Thursday 3 January 2019

स्टंटबाजी का पर्याय बन गई राजनीति

गत दिवस लोकसभा में जमकर चों-चों हुई।  रॉफेल लड़ाकू विमान सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार के आरोपों को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जहां दोहराते हुए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा वहीं सत्ता पक्ष की तरफ  से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वकालत के अपने अनुभव का प्रदर्शन करते हुए राहुल और गांधी परिवार के साथ कांग्रेस पर तीखे हमले किये। सांकेतिक शैली में कुछ लोगों के नाम लेकर आक्षेपों की बौछार भी हुई। जैसा कि हमेशा होता आया है आरोप-प्रत्ययारोप के बाद बैठक खत्म हो गई। समाचार पत्रों को मसाला मिल गया और टीवी चैनलों को प्रायोजित बहस का अवसर। लेकिन साधारण जनता की समझ में कुछ भी नहीं आया। दरअसल  रॉफेल विमान, बोफोर्स तोप और अगस्ता हेलीकाप्टर सभी की खरीदी में भ्रष्टाचार का हल्ला मचा लेकिन आज तक किसी को सजा नहीं हुई। जेपीसी, अदालत और सीबीआई  सरीखे फोरम भी किसी कसूरवार के गले में फंदा नहीं डाल सके। सीबीआई ने जांच के सिलसिले में पूरी दुनिया छान मारी लेकिन एक भी दोषी सलाखों के पीछे नहीं भेजा जा सका। अगस्ता हेलीकाप्टर खरीद से जुड़े क्रिश्चियन मिशेल को जरूर दुबई से पकड़ कर लाया गया है लेकिन ये कहना कठिन है कि उससे कुछ राज मिल सकेगा। यही सब देखकर आम धारणा बन गई है कि राजनीतिक पार्टियां अपने निहित स्वार्थों के लिए भ्रष्टाचार के मुद्दे उछालती हैं लेकिन किसी पुख्ता सबूत के अभाव में जांच अंजाम तक नहीं पहुंच पाती। भोपाल गैस त्रासदी के आरोपी को देश से निकल भागने में  तत्कालीन राजीव सरकर ने मदद की थी। बीते साल वह चल बसा किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी उसका प्रत्यर्पण नहीं हो सका। बोफोर्स कांड का आरोपी क्वात्रोची भी भारतीय जांच एजेंसियों को चकमा देता रहा और अंत में चल बसा। अगस्ता हेलीकाप्टर घोटाला हुए भी बरसों बीत गए लेकिन अब जाकर एक आरोपी पकड़ में आ सका है। कहने का आशय ये है कि मामला उठता तो जोर-शोर से है लेकिन टीवी धारावहिक की तरह उसका अंत नहीं होता और फिर वह गुमनामी का शिकार होकर रह जाता है। चूंकि राजनीति अब नीतियों और सिद्धांतों की बजाय सनसनीखेज बातों पर आधारित हो चुकी है इसलिए सभी दलों के नेता इसी में जुटे रहते हैं । चुनाव चाहे नगरीय निकाय का हो या लोकसभा का उस तक में ऐसे मुद्दे उठाये जाते हैं जिनकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती । चूंकि हमारे देश में चुनावी मौसम हर समय बना रहता है इस वजह से आरोप-प्रत्यारोप रूपी बादल भी जब देखो तब गरजते रहते हैं । यही वजह है कि जनमानस पर इनका कोई असर नहीं होता। राहुल गांधी के आरोपों का जहाँ प्रधानमंत्री जवाब नहीं देते वहीं क्वात्रोची से नजदीकी पर सोनिया गांधी और राहुल चुप्पी साध लेते हैं । कुल मिलाकर स्थिति पूरे कुए में भांग घुले होने जैसी है और विश्वास का संकट दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है  । राजनेताओं की भीड़ में प्रामाणिकता से भरे चरित्र लुप्त होते जा रहे हैं। संसद में विवाद तो हर समय होते रहते हैं किंतु विचार करने की फुर्सत किसी को नहीं है। लोकसभा चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आता जाएगा राजनीतिक स्टंटबाजी तेज होती जाएगी। रही बात चुनाव जीतने की तो उसके लिए कर्ज माफी या उस जैसी किसी मुफ्त उपहार योजना का उपयोग कर लिया जाएगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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