी स्वयं को सुरक्षित अनुभव करने लगा लेकिन इसका नकारात्मक असर ये पड़ा कि पहले से ही कुख्यात उप्र की पुलिस और निरंकुश हो गई तथा अनेक फर्जी एनकाउंटर की खबरें भी आईं। हालिया घटना भी उसी का परिणाम कही जा सकती है क्योंकि आधी रात के समय किसी कार में किसी पुरुष और महिला का साथ होना और रोकने पर गाड़ी की गति तेज कर भागने से ऐसा कुछ भी साबित नहीं होता जिससे विवेक की हत्या का औचित्य साबित किया जा सके। ऐसी घटना के बाद जैसा आजकल का चलन हो गया है परिजन समाचार माध्यमों के जरिये शासन-प्रशासन पर दबाव बनाते हैं और मुआवजे के तौर पर मोटी राशि के साथ सरकारी नौकरी भी मांगते हैं। विवेक की पत्नी ने भी बिना एक पल गंवाए उप्र सरकार के 25 लाख और नौकरी की पेशकश ठुकराते हुए सीधे एक करोड़ और नौकरी की मांग रख दी। ये ऐसा मुद्दा है जिसमें व्यवहारिकता और भावनाओं के बीच द्वंद चलता है। समय के साथ सब सामान्य भी हो जाता है लेकिन इस तरह के हादसे के बाद उप्र की पुलिस की चाल, चरित्र और चेहरा बदल जाने की उम्मीद करना सिवाय बेवकूफी के और कुछ भी नहीं होगा। ये पहला मौका नहीं है जब इस राज्य के पुलिस बल ने इस तरह की बर्बरता की हो किन्तु इससे योगी सरकार की साख और धाक दोनों को जबरदस्त धक्का लगा है। अपराधियों के विरुद्ध सख्ती बरतने की एक साहसिक और सराहनीय पहल व्यवस्थाजनित विसंगतियों की शिकार होकर कलंकित हो गई। मृतक की अंत्येष्टि हो गई। देर सवेर मुआवजे की राशि और सरकारी नौकरी का विवाद भी सुलझ जाएगा लेकिन विवेक वापिस नहीं आएगा। इस घटना के बाद भी पुलिस-प्रशासन और सत्ता में बैठे हुक्मरानों में प्रायश्चित का भाव आए ये कहीं से भी नहीं लगता और यही सबसे बड़ी विडंबना है। ऐसे मामलों में सियासत का गंदा खेल भी अशोभनीय लगता है। उप्र की कानून व्यवस्था और सरकारी नीतियों की आलोचना करना विपक्ष का कर्म और धर्म दोनों है लेकिन दिल्ली के सुशिक्षित मुखयमंत्री अरविंद केजरीवाल का ये बयान न सिर्फ  निंदनीय अपितु निम्नस्तरीय भी कहा जायेगा जिसमें उन्होंने उप्र सरकार पर हिन्दू को मारने जैसा आरोप लगाया। वैसे श्री केजरीवाल के बयानों में शालीनता का अक्सर अभाव ही नजर आता है लेकिन लखनऊ की घटना पर मृतक के धर्म का उल्लेख करना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। बेहतर हो समूची व्यवस्था में सम्वेदनशीलता के साथ जिम्मेदारी का भाव भी उत्पन्न हो क्योंकि उसके बिना इस तरह की घटनाओं को रोकना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी होगा। उप्र के कतिपय मंत्रियों के बयान भी इस संबंध में बेहद अफसोसनाक रहे जिससे पता चलता है कि उनके भीतर छिपी मानवीयता का स्तर कितना कम है। हमारे देश में पुलिस, प्रशासन और पॉलिटीशियन (राजनेताओं) के गठजोड़ ने समूची शासन व्यवस्था को निरंकुश और निर्मोही बना दिया है। किसी की जान की कीमत मुआवजे से नहीं आंकी जा सकती। जिस पुलिस कर्मी ने विवेक की जान ली उसे अपनी बेगुनाही साबित करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए और उसकी बातों की भी गंभीरता से विवेचना जरूरी है। जांच एसआईटी को दे दी गई है। पीडि़त परिवार के दबाव डालने पर सीबीआई की जांच भी करवाने का आश्वासन राज्य सरकार ने दिया है। घटनास्थल पर लगे सीसी कैमरे भी मददगार रहेंगे तथा मृतक के साथ कार में मौजूद महिला के बयान भी बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वही घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह है। लेकिन सच्चाई सामने आने में काफी समय लगेगा। अक्सर ऐसे मामलों में अकल्पनीय मोड़ भी आ जाते हैं किन्तु ये भी सही है कि इस तरह की घटनाएं भी हमारे यहां कुछ दिन की सनसनी बनकर रह जाती हैं और ज्योंही कोई दूसरी वैसी ही घटना होती है पुरानी को भूल पूरा देश उसमें उलझ जाता है। बाजारवादी व्यवस्था में इंसानी जिंदगी भी खबरों के बाजार की विषयवस्तु बनकर रह गई है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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