Monday 29 October 2018

दिग्विजय चुप हुए तो थरूर शुरू हो गए


पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर यूँ तो उच्च शिक्षित और कुलीन व्यक्ति हैं जिन्हें संरासंघ सरीखे मंच पर काम करने का अनुभव भी है। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी श्री थरूर राजनीति में किसी फिल्मी अभिनेता के  समान ही ग्लैमर रखते हैं। अच्छे लेखक और वक्ता के तौर पर भी वे प्रतिष्ठित हैं वहीं अपने निजी जीवन को लेकर भी वे चर्चाओं में रहते हैं। सुनन्दा पुष्कर नामक महिला से उनका विवाह जितना चर्चित हुआ उससे ज्यादा उसकी मृत्यु सुर्खियां बनीं। जिन परस्थितियों में सुनन्दा का शव दिल्ली के एक सितारा होटल के कमरे में बरामद हुआ उनकी वजह से जांच एजेंसियों को सन्देह हो रहा है कि सुनन्दा की मृत्यु स्वाभविक नहीं थी। शक की सुई श्री थरूर पर भी घूमने लगी। बीच में ये खबर भी उड़ी कि इस मुसीबत से बचने के लिए वे भाजपा घुसने वाले हैं। उनके कुछ बयान प्रधानमंत्री समर्थक भी आए जिसके लिए उन्हें कुछ कांग्रेस नेताओं के कटाक्ष भी सहने पड़े लेकिन लगता है बात बनी नहीं। उधर भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनन्दा की मौत को हत्या का मामला बताते हुए उसमें श्री थरूर को लिप्त बताकर सुलह की बची-खुची सम्भावनाएँ भी खत्म कर दीं। शायद उसी के बाद वे भाजपा और श्री मोदी के विरुद्ध खुलकर बोलने लगे और वह भी बेहद तीखा और कुछ-कुछ स्तरहीन और विवादस्पद भी। हाल ही में उन्होंने हिंदुत्व को लेकर भी अनेक ऐसे बयान दिए जिनकी वजह से वे खुद तो आलोचना के शिकार हुए ही किन्तु उनसे ज्यादा नुक्सान कांग्रेस पार्टी का हुआ जिसके अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों सौम्य  हिंदुत्व का चेहरा बनकर हिन्दू मतदाताओं के बीच पार्टी की छवि सुधारने में लगे हुए हैं। गत दिवस उन्होंने प्रधानमंत्री को लेकर फिर ऐसा बयान दे दिया जो पार्टी के गले पड़ रहा है। यद्यपि कांग्रेस में एक वर्ग ऐसा भी है जिसका मानना है कि राहुल और सोनिया जी को लेकर भाजपाईयों द्वारा की जाने वाली भद्दी टिप्पणियों का जवाब भी उसी शैली में दिया जाना चाहिए किन्तु अतीत के अनुभव बताते हैं कि जब-जब भी श्री मोदी के बारे में किसी भी कांग्रेसी नेता ने निम्नस्तरीय टिप्पणी की उसका लाभ भाजपा को ही मिला क्योंकि प्रधानमंत्री ऐसे अवसरों को लपककर भुनाने में बेहद माहिर हैं और अपनी इसी खासियत की वजह से उन्होंने अनेक मर्तबा हारी हुई बाजी पलट दी थी। अभी तक मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी जैसे कांग्रेसी नेताओं के बयानों से पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता रहा है। अब इसी जमात में थरूर साहब भी शरीक हो गए लगते हैं। संयोग की बात ये है कि उक्त सभी सुशिक्षित और सम्भ्रान्त पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं। दिग्विजय सिंह ने तो हाल ही में अपने गृहराज्य मप्र के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रचार करने  से ये कहते हुए इंकार कर दिया कि उनके भाषणों से कांग्रेस का नुकसान हो जाता है। भले ही उन्हें ये बात काफी देर से समझ में आई लेकिन कम से कम आ तो गई। लेकिन लगता है दिग्विजय सिंह की बीमारी संक्रामक बनकर श्री थरूर को लग गई है जो आए दिन कुछ न कुछ ऐसा कह देते हैं जिससे उनकी तो छीछालेदर होती ही है किन्तु उससे ज्यादा मुसीबत झेलना पड़ती हैं कांग्रेस पार्टी को जो ऐसे बयानों से बिखरा कचरा बटोरते-बटोरते परेशान हो उठी है। हालांकि जवाब में भाजपा के नेतागण भी जो बोलते हैं वह मर्यादा का उल्लंघन है किंतु कांग्रेस चूंकि विपक्ष में है इसलिए उसे अपनी छवि के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए और फिर श्री मोदी जैसे तेजतर्रार प्रधानमंत्री के बारे में बोलने से पहले तो अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए जो ईंट का जवाब पत्थर से देने में माहिर है। श्री थरूर ने अच्छे हिन्दू और बुरे हिन्दू के बाद शिवलिंग पर बैठे बिच्छु का उदाहरण ऐसे समय दिया जब राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। कांग्रेस को इन राज्यों में आशा की किरण नजर आ रही है लेकिन श्री थरूर सरीख़े नेताओं का मुंह इसी तह चलता रहा तो भाजपा विशेष रूप से प्रधानमंत्री विपक्ष के ज़हरबुझे तीर उसी की तरफ  मोडऩे की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। बेहतर है जिस तरह दिविजय सिंह ने खुद होकर अपनी जुबान पर ताला डाल लिया उसी तरह कांग्रेस श्री थरूर जैसों को ऐसे बयान देने से रोके  वरना वही होगा जो अब तक होता आया है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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