Thursday 3 January 2019

क्रिकेट के भगवान का शिल्पकार चला गया

डॉ. सरोजिनी प्रीतम ने काफी पहले किसी पत्रिका में एक क्षणिका लिखी थी कि फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन को तो सभी जानते हैं लेकिन मधुशाला के लेखक डॉ. हरिवंश राय बच्चन को अब कम लोग जानते हैं। उल्लेखनीय है डॉ. बच्चन अमिताभ के यशस्वी पिता थे। जब उक्त क्षणिका लिखी गई तब बच्चन जी जीवित थे। साहित्यकाश में भले ही उनकी शोहरत और प्रतिष्ठा बरकरार थी किन्तु जनमानस में एंग्री यंगमैन के तौर पर उनके पुत्र अमिताभ की तूती बोल रही थी। यद्यपि उसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं था। आज उस सन्दर्भ का स्मरण करने का प्रयोजन एक ऐसे व्यक्ति की चर्चा करना है जिसके कुशल मार्गदर्शन में तैयार हुए एक खिलाड़ी ने इतिहास बना दिया। सरकार ने उसे भारत रत्न जैसे सम्मान से विभूषित किया तो खेल प्रेमियों ने क्रिकेट का भगवान जैसा संबोधन देकर महामानव की श्रेणी में रख दिया। लेकिन जिस व्यक्ति ने यह चमत्कार कर दिखाया वे थे रमाकांत आचरेकर जिनका गत दिवस देहांत हो गया। क्रिकेट के अनगिनत प्रशिक्षक देश में हैं। लेकिन आचरेकर सर के नाम से सम्मानित उस व्यक्ति ने जिस तरह हीरे को तराशा वह उनके समर्पण भाव के साथ ही पारखी नजर का भी प्रमाण था। आज समाचार माध्यमों में उनके बारे में काफी सामग्री है लेकिन ये बात भी सही है कि अगर आचरेकर सर ने सचिन जैसे सितारे को दुनिया के सामने पेश न किया होता तो उनकी कोई पहिचान नहीं बन पाती। खेल जगत में प्रशिक्षकों को दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान द्रोणाचार्य अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया था। सचिन के साथ विनोद कांबली भी आचरेकर सर के शिष्य थे जो थोड़ी चमक दिखाकर चलते बने किन्तु सचिन ने गुरु की अपेक्षाओं को पूरा किया। सवाल उठता है कि आचरेकर सर जैसे आदर्श गुरुओं को वह सम्मान, शोहरत और समृद्धि क्यों नहीं मिलती जो उनके शिष्य बटोर ले जाते हैं और इसका जवाब है कि गुरु वही होता है जो अपनी महत्वाकाक्षाओं को अपने शिष्यों के जरिये पूरा करे। उस दृष्टि से आचरेकर सर ने जीवन में संतुष्टि का सर्वोच्च शिखर छू लिया होगा क्योंकि उनका एक शिष्य सफलता के आसमान पर जो पहुंच गया। बीसीसीआई को चाहिए कि वह रमाकांत आचरेकर की स्मृति में कोई बड़ा टूर्नामेंट  प्रारम्भ करे। सचिन तेन्दुलकर और उनके अलावा जिन भी क्रिकेटरों ने स्व. आचरेकर के चरणों में बैठकर हुनर हासिल किया उनका भी फर्ज है कि वे अपने गुरु की स्मृति में ऐसा कुछ करें जिससे उनकी स्मृतियाँ चिरजीवी हो सकें। ये कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिस तरह सचिन तेन्दुलकर महानता के प्रतीक बन गए वही सम्मान उनके गुरु आचरेकर सर को भी मिलना चाहिये क्योंकि गुरु बिन शिष्य की कल्पना व्यर्थ है। क्रिकेट के भगवान का सृजन करने वाले उस अद्वितीय गुरु को विनम्र श्रद्धांजलि।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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