Tuesday 2 October 2018

कम्प्यूटर बाबा : प्रवासी पक्षियों को दाना डालने का नतीजा

मप्र की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने जब कतिपय बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने का फैसला लिया तब उसका देश भर में मज़ाक उड़ा। संत समाज सहित आम जनता को भी वह निर्णय अटपटा लगा। सरकार धर्मगुरुओं का सम्मान करे उस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। शिवराज जी यूँ भी बड़े ही धार्मिक व्यक्ति हैं किंतु साधु-संत राज्यमंत्री का दर्जा पाकर सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के प्रचारक बनें तो उससे उनके प्रति व्याप्त सम्मान कम होता है। जो साधु-संत राजनीति में उतरकर किसी दल विशेष से जुड़े वे भले चुनाव जीतकर सांसद, विधायक और मंत्री वगैरह बन गए हों किन्तु उससे उनकी निर्विवाद और आध्यात्मिक छवि पर विपरीत असर पड़ा है। कुछ संत यद्यपि सीधे राजनीति में तो नहीं आए लेकिन वे किसी पार्टी के समर्थक बनकर विवादास्पद बन बैठे। यही वजह रही जब शिवराज सरकार ने कुछ बाबाओं को अचानक सत्ता सुख प्रदान किया तो लोगों को आश्चर्य के साथ बुरा भी लगा। मुख्यमंत्री के अलावा उन साधुओं के प्रति भी आम नागरिक के मन में उपहास का भाव उत्पन्न हुआ। राज्यमंत्री पद मिलते ही कुछ बाबा तो ठेठ सियासी अंदाज में सक्रिय हो उठे। गाड़ी-बंगला, प्रोटोकॉल, सर्किट हाउस की सुविधा जैसे सांसारिक प्रपंचों में उनकी लिप्तता देखकर उनके वैराग्य पर भी उंगलियां उठने लगीं। नर्मदा से अवैध रेत उत्खनन रोकने और पर्यावरण की रक्षा हेतु जनजागरण करने के जिस उद्देश्य से मुख्यमंत्री ने उनकी नियुक्तियां कीं वह कितना पूरा हुआ ये तो पता नहीं चला लेकिन उनके नाज़-नखरे जरूर जनचर्चा का विषय बनते रहे। धीरे-धीरे जब लोगों का ध्यान उनसे हटता सा लगा तब कम्प्यूटर बाबा ने पद  छोड़कर शिवराज सरकार को धर्मविरोधी बताते हुए मुख्यमंत्री पर उनकी बातों पर ध्यान नहीं देने और संतों से न मिलने जैसे आरोप भी मढ़ दिए। और भी कई बातें बाबा ने कहीं। उनका अंदाज विशुद्ध राजनीतिक लगा। आशीर्वाद से अचानक श्राप की मुद्रा में वे क्यों आ गए  ये तो वे ही बेहतर बता सकेंगे। उधर भाजपा के प्रवक्ता और एक-दो मंत्री भी कम्प्यूटर बाबा के आरोपों के जवाब में आए। यद्यपि मुख्यमंत्री की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन इस झटके से भाजपा नेतृत्व की आंखें अब भी नहीं खुलीं तो फिर ये मानना पड़ेगा कि पार्टी में गंभीरता से सोचने की प्रवृत्ति का ह्रास होता जा रहा है। भाजपा या मुख्यमंत्री द्वारा बाबाओं को बिना किसी दूरदर्शिता के सीधे राज्यमंत्री का दर्जा दे देना जनता तो क्या उन समर्पित भाजपाइयों के गले तक नहीं उतरा जिनको देवदुर्लभ कार्यकर्ता कहकर पार्टी बहलाती-फुसलाती रही। कई तो अपनी नि:स्वार्थ सेवाओं के मूल्यांकन का इंतजार करते-करते बुढ़ा गए। ये गलती केवल मप्र में नहीं हुई बल्कि और भी जगह की जाती रही जिससे पार्टी के प्रतिबद्ध कैडर में असन्तोष बढऩे के साथ ही आम जनता के मन में भी ये धारणा मजबूत हुई कि पार्टी सत्ता की दौड़ में अपने मूल रास्ते से भटक गई। जिन बाबाओं को शिवराज सरकार ने महिमामंडित किया वे यदि वैचारिक तौर पर पार्टी से सम्बद्ध होते तो उनकी नियुक्ति औचित्यपूर्ण रहती किन्तु अचानक उनको राज्यमंत्री का दर्जा देने से भाजपा और शिवराज दोनों की किरकिरी हुई। कम्प्यूटर बाबा के इस्तीफे से भाजपा को कितना नुकसान होगा ये उतना बड़ा मुद्दा नहीं जितना ये कि जाते-जाते वे जो कारण गिना गए उससे भाजपा गुनाह बेलज्जत हो गई। हो सकता है शेष तीन बाबा भी चुनाव के पहले इसी तरह का धमाका करें क्योंकि ऐसे लोग अपने ऊपर किये उपकार को सामने वाले की कमजोरी समझते हैं। बेहतर हो भाजपा और मुख्यमंत्री कम्प्यूटर बाबा के आचरण से सबक लेते हुए प्रवासी पक्षियों को दाना डालना बंद कर दें वरना ऐसी फजीहत आगे भी होती रहेगी ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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