Friday 14 April 2023

एनकाउंटर : अपराधी से सहानुभूति रखना भी अपराध है



उ.प्र के कुख्यात माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और उसके एक साथी को राज्य पुलिस के विशेष कार्यदल ने कल झांसी के पास मुठभेड़ में मार गिराया | ये दोनों उमेश पाल हत्याकांड में आरोपी थे और लम्बे समय से फरार थे |  उनके मारे  जाने की  खबर पर  उ.प्र सहित देश भर से आई ज्यादातर प्रतिक्रियाओं में कार्रवाई का समर्थन करते हुए  योगी सरकार की इस बात के लिए प्रशंसा की गयी कि वह प्रदेश से माफिया राज खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता पर मुस्तैदी से डटी है | उल्लेखनीय है  अनेक दशकों से 100 से अधिक अपराधों का आरोपी अतीक अपने राजनीतिक संपर्कों के कारण बचता आ रहा था | लेकिन योगी सरकार के आने के बाद उसका संरक्षण बंद हो गया और हाल ही में उसे हत्या के पहले मामले में आजीवन कारावास हुआ | लेकिन इसके पहले ही एक हत्याकांड के चश्मदीद गवाह की प्रयागराज में जिस तरह बीच सड़क पर हत्या की गई उससे ये जाहिर हुआ कि उसका आपराधिक जाल अभी  भी कायम  है | उस हत्याकांड में असद को भी साफ़ देखा गया जो गिरफ्तारी से बचने के लिए  फरार हो गया और अंततः गत दिवस पुलिस के साथ हुई  मुठभेड़ में मारा गया | योगी सरकार के राज में अब तक 100 से ज्यादा अपराधियों के एन्काउंटर हो चुके हैं | इनमें सबसे ज्यादा चर्चित विकास दुबे का रहा | जिसके बाद योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मणों का विरोधी प्रचारित किया गया | जो भी अपराधी मारा गया उसकी जाति और धर्म का हवाला देकर राजनीति की गयी | लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी सरकार की वापसी ने साबित कर दिया कि अपराधियों के विरुद्ध की गयी आक्रामक कार्रवाई को जनता ने पसंद किया | ये बात तो आम जन भी मानने लगे हैं कि इस राज्य की कानून व्यवस्था में आश्चर्यजनक सुधार हुआ है | हालाँकि अभी भी अनेक माफिया सकिय हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने  आर्थिक ढांचे को तहस - नहस करते हुए उनकी कमर तोड़ने का जो अभियान छेड़ रखा है उसके अनुकूल परिणाम  सतह पर दिखाई देने लगे हैं | लेकिन दूसरी तरफ राजनीतिक जमात में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें माफिया के सफाए के तरीके पर ऐतराज है | और इसीलिये गत दिवस असद की मौत के बाद सपा , बसपा , कांग्रेस और तृणमूल सहित असदुद्दीन ओवैसी ने एनकाउंटर को फ़र्जी बताते हुए उसकी उच्च स्तरीय जाँच कराये जाने की मांग कर डाली | अखिलेश यादव को इस बात पर आपत्ति है कि योगी सरकार अदालत को नजरंदाज करते हुए दंड प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है | जाति और धर्म विशेष को निशाना बनाये जाने की बात भी वे ऐसी हर घटना के बाद कहते ही  हैं | मायावती भी उन्हीं के अंदाज में बोलती दिखीं  |  ऐसी ही टिप्पणियां करते हुए कांग्रेस और तृणमूल ने  योगी सरकार पर कानून हाथ में लेने के साथ ही धार्मिक भेदभाव करने का आरोप लगाया। सबसे गुस्से में नजर आए असदुद्दीन ओवैसी जिनके अनुसार ये असद का नहीं संविधान का एनकाउंटर था। इन सब प्रतिक्रियाओं में पुलिस और योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया जो नई बात नहीं है किंतु किसी ने भी ये कहने का साहस नहीं दिखाया कि असद ने बीच सड़क पर एक आदमी की हत्या की थी जिसका पूरा दृश्य सीसी कैमरे में कैद है। उक्त में किसी ने भी उसे आत्मसमर्पण की सलाह पहले दी हो ये सुनने में नहीं आया।  उल्लेखनीय है कि खालिस्तान समर्थक उग्रवादी अमृतपाल सिंह भी लंबे समय से फरार है ।लेकिन अनेक सिख नेताओं और संगठनों द्वारा उससे आत्मसमर्पण के अपील की जा चुकी है । लेकिन ऐसा अनुरोध  असद से किसी ने नहीं किया । उसके पिता अतीक भी  संवाददाताओं से बात करते हुए अपनी जान को खतरा होने का रोना तो रोते रहे परंतु फरार बेटे को आत्मसमर्पण का संदेशा देने की समझदारी नहीं सिखाई।और शायद इसी  पश्चताप की अभिव्यक्ति उनकी उस टिप्पणी से हुई जिसमें बेटे की मौत का जिम्मेदार खुद को माना गया। बहरहाल , जिस तरह असद और उसके पहले हुए एनकाउंटरों का विरोध कतिपय राजनेताओं द्वारा किया जाता रहा , उसे देखकर कश्मीर घाटी के उन दिनों की याद ताजा हो उठती है जब किसी आतंकवादी के मारे जाने पर उसे शहीद घोषित करते हुए उसके जनाजे में जनसैलाब उमड़ पड़ता था। दुख की  बात ये है कि अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे माफिया सरगनाओं को सपा और बसपा जैसे दलों का संरक्षण मिलता रहा। ये बात भी काफी तेजी से उछाली जा रही  है कि योगी सरकार केवल उन्हीं अपराधी तत्वों पर कार्रवाई कर रही है जो विपक्षी पार्टियों से जुड़े हुए हैं । जाति और धर्म के आधार पर एनकाउंटर का आरोप तो पुराना है । लेकिन इस आधार पर  विकास दुबे अतीक , मुख्तार और असद जैसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखना क्या अपराधों को संरक्षण देना नहीं है ? रोचक बात ये है अतीक से जुड़े तमाम मामलों में सपा और बसपा भी जुड़े नजर आते हैं । ऐसे दुर्दांत अपराधियों को विधायक और सांसद बनाकर मजबूती प्रदान करने में इन दोनों दलों का हाथ किसी से छिपा नहीं है। लेकिन जिस उमेश पाल की नृशंस हत्या की गई  उसके परिवार के प्रति संवेदना प्रगट करने  अखिलेश , मायावती और ओवैसी में से कौन गया ? अतीक 100 से  ज्यादा मामलों में आरोपी है लेकिन उसे सजा तो अब जाकर मिली और वह भी पहले मामले में । अब सोचिए बाकी के प्रकरणों का निपटारा होने में कितने साल या दशक लगेंगे? अतीक और मुख्तार द्वारा अवैध तरीकों से अर्जित अचल संपत्ति पर बुलडोजर चलाए जाने का भी विरोध किया जाता है। वैसे किसी भी एनकाउंटर की जांच होनी ही चाहिए क्योंकि  किसी व्यक्ति को गलत तरीके  से मारा गया तब  दोषियों को दंडित किया जाना जरूरी है , किंतु क्या अपराधी की निंदा करने का साहस उन नेताओं में है जो एनकाउंटर को फर्जी बताकर पुलिस को ही हत्यारा साबित करने में जुट जाते हैं । उल्लेखनीय है उमेश पाल की हत्या के बाद अतीक की पत्नी भी फरार है। यदि उन्हें  पुलिस से डर  है तो वे सीधे अदालत या किसी अन्य राज्य में आत्मसमर्पण कर सकते थे । ऐसे में हत्या के आरोपी का पुलिस से बचकर भागना ही उसके अपराध को प्रमाणित कर देता है और ऐसे लोगों की मौत पर आंसू बहाने वाले भी चोर - चोर , मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ कर रहे  है। उ. प्र की पुलिस और योगी सरकार पर आरोप लगाने वाले नेताओं और समाचार माध्यमों में बैठे कथित मानवाधिकारवादियों को इस बात का जवाब देना चाहिए कि ऐसे माफिया सरगनाओं को सांसद और विधायक बनवाने का पाप जिनके हाथों से हुआ , क्या उनको उसका पश्चाताप है ? यदि हां , तो वे अतीक और उनके कुनबे द्वारा किए गए  अपराधों को संरक्षण दिए जाने के लिए सार्वजनिक तौर पर क्षमा याचना करें । लेकिन बजाय ऐसा करने के वे अपराधियों के प्रति ही सहानुभूति व्यक्त करने में जुटे हैं।जहां तक बात अखिलेश और मायावती की है तो ये कहना गलत नहीं है कि उन्हीं की वजह से उ.प्र में माफिया पनपा ही नहीं  बल्कि संसद और विधानसभा में भी बैठने की हैसियत में आ गया। रही बात पक्षपात की तो योगी सरकार को ये प्रमाणित करना चाहिए कि उसकी कार्रवाई निष्पक्ष है और भाजपा से जुड़े अपराधी तत्वों का भी अंजाम वैसा ही होगा । समय आ गया है जब अपराधी को समूचे समाज का दुश्मन मानकर समुचित दंड दिया जाए। और यदि उसके लिए एनकाउंटर की जरूरत पड़े तो उसमें हिचकने की  जरूरत नहीं है , वरना अपराधों की अमर बेल फैलती ही चली जायेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी 



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