Saturday 20 October 2018

राममंदिर : संघ प्रमुख का संदेश या आदेश

विजयादशमी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्थापना दिवस है। इस अवसर पर प्रति वर्ष नागपुर में जो कि इस संगठन का मुख्यालय है, एक बड़ा सार्वजनिक आयोजन होता है जिसे संघ प्रमुख संबोधित करते हैं। इस अवसर पर किसी बाहरी हस्ती को बतौर अतिथि बुलाया जाता है। इस वर्ष नोबेल पुरस्कार से अलंकृत कैलाश सत्यार्थी आमंत्रित थे किंतु मुख्य व्याख्यान सरसंघचालक अर्थात संघ प्रमुख का ही होता है जिसमें वे एक तरह से संघ की नीतियों और कार्यक्रमों की संकेतात्मक घोषणा करते हुए कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष तरीके से पूरे देश को संघ के दृष्टिकोण से अवगत कराते हैं। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दो दिन पूर्व नागपुर में लगभग डेढ़ घंटे लम्बे उद्बोधन में सुरक्षा संबंधी आत्मनिर्भरता  और केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे चर्चित विषयों पर विचार तो रखे ही लेकिन उनके भाषण में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु कानून बनाने की बात कहे जाने से पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया। स्मरणीय है अब तक संघ और डॉ.भागवत दोनों ये कहते आए थे कि इस विवाद का हल न्यायालयीन निर्णय से होना चाहिए। लेकिन इस वर्ष के विजयादशमी समारोह में संघ प्रमुख ने पूरी तरह आक्रामक होते हुए कह दिया कि अयोध्या में राम मंदिर होने के पूरे प्रमाण हैं। इसलिए वहां अविलंब मंदिर बनना आत्मगौरव के लिए आवश्यक है। उन्होंने न्यायालयीन प्रक्रिया में विलम्ब पर कहा कि कुछ शक्तियां कट्टरपंथी और साम्प्रदायिक राजनीति को उभारकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रही हैं। ऐसा कहते समय उनका इशारा कांग्रेस द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या विवाद पर सुनवाई को टलवाने के लिए अपने वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को खड़ा करने पर था। उल्लेखनीय है श्री सिब्बल ने मामले की सुनवाई कर रही पीठ से अनुरोध किया था कि अयोध्या विवाद चूंकि राजनीतिक रंग में रंगा होने से चुनाव को प्रभावित करता है इसलिए इस पर सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हो। यद्यपि अदालत ने उनकी बात को नहीं माना किन्तु ये भी सही है कि अदालती अड़ंगेबाजी की वजह से मंदिर विवाद संबंधी फैसला हाल ही में सेवानिवृत्त हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में नहीं हो सका। वामपंथी विचारधारा से प्रभावित बताए गए  कुछ न्यायाधीशों द्वारा श्री मिश्रा के विरुद्ध बगावतनुमा अंदाज में जो बवाल मचाया गया उसके पीछे भी श्री मिश्रा के कार्यकाल में अनेक ऐसे मामलों पर निर्णय को टलवाने का मकसद ही था जिनसे देश की राजनीति प्रभावित हो सकती है। ऐसा लगता है संघ प्रमुख द्वारा राम मंदिर पर अदालती फैसले को स्वीकार करने के पूर्व आश्वासन से हटकर केंद्र सरकार पर कानून बनाकर मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ  करने का जो दबाव विजयादशमी उत्सव के जरिये बनाया गया उसका मुख्य कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस विवाद की सुनवाई में हो रहा विलम्ब ही है। इसका एक और कारण साधु-संतों द्वारा मंदिर निर्माण में हो रहे विलम्ब पर नाराजगी व्यक्त करते हुए अयोध्या में आंदोलन शुरू करने की धमकी भी है। स्मरणीय है विश्व हिन्दू परिषद के माध्यम से संघ ने साधु-संतों को मंदिर मुद्दे पर एकत्र कर अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था किंतु अब वही संत समाज खुलकर कहने लगा है कि जब अदालती फैसले से ही अयोध्या विवाद सुलझाना है तब भाजपा और नरेंद्र मोदी के समर्थन से क्या लाभ? हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सौम्य हिंदुत्व की लाइन पकड़कर मंदिरों और मठों में जाकर मत्था टेकने के कारण भी संघ चौकन्ना हो गया। शिवसेना प्रमुख  उद्धव ठाकरे द्वारा 25 नवंबर को अयोध्या जाने के ऐलान ने भी संघ को इस संवेदनशील विषय पर आगे बढ़कर नेतृत्व अपने हाथ में लेने के लिए उद्वेलित किया। इस सबसे हटकर अनु.जाति/जनजाति कानून में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किये गए बदलाव को बेअसर करते हुए केंद्र सरकर ने जिस फुर्ती से नया कानून बनाने की पहल की और तीन तलाक़ पर रोक लगाने संबंधी कानून के राज्यसभा में अटक जाने पर अध्यादेश का सहारा लिया उससे भाजपा के परंपरागत समर्थक सवर्ण मतदाताओं में जो देशव्यापी नाराजगी फैल गई उसने भी संघ को चिंता में डाल दिया जो डॉ. आंबेडकर को महिमामंडित करते हुए बीते काफी समय से सामाजिक समरसता का अभियान चला रहा है। दरअसल हिन्दू समाज में ये भावना तेजी से फैलने लगी कि जब अन्य विषयों पर हिंदूवादी मोदी सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को उलट पलट करने में संकोच नहीं करती तथा संसद की स्वीकृति में विलम्ब होने पर अध्यादेश लाने में आगे-आगे होती है तब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय का बहाना क्यों बनाती है? अयोध्या आंदोलन का नेतृत्व कर रहे  विश्व हिन्दू परिषद नामक संघ के अनुषांगिक संगठन ने  ही हाल ही में मोदी सरकार को उसकी उदासीनता के लिए लताड़ा था। इन्हीं सबका परिणाम संघ प्रमुख के ताजा वक्तव्य में झलका जिसमें उन्होंने मंदिर समर्थक सभी पक्षों की नाराजगी और अपेक्षाओं को शब्द देते हुए केंद्र सरकार से साफ कह दिया कि धैर्य की सीमा भी टूटने को आ गई है इसलिए अब वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मार्ग में उत्पन्न अवरोध दूर कर दे। अब सवाल ये है कि मोदी सरकार और भाजपा अपने पितृ संगठन की बात को महज सन्देश के तौर पर एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देगी या फिर उसे आदेश मानकर हिन्दू मतदाताओं को आगामी चुनावी मुकाबलों के लिए गोलबंद करने के लिए साहसिक कदम उठाएगी? ये प्रश्न इसलिये महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो गया है क्योंकि तीनों परंपरागत महत्वपूर्ण मुद्दों पर वह अपने प्रतिबद्ध समर्थक वर्ग की अपेक्षाओं पर पूरी तरह तो दूर आंशिक तौर पर भी खरी नहीं उतर सकी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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