Wednesday 24 October 2018

हेलमेट जैसा हश्र न हो जाए इस फैसले का


सर्वोच्च न्यायालय ने दीपावली पर पटाखों से होने वाले ध्वनि और वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जो निर्देश गत दिवस दिए वे कमोबेश पहले जैसे ही हैं। देश की राजधानी दिल्ली के जो आंकड़े बीते सालों में सामने आये वे भयावह होने से देश भर में दीपावली की रात में जलाई जाने वाली आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण का संज्ञान लिया जाने लगा। भारतीय पर्व परंपरा में दीपावली देश के हर हिस्से में बेहद धूमधाम से मनाई जाती है जिसमें पटाखों का जमकर उपयोग होता है। ये कहना गलत नहीं होगा कि धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी को समर्पित इस पर्व पर आतिशबाजी के जरिये अपनी रईसी का वीभत्स प्रदर्शन भी होने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन बच्चों की याचिका पर जो भी निर्णय दिया उससे सैद्धान्तिक तौर पर शायद ही कोई असहमत होगा बजाय इसके कि उसमें पटाखे चलाने के लिए जो समय सीमा तय कर दी गई है वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है। उज्जैन के भाजपा सांसद डॉ. चिंतामणि मालवीय ने तो ऐलान भी कर दिया कि वे रात्रि 10 बजे के बाद पटाखे चलाएंगे क्योंकि  दीपावली का त्यौहार मुहूर्त और चौघडिय़ा के मुताबिक मनाया जाता है। इसी तरह की और भी प्रतिक्रियाएँ सुनने और पढऩे मिल रही हैं। न्यायालय ने पटाखों की गुणवत्ता भी निश्चित कर दी है। तेज आवाज वाले पटाखों पर भी बंदिशें लगाई गई हैं। घटिया आतिशबाजी के उत्पादन और विक्रय पर भी न्यायालय ने नजर टेढ़ी करते हुए शासन, प्रशासन और पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वह उसके आदेशों के पालन की व्यवस्था करे। क्रिसमस और नए साल पर पटाखे चलाने के लिए रात्रि 11.55 से 12.30 तक का समय रहेगा वहीं शादी सहित अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भी निश्चित स्थान पर ग्रीन (पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाली) आतिशबाजी के उपयोग की अनुमति रहेगी। कुल मिलाकर सर्वोच्च न्यायालय का उक्त फैसला पूरी तरह प्रदूषण को रोकने पर केंद्रित है जिसके औचित्य से कोई भी समझदार व्यक्ति शायद ही असहमत होगा लेकिन इसके लागू होने में वही व्यवहारिक परेशानियाँ देखने मिलेंगीं जो अतीत में सर्वोच्च न्यायालय के अन्य फैसलों के साथ देखी गईं। देश में प्रदूषण न फैलाने वाली आतिशबाजी का कितना उत्पादन होता है ये कोई पक्के तौर पर नहीं बता सकता। बीते कुछ वर्षों से चीन में बनी आतिशबाजी ने भारतीय पटाखा उद्योग की कमर तोड़कर रख दी। चीन में बने अन्य सामान की तरह पटाखे भी घटिया स्तर के होते हैं। लेकिन सस्ते होने से भारतीय बाजार पर उनका आधिपत्य हो गया। घरेलू आतिशबाजी उत्पादक भी पर्यावरण सुरक्षा के बहुत जागरूक नहीं होते। ऐसे में जबकि आतिशबाजी का व्यापार चरम पर है, इस फैसले का कितनी  ईमानदारी और कड़ाई से पालन हो सकेगा ये दावे के साथ कोई नहीं कह सकता। सबसे महत्वपूर्ण बात ये होगी कि समय सीमा के बाद या निर्धारित से ज्यादा आवाज वाले पटाखे फोड़े जाने पर पुलिस क्या कर सकेगी जो पहले से ही काम के बोझ तले दबी है और कानून व्यवस्था बनाये रखने के अपने मूल दायित्व तक का निर्वहन ठीक तरीके से नहीं कर पा रही। और फिर करोड़ों क्या अरबों रुपये की जो आतिशबाजी बनकर विक्रेताओं के पास आ चुकी है वह सर्वोच्च न्यायालय के मानकों पर खरी नहीं उतरने पर बेकार हो जाएगी। उस दृष्टि से देखें तो ये फैसला कुछ माह पहले आया होता तब इसके प्रति आम जनता में स्वप्रेरित समर्थन  की उम्मीद की जा सकती थी लेकिन जिस समय ये आया वह सही नहीं है जिसके कारण इस फैसले का मजाक बनना सुनिश्चित है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति चिंता बढ़ी है। अनेक सुशिक्षित परिवारों ने आतिशबाजी के उपयोग को सीमित किया है। नई पीढ़ी भी प्रदूषण रोकने बेहद सजग है किंतु दीपावली के चंद दिन पहले इस तरह का फैसला लागू करवा पाना असंभव होगा। कुछ जगह भले ही पुलिसिया डंडा चलेगा लेकिन जिस तरह दोपहिया वाहन चलाते वक्त हेलमेट लगाना अनिवार्य कर दिए जाने के बाद भी पुलिस के सामने से बिना हेलमेट लगाए दोपहिया वाहन चालक बिना डरे निकलते है ठीक उसी तरह दीपावली जी रात मु_ी भर लोगों को छोड़ दें तो शेष देशवासी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का रत्ती भर पालन नहीं करेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने रात्रि 10 के बाद पटाखा फूटने पर इलाके के थानेदार पर अवमानना की कार्रवाई करने का जो फरमान सुनाया उसका पालन भी कितना हो सकेगा ये भी अनिश्चित है है। कुल मिलाकर बिना समाज में जागृति और दायित्व बोध के इस तरह के आदेशों को लागू करना लगभग असम्भव है। खास तौर पर भारत सरीखे देश में जहां धार्मिक रीति-रिवाज के प्रति लोगों के मन में अपार आस्था होती है और फिर समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो इस तरह के आदेशों की अवहेलना कराना अपनी शान समझता है। ये सब देखते हुए इस फैसले के लागू होने में सन्देह किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात ये होगी कि प्रदूषण न फैलाने वाले पटाखे अव्वल तो मिलेंगे नहीं और मिले भी तो आम इंसान की हैसियत से बाहर होंगे ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

1 comment:

  1. इस प्रकार के आदेशों को देखने से लगता है कि न्याय व निर्ंणय देते समय पर्याप्त विचार व बुद्दिमत्ता की कमी रही होगी. जिन पहलुअो पर विचार करना चाहिये उनपर विचार नही किया गया. तथा याची की इछानुसार करोडों लोगों पर अपोषणीय अादेश लाद दिया गया.

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