Tuesday 29 January 2019

जॉर्ज : समाजवादी आंदोलन की अंतिम कड़ी

स्वतंत्र भारत में समाजवादी आन्दोलन के अंतिम सेनानी जॉर्ज फर्नांडीज नहीं रहे। 88 साल की उम्र में उनका निधन अप्रत्याशित कदापि नहीं है क्योंकि बीते अनेक वर्षों से वे गम्भीर रूप से अस्वस्थ रहे। अटल जी की तरह से जॉर्ज भी अचेतन अवस्था में चले गये थे। 2009 में वे आखिरी बार चुनाव लड़े किन्तु हार गए। मुम्बई में टैक्सी यूनियन के नेता के रूप में श्रमिक आंदोलन से जुड़े जॉर्ज, डॉ लोहिया के दौर में युवा समाजवादी नेता के रूप में स्थापित हुए। 1974 की प्रसिद्ध रेल हड़ताल भी उन्हीं के नेतृत्व में हुई थी। 1975 में लगे आपात्काल के दौरान जॉर्ज पर बड़ौदा डायनामाइट कांड जैसा आरोप भी लगा। 1977 के लोकसभा चुनाव में हथकड़ी लगा उनका चित्र जनता पार्टी के प्रचार का सशक्त माध्यम बना और जेल में रहते हुए ही वे चुनाव जीते। ओजस्वी वक्ता के रूप में वे जनता को मंत्रमुग्ध कर देते थे। लोकसभा में विपक्ष और सत्ता में रहते हुए वे सदैव प्रभावशाली रहे। बतौर मंत्री उनकी सादगी और फक्कड़पन चर्चा का विषय रहा। वाजपेयी सरकार में जब वे रक्षा मंत्री बने तब उन्होंने अपने बंगले से मुख्य दरवाजा ही हटवा दिया था। जॉर्ज पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। सत्तर के दशक में तत्कालीन प. जर्मनी के चांसलर बिली ब्रांट के फाउंडेशन से अनुदान लेने के मामले में भी वे विवादग्रस्त हुए किन्तु उसके बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई तो उसका कारण उनका समाजवादी तेवर ही था। इसी के चलते वे अपनी ही पार्टी में किनारे लगा दिए गए। बाद में नीतिश कुमार के साथ मिलकर उन्होंने समता पार्टी भी बनाई। लालू, मुलायम और शरद यादव से अलग हटकर जॉर्ज ने अपनी छवि पुराने समाजवादी नेता की बरकरार रखी। इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि 2009 के बाद देश के दो शीर्ष नेता अटल जी और जॉर्ज दोनों बीमारी के कारण सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए। इस वजह से राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा शून्य महसूस किया गया। श्री फर्नांडीज भले ही आज की पीढ़ी के लिए अपरिचित नाम हो किन्तु 1967 से 2009 तक का राजनीतिक इतिहास उनके बिना अधूरा रहेगा। विनम्र श्रद्धांजलि ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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