Monday 10 April 2023

राजस्थान में भी पंजाब जैसी गलती कर रही कांग्रेस



राजस्थान के मामले में कांग्रेस आलाकमान फिर वही गलती कर रहा है जिसकी वजह से बीते कुछ सालों में उसके लगभग दो दर्जन  नेता पार्टी छोड़ गए | उनमें से कुछ तो ऐसे थे जिनको गांधी परिवार के बेहद निकट समझा जाता था | हाल ही में गुलाम नबी आजाद द्वारा लिखी गयी किताब में उन हालातों का विवरण भी दिया गया जिनकी वजह से वे स्वयं और पार्टी के कुछ नेता बाहर निकलने मजबूर हो गए | दरअसल कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वह हर फैसला गांधी परिवार पर छोड़ देती है | लेकिन परिवार के तीनों सदस्यों की निर्णय क्षमता बेहद कमजोर है | अव्वल तो वे किसी भी फैसले को टालते रहते हैं और यदि करते हैं तो उनमें मतैक्य नहीं बन पाने से बढ़ते – बढ़ते बात रुक जाती है | पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू  के बीच  लड़ाई की कीमत चुकाने के बाद भी राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी जंग को रोकने का कोई भी सार्थक प्रयास अब तक नहीं किया गया | इस बारे में गांधी परिवार की सबसे बड़ी फजीहत तब हुई जब गत वर्ष पार्टी अध्यक्ष के चुनाव हेतु नामांकन भरने की बजाय  श्री गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर  ये संदेश दे दिया कि उनको राजस्थान की सत्ता से हटाने पर सरकार गिर जायेगी | उस मामले में गांधी परिवार को खून का घूँट पीकर रह जाना पड़ा | जयपुर आये दो केन्द्रीय पर्यवेक्षकों को गहलोत समर्थक विधायकों ने जिस  तरह से अपमानित किया और बाद में उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उनमें से एक अजय माकन ने तो अपने पद से ही त्यागपत्र दे दिया | श्री गहलोत के साफ इंकार करने के बाद ही मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनाया गया | लेकिन राजस्थान में चल रहा गहलोत – पायलट विवाद दिन ब दिन गंभीर होता चला गया | और अब जबकि विधानसभा चुनाव के लिए मात्र कुछ महीने बचे हैं तब श्री पायलट ने 11 अप्रैल से अनशन करने की घोषणा करते हुए जयपुर से दिल्ली तक पार्टी में खलबली मचा दी | मुद्दा भी ये कि मुख्यमंत्री श्री गहलोत ने भाजपा नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरुद्ध लगे आरोपों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की | उल्लेखनीय है श्री गहलोत और वसुंधरा के निजी सम्बन्ध काफी अच्छे हैं | ये भी कहा जाता है कि जब श्री पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर गुरुग्राम जा बैठे थे और भाजपा के सहयोग से गहलोत सरकार गिराए जाने की पूरी तैयारी हो गयी थी तब वसुंधरा ने ही रायता फैला दिया क्योंकि उनको इस बात का डर था कि सचिन के आने से पार्टी में उनका भविष्य अंधकारमय हो जायेगा | बहरहाल , श्री पायलट की वह कोशिश उन्हें बहुत महंगी पड़ गयी | उपमुख्यमंत्री सहित संगठन के सभी पद हाथ से निकल गए | उनके समर्थक मंत्री भी लालबत्ती गँवा बैठे | ऐसे में उनकी स्थिति घायल शेर जैसी हो गयी | इसमें दो मत नहीं हैं कि श्री गहलोत ने राजनीतिक चातुर्य के मामले में श्री पायलट को बौना साबित कर दिया | ये जानते हुए भी कि उनको गांधी परिवार का अंदरूनी समर्थन हासिल है ,  सार्वजनिक तौर पर सचिन का मजाक उड़ाने का कोई अवसर मुख्यमंत्री ने नहीं छोड़ा | पार्टी हाईकमान की समझाइश पर श्री पायलट ने काफी संयम बनाये रखा लेकिन जब उन्हें लगा कि समय उनके हाथ से निकलता जा रहा है तब उन्होंने अनशन जैसा फैसला कर डाला | इस विवाद में जितनी गलती श्री गहलोत और सचिन की है उससे ज्यादा गांधी परिवार की है क्योंकि दोनों नेता उसके बेहद करीबी माने जाते रहे हैं | यदि वह समय रहते उन दोनों  का विवाद सुलझाकर बीच का रास्ता निकाल लेता तब नौबत यहाँ तक नहीं आ पाती | राजस्थान के पार्टी प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी कल जयपुर जा रहे हैं लेकिन जैसी खबर है अब तक सचिन को अनशन स्थगित करने की सलाह न प्रभारी ने दी और न ही गांधी परिवार ही आगे आया | श्री गहलोत तो ऐसा लगता है अपने इस प्रतिद्वंदी को पार्टी से बाहर निकालने पर आमादा है क्योंकि ऐसा होने के बाद राजस्थान में कांग्रेस पूरी तरह से उनके कब्जे में आ जायेगी | राजनीति के जानकारों का मानना है श्री पायलट के पास भी ज्यादा विकल्प नहीं बचे | वसुंधरा को मुद्दा बनाकर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। उनको समझ में आ गया है कि भाजपा में उनकी राह में महारानी रोड़ा बनी रहेंगी। इसलिए अब वे तीसरी शक्ति के तौर पर खुद को स्थापित करने की तरफ बढ़ते हुए राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के तौर पर अपनी जगह  बनाने की सोच रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि  प्रदेश में तीसरा मोर्चा उनकी अगुआई में खड़ा हो सकेगा और त्रिशंकु विधानसभा बनने पर वे किंग मेकर की भूमिका में हो सकते हैं। भविष्य तो कोई नहीं जानता किंतु इतना तय है कि इस प्रकरण से कांग्रेस आलाकमान की कमजोरी एक बार फिर सामने आ गई है जो लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद को हल करवाने में नाकामयाब साबित हुआ। इस प्रकरण में एक बात और भी साफ है कि सचिन  कांग्रेस में रहे तो भी श्री गहलोत उन्हें मजबूत  नहीं होने देंगे और केंद्र में चूंकि कांग्रेस की संभावना है नहीं इसलिए वहां भी कोई अवसर नजर नहीं आता। ऐसे में वे क्या करेंगे ये आने वाले दिनों में  स्पष्ट हो जाएगा लेकिन अनके अनशन का निर्णय कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की विफलता का ताजा सबूत है जिसकी वजह से पार्टी को झटके पर झटके लग रहे हैं और छोटे - छोटे दलों के नेता तक उसको आंखें दिखाने का दुस्साहस करने लगे हैं। उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने बीते सप्ताह जिस तरह कांग्रेस की जुबान बंद करवाई वह इसका ताजा उदाहरण है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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