Saturday 6 October 2018

पुतिन की यात्रा : तीर एक निशाने अनेक

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा के दौरान लगभग 40 हजार करोड़ की रक्षा प्रणाली खरीदने का जो सौदा हुआ उससे हमारी सुरक्षा व्यवस्था तो सुदृढ़ हुई ही किन्तु ऐसे वक्त में जब भारत द्वारा अमेरिका, इजऱायल और फ्रान्स से काफी बड़े रक्षा सौदे किये जाने से भारत का अत्यंत पुराना और भरोसेमंद मित्र रूस नाराज होकर चीन और पाकिस्तान से याराना बढ़ाने लगा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री पुतिन को दिल्ली बुलाकर अपनी विशिष्ट शैली में जिस तरह गले लगाया उसे कूटनीतिक तौर पर भी बड़े दांव के रूप में भी देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कुछ बरस पहले तक रूस से ही सबसे ज्यादा रक्षा सामग्री खरीदी जाती थी। सोवियत संघ के पतन के बाद अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में थोड़ा बदलाव आया जिससे भारत का झुकाव अमेरिका और उसके समर्थकों की तरफ  भी होने लगा। लेकिन मोदी सरकार ने रक्षा सौदों में राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए खुलापन अपनाया और अपनी शर्तों पर सौदे करने शुरू किए जिसकी वजह से दुनिया के बड़े देशों से भारत के कारोबारी रिश्ते मजबूत होने के साथ ही राजनयिक तौर पर भी भारत के प्रति विश्वशक्तियों का दृष्टिकोण बदला जिसका प्रमाण वैश्विक सम्मेलनों में श्री मोदी को मिलने वाले महत्व और सम्मान से जाहिर हुआ। हाल के वर्षों में अमेरिका और इजरायल के  साथ भारत की सामरिक निकटता ने रूस के मन में सन्देह पैदा किया और वह चीन तथा पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने में रुचि लेने लगा। इसे मोदी सरकार की विदेश नीति की विफलता के तौर पर देखा गया किन्तु पिछले दो दिनों में पुतिन - मोदी शिखर वार्ता और एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल का जो अहम सौदा हुआ वह पुराने दोस्ताना रिश्तों के नवीनीकरण के साथ ही अमेरिका को भी संकेत है जो ईरान से कच्चे तेल के मामले में भारत पर अनुचित दबाव बनाए हुए है। नरेंद्र मोदी का ये कदम एक तीर से कई निशाने साधने जैसा है। राफैल विवाद के बीच उन्होंने श्री पुतिन के साथ इतना बड़ा रक्षा सौदा कर विपक्षी दलों को भी ये एहसास करवा दिया कि वे उनके हमलों से विचलित नहीं हैं। विश्व की सभी बड़ी ताकतों के साथ बराबरी के संबंध बनाकर प्रधानमन्त्री ने खुद को वैश्विक स्तर पर जिस  तरह स्थापित किया वह निश्चित तौर पर बड़ी बात है जिसे राजनीति से ऊपर उठकर स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि आखिरकार इससे देश का सम्मान बढ़ा है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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