Tuesday 9 October 2018

यौन उत्पीडऩ : फिल्मों से मीडिया तक

सूचना क्रांति का सबसे बड़ा परिणाम ये है कि अब कोई भी घटना या खबर कुछ लोगों या क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रह पाती। उसके कारण उसकी प्रतिक्रिया भी काफी व्यापक होती है। सोशल मीडिया के विस्तार ने तो खबरों के संसार को अकल्पनीय रूप से बड़ा कर दिया है। ताजा उदाहरण है फिल्म उद्योग की एक अभिनेत्री द्वारा नाना पाटेकर नामक अभिनेता पर यौन उत्पीडऩ के  आरोप से उत्पन्न विवाद। घटना पुरानी है तथा पहले भी उछल चुकी थी लेकिन जब अभिनेत्री नए सिरे से सामने आई तो बात राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गई। फिल्म उद्योग भी बंटा - बंटा नजर आने लगा। कुछ लोग आरोप लगाने वाली अभिनेत्री से सहानुभूति व्यक्त करने आगे आए तो कुछ नाना के साथ खड़े हो गए। ये विवाद ठंडा पड़ता उसके पहले कुछ और अभिनेत्रियों ने कई अभिनेताओं, निर्देशकों और निर्माताओं पर उनके शोषण या दुव्र्यवहार का आरोप लगाकर पूरे फिल्म उद्योग में हलचल मचा दी। चूंकि ग्लैमर की दुनिया पेज थ्री संस्कृति से कई गुना आगे बढ़ी मानी जाती है। जिसमें यौन वर्जनाओं को लेकर परंपरागत भारतीय सोच को दकियानूसी समझा जाता है, इसलिए किसी अभिनेत्री के शोषण का उतना संज्ञान नहीं लिया जाता। लेकिन बीते कुछ समय से इस तरह की घटनाओं को सनसनी बनाकर सुर्खियों में आने का चलन भी चल पड़ा है। लेकिन इस बार बात फिल्म उद्योग से बाहर निकलकर अन्य क्षेत्रों तक पहुंच चुकी है। आए दिन कोई महिला किसी चर्चित हस्ती द्वारा अपना शोषण किये जाने या दुव्र्यवहार की शिकायतें लेकर सामने आ रही हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि महिलाओं के शोषण और उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार की शिकायतें अब समाचार माध्यमों तक पहुंच गई।  नामी-गिरामी पत्रकार रहे वर्तमान केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर पर एक महिला पत्रकार ने जिस तरह के आरोप लगाए उनसे राजनीतिक क्षेत्रों में भी हलचल मच गई है। उसके बाद खबर आ गई कि एनडीटीवी में कार्यरत महिला पत्रकारों को भी उत्पीडऩ झेलना पड़ा जिसकी शिकायत उन्होंने चैनल प्रमुख डॉ. प्रणय रॉय एवं उस समय चैनल की चर्चित पत्रकार बरखा दत्त से की किन्तु उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद अब और शिकायतें आ सकती हैं क्योंकि उत्पीडऩ की शिकार महिलाओं में साहस आया है। लेकिन इसका एक परिणाम ये हुआ कि सेलिब्रिटी की छवि पर सन्देह के बादल मंडराने लगे हैं। श्री अकबर केंद्रीय मंत्री हैं वहीं डॉ रॉय और बरखा दत्त भी मीडिया जगत की जानी मानी हस्ती हैं। ये सब देखकर लगता है कि आने वाले दिनों में यौन उत्पीडऩ के और पुराने मामले खुल सकते हैं। ये चलन कुछ हद तक तो स्वागतयोग्य है क्योंकि इससे अपने शोषण के विरुद्ध मुंह खोलने की हिम्मत बढ़ेगी वरना लोकलाज के भय से अधिकतर मामले तो दबे ही रह जाते हैं। लेकिन फिल्म उद्योग से बढ़ते बढ़ते बात का अभिजात्य वर्ग के मीडिया तक पहुंच जाने के बाद इस बात का खतरा भी बढ़ गया है कि जो चैनल अब तक दूसरों की टोपी उछालते हुए प्रसन्नता से फूला नहीं समाते थे वे अपने दामन पर छींटे पड़ते देख कहीं ठंडे न पड़ जाए। समाचार माध्यमों का स्वरूप व्यावसायिक होने के बाद पत्रकारिता और प्रबंधन दोनों में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी है। टीवी चैनलों ने योग्यता के साथ ग्लैमर को प्रोत्साहित किया जिसने मीडिया के प्रति युवतियों में रुझान और बढ़ाया लेकिन इससे कुछ विकृतियां भी सहज रूप से उत्पन्न हुईं जिनमें रातों-रात कामयाबी हासिल करने की महत्वाकांक्षा भी एक प्रमुख कारण बन गया। महिलाओं का यौन उत्पीडऩ करने वाले पुरुष मानसिक रोगी होते हैं लेकिन ये भी सही है कि हर प्रकरण में उन्हें ही कसूरवार नहीं ठहराया जाना चाहिए। बीते कुछ  समय से बरसों पुराने मामले उछालकर सहानुभूति बटोरने के भी प्रकरण देखने मिल रहे हैं। फिल्म उद्योग, मॉडलिंग, राजनीति, कारपोरेट जगत से होते-होते बात अब मीडिया तक आ जाने के बाद चिंता और चिंतन दोनों की जरूरत महसूस होने लगी है क्योंकि समाज को दिशा देने वाले जिम्मेदार वर्ग में भी यदि गंदगी आ गई तब फिर दूसरों को रोकने-टोकने वाला ही नहीं बचेगा। अधकचरी आधुनिकता के फेर में पड़कर अपनी संस्कृति और परम्पराओं को पिछड़ेपन की निशानी मानने का दुष्परिणाम सामने आने लगा है। जिस तरह से महिलाएं खुलासा कर रही हैं उस पर गम्भीरता से विचार कर सार्थक कदम उठाने के लिए समाज को आगे आना होगा क्योंकि ये काम सरकार का नहीं है और लगे हाथ मीडिया में बैठे उपदेशकों को भी अपनी बिरादरी में चल रहे क्रियाकलापों का भी पर्दाफाश करने का साहस दिखाना चाहिए।

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