Thursday 25 October 2018

सीबीआई के बहाने मोदी पर निशाने


विपक्ष का काम सत्ता पक्ष पर आरोप लगाना है और उस दृष्टि से राहुल गांधी एवं अन्य विरोधी नेता यदि केंद्र सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये आरोप लगा रहे हैं कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच घूसखोरी के आरोप-प्रत्यारोप के उपरांत दोनों को छुट्टी पर भेजने जैसे कदम के पीछे रॉफेल लड़ाकू विमान सौदे के भ्रष्टाचार की जांच को रोकना है तो इस आरोप को साधारण मानकर हवा में उड़ाने की बजाय प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को विपक्ष के आरोप का पुख्ता जवाब देते हुए देश को आश्वस्त करना चाहिए कि सीबीआई की स्वायत्तता बरकरार है और दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन अवकाश पर भेजे जाने की वजह उन दोनों पर लगे आरोपों की निष्पक्ष  जांच करवाना है । चूंकि श्री वर्मा और श्री अस्थाना ने एक दूसरे को फंसाने के लिये अपने अधीनस्थों के माध्यम से चक्रव्यूह बनाना शुरू कर दिया था इसके कारण शीर्ष स्तर पर सीबीआई के अधिकारी और कर्मचारी दो गुटों में विभक्त होते दिखने लगे । ऐसे में जरूरी था कि उक्त दोनों अधिकारियों के हाथ से दायित्व और अधिकार छीनकर पूरे मामले की जांच कर दूध का दूध , पानी का पानी किया जाए क्योंकि श्री वर्मा और श्री अस्थाना के अधिकार सम्पन्न रहते तक जांच करने वाले अधीनस्थ अधिकारी असमंजस और भय में डूबे रहते । केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट ये आ खड़ा हुआ कि श्री अस्थाना को जब गुजरात से सीबीआई में नियुक्त किया तभी ये कहा गया था कि वे प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी हैं । इसके अलावा जैसा कहा जा रहा है उनकी नियुक्ति को श्री वर्मा ने पसंद नहीं किया और इस कारण दोनों के बीच पहले दिन से तनातनी चलने लगी । मौजूदा विवाद में सतही तौर पर देखने में ही लगता है कि इसकी जड़ में कहीं न कहीं ऐसा कुछ है जिससे किसी न किसी का कोई बड़ा नुकसान होने वाला था क्योंकि जिस तरह की जानकारी सामने आई है उससे सन्देह पैदा होता है कि उच्च स्तर पर चल रहे इस शीतयुद्ध में ये दोनों अधिकारी तो महज कठपुतली हैं जिनकी डोर किन्हीं और लोगों के हाथ में है । जिस तरह से श्री अस्थाना को श्री मोदी और श्री शाह का करीबी बताया गया और श्री वर्मा को अवकाश पर भेजे जाने के विरुद्ध राहुल खुलकर सामने आये उससे ये स्पष्ट हो गया कि उनके भी राजनीतिक संरक्षक हैं । कुल मिलाकर सीबीआई की इस अंतर्कलह ने नए राजनीतिक विवाद की ज़मीन तैयार कर दी है । श्री अस्थाना और श्री वर्मा के बीच शुरू हुई कीचड़ फेंक प्रतियोगिता जिस तरह से केंद्र सरकार विरुद्ध विपक्ष में तब्दील गई और घूसखोरी का आरोप  रॉफेल की जांच से जाकर जुड़ गया उसके बाद अब ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री भले सीधे न कहें किन्तु सरकार की ओर से देश को  विश्वास दिलाना जरूरी हो गया है कि सीबीआई में उच्च स्तर पर प्रारम्भ हुई जंग से उसका कोई लेनादेना नहीं है । चूंकि ये जांच एजेंसी सीधे -सीधे प्रधानमंत्री के मातहत होती है इसलिए उसकी जो छीछालेदर इस झगड़े में ही रही है उससे प्रधानमंत्री कार्यालय अछूता नहीं रह सकता । हो सकता है राहुल गांधी का आरोप हवा में छोड़ा गया तीर हो लेकिन इसके बाद भी ये जरूरी हो जाता है कि उस आरोप का समुचित स्पष्टीकरण दिया जावे । जहां तक दोनों शीर्ष अधिकरियों को अवकाश पर  भेजकर जांच दल बदलने का सवाल है तो वह सही और अपेक्षित निर्णय है जिसके बाद अब श्री अस्थाना और श्री वर्मा दोनों समूची जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं रहे । श्री वर्मा की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय को फैसला करना है कि उन्हें अवकाश पर भेजना सही है या गलत । वैसे उनको पद से हटाया नहीं गया केवल छुट्टी पर भेजकर दायित्व से मुक्त कर दिया गया है और ऐसा शासकीय सेवा में होना नया नहीं है । और फिर जिस तरह के हमले इन दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर किये उनके बाद दोनों को दफ्तर से बाहर किये बिना निष्पक्ष और सही जांच करवाना सम्भव नहीं होता । उस दृष्टि से उन्हें अवकाश पर भेजकर नए अधिकारी को दायित्व देने में गलत कुछ भी  न होने के बावजूद केंद्र सरकार को जनता को विश्वास दिलवाना होगा कि इस निर्णय के पीछे मुख्य सतर्कता आयुक्त की भूमिका थी । चूंकि राहुल के साथ अन्य विपक्षी दलों ने भी रॉफेल घोटाले को समूचे प्रकरण से जोड़ा है इसलिए प्रधानमंत्री से तत्काल सफाई अपेक्षित है वरना जो आरोप उन पर लगाए गए वे सत्य नहीं होने पर भी तब तक लोगों के ध्यान में बने रहेंगे जब तक उनको आधारहीन साबित न कर दिया जावे । यूँ भी प्रधानमंत्री और भाजपा इन दिनों विश्वास के संकट से जूझ रहे हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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