Saturday 8 April 2023

पवार का नया पावर गेम शुरू



राकांपा ( राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ) के संस्थापक शरद पवार ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि वे राजनीति के कितने बड़े खिलाड़ी हैं | बीते कुछ दिनों के भीतर ही उन्होंने कांग्रेस की उस व्यूह रचना को छिन्न  – भिन्न का कर दिया जिसके जरिये राहुल गांधी को विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनाकर 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया जाना है | विपक्ष की एकता हेतु जितनी भी मुहिम फिलहाल चल रही हैं उनमें से अधिकतर में श्री पवार की सलाह ली जा रही है | प.बंगाल का पिछले चुनाव जीतने के फौरन बाद ममता बैनर्जी ने जब कांग्रेस से अलग विपक्ष का मोर्चा बनाने की घोषणा करते हुए राहुल गांधी की क्षमता पर संदेह जताया तब वे सबसे पहले मुम्बई जाकर श्री पवार से ही मिलीं | यद्यपि उन्हें कोई  आश्वासन इस मराठा नेता ने नहीं दिया | उसके बाद और भी विपक्षी नेता उनसे मिलते रहे किन्तु श्री पवार ने केवल उनकी बात सुनकर चलता कर दिया | भारत जोड़ो यात्रा के सन्दर्भ में उनके द्वारा राहुल के प्रयास की प्रशंसा तो की गई लेकिन यात्रा के बीच में या श्रीनगर में उसके समापन पर कांग्रेस के न्यौते पर वे न खुद गए और न ही उनकी पार्टी का कोई अन्य नेता | लेकिन इस दौरान वे कांग्रेस के साथ भी  मेलजोल बनाये रहे जिसका कारण महाराष्ट्र में महा विकास अगाड़ी नामक गठबंधन है जिसमें रांकापा के साथ कांग्रेस  और शिवसेना भी शामिल हैं | इस बेमेल गठजोड़ के शिल्पकार भी श्री पवार ही हैं | लेकिन बीते कुछ दिनों में ही श्री पवार ने जिस  तरह से पैंतरेबाजी की उसकी वजह से विपक्ष के भीतर खलबली मच गयी है | कांग्रेस को तो मानो सांप सूंघ गया है | जनवरी में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से राहुल गांधी को जैसे ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति हो गयी क्योंकि उसमें गौतम अडानी के आर्थिक साम्राज्य के विरुद्ध जो खुलासे किये गए उनसे राजनीति तो गरमाई ही कुछ दिनों तक तो ऐसा लगा कि देश की अर्थव्यवस्था ही धराशायी हो जायेगी | भारतीय स्टेट बैंक और जीवन बीमा निगम जैसे संस्थानों द्वारा अडानी समूह में किये गए निवेश को डूबता हुआ माना जाने लगा और इसके लिए राहुल और उनके प्रचारतंत्र ने सीधे – सीधे श्री मोदी को कठघरे में खड़ा करने की रणनीति तैयार कर ली | संसद के बजट सत्र की शुरुआत से ही इस मामले में जेपीसी बनाये जाने की मांग के साथ  संसद न चलने देने की जिद ठान ली गयी | बाद में श्री गांधी ने ब्रिटेन में जो भाषण दिए उनके लिए माफी मांगे  जाने को  सत्तापक्ष ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए संसद को ठप्प करने का जवाबी दांव चल दिया | इस शीतयुद्ध के दौरान ही सूरत की अदालत से आये  फैसले से राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गयी जिसने आग में  घी का काम  किया | और जो विपक्षी दल अभी तक जेपीसी के मुद्दे पर दूर थे वे भी सहानुभूति लेकर कांग्रेस के साथ उठने - बैठने लगे जिसमें आम आदमी पार्टी भी शामिल थी | लेकिन जोश में आकर राहुल ने पत्रकार वार्ता में माफी मांगे जाने के सवाल पर कह दिया कि वे सावरकर नहीं गांधी हैं | उल्लेखनीय है लम्बे समय से वे सावरकर के माफीनामे को लेकर बयानबाजी करते रहे हैं | लेकिन इस बार उनकी  टिप्पणी उनके गले पड़ गयी | पहले तो उद्धव ने विरोध जताया और कांग्रेस द्वारा बुलाई बैठकों से दूरी बना ली और उसके बाद श्री पवार ने  बैठक में पहुंचकर कांग्रेस को समझा दिया कि राहुल को रोका जावे अन्यथा महाराष्ट्र में गठबंधन टूट जाएगा | यही नहीं उन्होंने कांग्रेस सहित बाकी विपक्षी दलों को भी बता दिया कि सावरकर के प्रति महाराष्ट्र में बेहद सम्मान है | उनकी बात का असर भी हुआ और राहुल ने उसके बाद सावरकर के बारे में कहना बंद कर दिया | लेकिन बीते रविवार को नागपुर प्रेस क्लब में श्री पवार ने सावरकर को महान देशभक्त और समाज सुधारक बताते हुए  अंडमान की सेलुलर जेल में उनके द्वारा सही गयी यातनाओं का उल्लेख तो किया ही लेकिन अडानी विवाद में कांग्रेस द्वारा जेपीसी की मांग से असहमति व्यक्ति करते हुए कह दिया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गयी जाँच समिति के बाद इसका कोई  औचित्य नहीं रह जाता क्योंकि वह समिति ज्यादा बेहतर है | उनके उक्त बयान के बाद कांग्रेस भौचक रह गई | हालाँकि रांकापा ने संसद में भी जेपीसी के मामले में तटस्थ भाव अपना रखा था किन्तु सार्वजनिक तौर पर उस मांग को निरर्थक बताकर उन्होंने ये संकेत दे दिया कि वे कांग्रेस को इतनी  छूट  नहीं  देंगे जिससे वह मोदी विरोधी राजनीति का नेतृत्व करने लायक बन जाए | और फिर कल उन्होंने एक साक्षात्कार में न सिर्फ जेपीसी की उपयोगिता को ही नकार दिया अपितु हिंडनबर्ग  रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर भी संदेह जताकर राहुल और कांग्रेस की धडकनें बढ़ा दीं | यही नहीं तो श्री पवार ने भारत के उद्योगपतियों के योगदान की प्रशंसा करते हुए यहाँ तक कह दिया कि पहले टाटा – बिरला निशाने पर हुआ करते थे लेकिन अब अम्बानी और अडानी पर हमले हो रहे हैं | उनके अनुसार अडानी को जानबूझकर लक्ष्य बनया गया जिनका देश में बिजली उत्पादन में बड़ा योगदान है | उनके इस बयान के बाद कांग्रेस ने फौरन उनके निजी विचार बताकर पिंड छुड़ाया किन्तु संसद सत्र के समाप्त होते ही रांकापा नेता द्वारा कांग्रेस की लाइन के एकदम विपरीत चल देने से विपक्षी एकता की तमाम कोशिशों को तो पलीता लगा ही लेकिन उसके साथ ही नए राजनीतिक समीकरण बनने की संभावनाएं भी पैदा कर दीं | ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि उनके भतीजे अजीत पवार ने भी दो दिन पहले ही अरविन्द केजरीवाल द्वारा प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर उठाये  जा रहे सवाल का विरोध किया था | राजनीति की नब्ज जानने वाले श्री पवार के इस दांव के परिणाम और उद्देश्यों का अध्ययन करने में जुट गए हैं | जिस तरह एक झटके में उन्होंने सावरकर मुद्दे पर राहुल को मुंह बंद रखने मजबूर किया और अब जेपीसी की मांग की हवा निकालते हुए हिंडनबर्ग रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में फेंकते हुए अडानी सहित तमाम उद्योगपतियों का बचाव किया , वह साधारण बात नहीं है | कांग्रेस को इतना बड़ा झटका तो राहुल को सजा मिलने और सदस्यता जाने से भी नहीं लगा था जितना श्री पवार ने कल दे डाला |


- रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment