Friday 4 January 2019

वंदे मातरम विवाद का सुखांत

वंदे मातरम विवाद पर मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बिना देर लगाए नई व्यवस्था लागू कर दी। अगले माह से पहली तारीख को भोपाल स्थित राज्य सचिवालय के प्रांगण में राष्ट्रगीत गायन के आयोजन को और विस्तार देते हुए अब पुलिस मुख्यालय से पुलिस बैंड राष्ट्रभक्ति के गीत बजाते हुए वल्लभ भवन तक जाएगा। जनता भी उसके साथ चल सकेगी। सचिवालय पहुंचने के बाद वहां वंदे मातरम के साथ ही राष्ट्रगान जन गण मन भी होगा। कमलनाथ द्वारा गत एक जनवरी को सचिवालय के समक्ष कर्मचारियों द्वारा सामूहिक तौर पर राष्ट्रगीत का गायन बंद करवा दिया गया जिस पर भोपाल से दिल्ली तक राजनीतिक बवाल मच गया। मुख्यमंत्री ने इस पर ये भी कहा था कि महीने में एक दिन राष्ट्रगीत गाने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता लेकिन आलोचना शुरू होते ही उन्होंने आश्वासन दिया कि शीघ्र ही नई व्यवस्था की जावेगी। विपक्षी दल भाजपा को तो नई सरकार पर हमला करने का स्वर्णिम अवसर मिल गया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वल्लभ भवन में खुद वंदे मातरम गाने की तिथि भी घोषित कर दी। दूसरी तरफ  कमलनाथ के निर्णय को सही ठहराने वाले भी सक्रिय हो उठे। समय की बर्बादी के साथ ही कर्मचारियों की उदासीनता का हवाला भी दिया गया। कुछ टीवी चैनलों ने वंदे मातरम के समर्थकों को खुद भी राष्ट्रगीत याद न होने के दृश्य दिखाकर परोक्ष रूप से उनका मजाक भी उड़ाया। लेकिन अपने अंधभक्तों से प्रभावित हुए बिना मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बुद्धिमत्ता दिखाते हुए अपने फैसले को बदलकर भोपाल स्थित पुलिस मुख्यालय से सचिवालय तक बैंड पर राष्ट्रभक्ति के गीतों की धुनें बजाते हुए जुलूस ले जाने की व्यवस्था कर दी और वंदे मातरम के साथ ही राष्ट्रगान के गायन का आदेश भी निकाल दिया। सचिवालय में प्रतिमाह होने वाले आयोजन को समय की बरबादी बताने वालों के गाल पर जोरदार तमाचा लगाते हुए मुख्यमंत्री ने जिला और संभाग मुख्यालयों पर भी महीने की पहली तारीख को वंदे मातरम के साथ जन गण मन के गायन का आदेश पारित कर दिया। प्रदेश सरकार के इस निर्णय को भाजपा अपनी जीत के तौर पर प्रचारित कर रही है जो राजनीतिक तौर पर गलत भी नहीं है क्योंकि वह इस मुद्दे को गरमाती नहीं तब शायद कमलनाथ भी इतनी शीघ्रता से नई व्यवस्था नहीं करते। लेकिन इससे भी बढ़कर ये उन लोगों की किरकिरी है जिन्होंने सचिवालय में वंदे मातरम गायन को समय की बर्बादी बताते हुए भाजपा पर राष्ट्रवाद को अपने एजेंडे के रूप में इस्तेमाल करने जैसा आरोप लगाया था।  कांग्रेस के उत्साही अंधभक्तों सहित वामपंथी ढोंगियों को कमलनाथ से कुछ सीखना चाहिए जिन्होंने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए तत्काल अपने निर्णय को सुधारते हुए उसे और विस्तृत कर दिया।  इसे उनकी उस टिप्पणी का विरोधाभासी भी कहा जा सकता है कि एक दिन वंदे मातरम गाने से राष्ट्रभक्ति नहीं आ जाती। लेकिन मुख्यमंत्री ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए बिना कुछ कहे इस बात का संकेत दे दिया कि वे पारी की शुरुवात में ही बाहर जाती गेदों को छेड़कर कैच आउट होने से बचेंगे। हॉलांकि कुछ और भी फैसले हैं जो जल्दबाजी और अति उत्साह से प्रभावित कहे जा सकते हैं। उनका संबंध रास्वसंघ और भाजपा से होने के कारण उनकी राजनीतिक प्रतिक्रिया भी होगी किन्तु वंदे मातरम पर रोक लगाए जाने से वह व्यक्ति भी आहत हुआ जो न वंदे मातरम गाता है और न ही जिसे राष्ट्रगीत याद ही है। यूँ भी जन गण मन की अपेक्षा वंदे मातरम थोड़ा कठिन और लंबा है। बहरहाल कमलनाथ के ताजे फैसले से एक विवाद का अंत ही नहीं बल्कि सुखांत हो गया। अब माह के पहले दिन भोपाल स्थित सचिवालय सहित जिला एवं संभाग मुख्यालयों पर भी वंदे मातरम के साथ जन गण मन का गायन होगा। इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने जिस भी कारण से किया किन्तु उनका फैसला स्वागत योग्य है क्योंकि राष्ट्रभक्ति को प्रोत्साहित करने वाले हर प्रयास का अभिनंदन होना चाहिए फिर चाहे वह भाजपा की सरकार द्वारा उठाया जाए या कांग्रेस की। जहां तक बात शिवराज सिंह द्वारा सात तारीख को वल्लभ भवन में वंदे मातरम गाने की है तो उसमें किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिये। वैसे भाजपा ने वंदे मातरम के प्रति सम्मान तो दिखा दिया किन्तु उसके नेताओं को अब तो कम से राष्ट्रगीत याद कर ही लेना चाहिए  वरना उनके ऊपर  पर उपदेश कुशल बहुतेरे की कहावत को चरितार्थ करने का आरोप लगता रहेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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