Wednesday 23 January 2019

सरकार की दशा और दिशा ठीक करें कमलनाथ

मप्र की कमलनाथ सरकार के सामने बहुमत का संकट भले नहीं हो लेकिन वह निर्णयात्मक दृढ़ता नहीं दिखा पा रही। सबसे पहले सचिवालय में वंदे मातरम बन्द करवाने का फैसला उसे बदलना पड़ा। फिर मीसा बंदियों की सम्मान निधि रोकने के फैसले के बाद उसकी समीक्षा करने की घोषणा करनी पड़ी और ताजा यू टर्न किसानों के लिए बनी भावान्तर योजना को बंद करने के ऐलान के बाद उसे जारी रखने की घोषणा । मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद तो बेहद सुलझे हुए व्यक्ति हैं लेकिन लगता है उनके मंत्री ज्यादा उत्साह में हैं। सरकार बने हुए महीना भर बीत गया । इतना समय शासन के कामकाज को समझ्ने के लिए पर्याप्त होता है । लेकिन मप्र सरकार के कतिपय मंत्री बयानवीर बनने के फेर में आये दिन ऐसा कुछ कर और कह जाते हैं जिससे मुख्यमंत्री और कांग्रेस दोनों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है । अभी तक जो समझ में आ रहा है वह केवल पिछली सरकार की जांच और विभिन्न्न पदों पर जमे लोगों को हटाया जाना। ऐसा लगता था कि खाली कराए  गए पदों पर शीघ्र ही नई नियुक्तियां की जाएंगी किन्तु पार्टी के प्रदेश प्रभारी वह काम लोकसभा चुनाव तक टरकाने की बात कहकर पार्टी के कैडर को निराश कर गए।  चुनावी वायदों को पूरा करने की चिंता अब कांग्रेस नेताओं के चेहरे पर झलकने लगी है। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही आचार संहिता लग जाएगी जिसके बाद राज्य सरकार किसी भी प्रकार की घोषणा नहीं कर पायेगी। किसानों की कर्जमाफी पहले से ही समस्या बनी हुई है। हालांकि सरकार में कुछ अनुभवी मंत्री भी हैं किंतु वे भी लगता है 15 साल विपक्ष में रहते हुए सत्ता संचालन भूल चुके हैं । पहली मर्तबा मंत्री बने विधायकों का नौसिखियापन  भी सरकार की छवि के लिए नुकसानदेह लग रहा है। मुख्यमंत्री को चाहिए वे विदेश से लौटकर मंत्रीमंडल में कसावट लाएं। कृषि मंत्री सचिन यादव द्वारा भावान्तर योजना बंद करने की घोषणा के फौरन बाद कमलनाथ ने फटकारा तो उन्हें अपना बयान वापिस लेना पड़ा। मंत्रियों की इस अनुभवहीनता की वजह से भाजपा को सरकार पर चढ़ बैठने का मौका मिल जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस तरह सक्रिय और सजग हैं उसे देखते हुए कांग्रेस को चाहिये वह अपने मंत्रियों को नियंत्रण में रखे । शिवराज सरकार के क्रियाकलापों की जांच कराए जाने में कुछ गलत नहीं है  लेकिन आम जनता को इसमें कोई रुचि नहीं होती । उसे तो उन वायदों और घोषणाओं के पूरा होने का इंतजार रहता है जिनसे आकर्षित होकर उसने नई सरकार को अपना विश्वास सौंपा। बीते एक माह में प्रदेश की कानून व्यवस्था भी चरमराई  है। उसकी वजह से भी राज्य सरकार की छवि खराब हो रही है । लगातार हो रही हत्या से ये एहसास हो रहा है जैसे सरकार स्थितियों को नियंत्रित नहीं कर पा रही। जहाँ तक बात संगठन की है तो कमलनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद पार्टी का कामकाज भी अस्तव्यस्त है। बीच - बीच में अजय सिंह राहुल को संगठन की बागडोर सौंपने की खबर उड़ती है लेकिन ऐसा लगता है मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव तक सत्ता और संगठन दोनों अपने हाथ में रखने के इच्छुक हैं। इसकी वजह शायद ये होगी कि लोकसभा के प्रत्याशी चयन में वे अपना दबदबा बनाए रखना चाहते हैं। इसका परिणाम ये हो रहा है कि पार्टी इस चुनौती का सामना करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही। हालांकि विधानसभा चुनाव की पराजय ने भाजपा में निराशा का माहौल बना दिया है लेकिन शिवराज सिंह चौहान भोपाल से निकलकर जिस तरह दौरे कर रहे  हैं उससे भाजपा के कार्यकर्ता और नेता आगामी चुनाव के लिए कमर कसने के मूड में आते दिख रहे हैं। शिवराज सरकार और पार्टी संगठन के प्रति जो नाराजगी विधानसभा चुनाव पूर्व थी वह भी क्रमश: कम हो रही है । 15 साल से चली आ रही सत्ता के अचानक चले जाने से भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक दोनों अफ़सोस में हैं । दूसरी तरफ कांग्रेस अभी तक विजयोन्माद से बाहर निकलती नहीं दिख रही । ये बात पूरी तरह सही है कि सत्ता विरोधी जो माहौल मप्र में विधानसभा चुनाव के पहले था वह बीते एक महीने में शिथिल पड़ गया है । यदि राज्य सरकार और कांग्रेस संगठन इसी तरह चले तब लोकसभा चुनाव में भाजपा वापिसी कर सकती है। मुख्यमंत्री को ये बात भी समझनी चाहिए कि जनमत आजकल बहुत तेजी से बदलता है। और फिर उनकी सरकार के भीतर भी अंतर्विरोध कम नहीं है। गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का अचानक शिवराज सिंह चौहान के निवास पर पहुंचकर अकेले में बतियाने को महज सौजन्य भेंट कहकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता । श्री सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने जिस तरह की राजनीतिक जुगलबंदी की उससे ज्योतिरादित्य काफी आहत महसूस कर रहे हैं। उनके मन में इस बात का भी मलाल है कि जिन राहुल गांधी के आगे पीछे वे कई बरस से मंडरा रहे थे उन्होंने भी कमलनाथ के पक्ष में फैसला दिया। मंत्रीमंडल के चयन में भी श्री सिंधिया उक्त दोनों नेताओं के सामने हल्के साबित हुए। उनको उपेक्षित करने से चंबल सम्भाग में कांग्रेस के लिये परेशानियाँ बढ़ सकती हैं। ये सब देखते हुए अब कमलनाथ को चाहिए वे सरकार और संगठन की दिशा और दशा दोनों ठीक करें वरना बड़ी मुश्किल से हाथ आई सत्ता मु_ी में से रेत की तरह फिसलते देर नहीं लगेगी। बसपा की एकमात्र विधायक के साथ सरकार का समर्थन करने वाले सपा और निर्दलीय विधायक भी अपनी कीमत मांगने लगे हैं। उसके चलते भी सरकार दबाव में है। कुल मिलाकर प्रदेश सरकार का अब तक का प्रदर्शन कामचलाऊ ही कहा जायेगा। प्रशासनिक सर्जरी और पिछली सरकार की जांच के सिवाय वह ऐसा कोई निर्णय नहीं कर सकी जो उसकी सफलता के प्रति आश्वस्त कर सके। मुख्यमंत्री ने यदि जल्द ही ध्यान नहीं दिया तब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर पाएगी इसमें सन्देह है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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