Wednesday 26 April 2023

तीर्थयात्रा को मौज मस्ती बनने से रोकने धर्माचार्य आगे आयें



उत्तराखंड में सनातन धर्म से जुड़े अनेकानेक पवित्र धार्मिक स्थल हैं , जिनका सम्बन्ध पौराणिक काल से है | इसीलिये इसे देवभूमि भी कहा जाता है | गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम होने से यह अंचल विश्व भर में बसे सनातनी लोगों की श्रृद्धा का केंद्र है | गढ़वाल नामक इस क्षेत्र का हर स्थान अपने आप में किसी न किसी विशिष्टता को समेटे हुए है | लेकिन बद्रीनाथ , केदारनाथ , गंगोत्री और यमुनोत्री रूपी चार धाम सदियों से तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते रहे हैं | सर्दियों में बर्फबारी के कारण इन धामों को यात्रियों के लिए बंद कर दिया जाता है और फिर गर्मियों की शुरुआत में अक्षय तृतीया से इनके कपाट दीपावली तक खुले रहते हैं  | इस दौरान लाखों तीर्थयात्री चार धाम यात्रा पर आते हैं | एक समय था जब ऋषिकेश से पैदल जाने के कारण यात्रा बेहद कठिन  होती थी | उसमें जाने वाले अधिकतर लोग अपनी सांसारिक जिम्मेदारिययों को पूरा करने के बाद पुण्य लाभ हेतु आते थे | पूरे रास्ते में ठहरने के लिए स्थानीय जनों के लकड़ी से बने घर होते थे | पूरा सफर बेहद  कष्टसाध्य था किन्तु आस्था के वशीभूत लोग फिर भी आते थे | पहले बद्रीनाथ और केदारनाथ ही सबसे पसंदीदा धाम थे | लेकिन धीरे – धीरे गंगोत्री और यमुनोत्री भी तीर्थयात्रियों की पसंद बनते गए | यह यात्रा गढ़वाल इलाके की अर्थव्यवस्था का आधार है | इसलिए राज्य और केंद्र सरकार ने इसे सरल और सुगम बनाने के लिये काफी काम किये | सबसे बड़ा तो सड़कों का विकास है | आज चार धाम यात्रा के लिए लोग अपने निजी वाहनों से भी आसानी से चले जाते हैं | टैक्सी भी बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं | इसके अलावा ठहरने के लिए रास्ते भर होटल और  गेस्ट हाउस आदि हैं | गढ़वाल विकास मंडल ने भी पर्यटकों  के लिए आकर्षक पैकेज निकाले हुए हैं | हालाँकि 1962 के चीनी  हमले के बाद से ही इस इलाके में सड़कों  का निर्माण  शुरू हो गया था किन्तु बीते एक दशक में तो जिस तरह से यहाँ अधो संरचना का विकास हुआ उसकी वजह से यातायात बेहद सुलभ हो गया | इसके कारण अब तो सर्दियों तक में यात्री यहाँ प्रकृति के साक्षात्कार के साथ रोमांच का अनुभव करने आने लगे हैं | लेकिन इसकी वजह से प्राकृतिक संरचना को जो नुकसान हुआ वह खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा है | भूस्खलन , भूकंप , हिमनदों का पिघलना जैसी आपदाएं जल्दी – जल्दी आने लगीं | कुछ समय पहले जोशीमठ में जिस तरह जमीन धसकी उसने नए खतरों की चेतावनी दे डाली | इन सबके पीछे मुख्य कारण  प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ना ही है | इसके बारे में पर्यावरणविद लंबे समय से चेताते रहे लेकिन किसी ने नहीं सुनी | वृक्षों का कत्ले आम होते रहा और पहाड़ों का सीना चीरकर सड़कें , पुल , पन बिजली योजनाएं जैसे कार्य हुए | टिहरी बाँध को भी पर्यावरण के लिए नुकसानदेह माना जाता है | लेकिन सरकार और जनता सभी ने इस बारे में अव्वल दर्जे की लापरवाही दिखाई , जिसका दुष्परिणाम सामने है | इस चर्चा का संदर्भ गत दिवस केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने के समय उपस्थित श्रृद्धालुओं की भीड़ से है | बारिश और बर्फबारी के बावजूद मंदिर प्रांगण में सात से आठ हजार दर्शनार्थी मौजूद थे | ये संख्या अब लगातार बढ़ती जायेगी और मई – जून में तो यात्रा मार्ग में लोग ही लोग नजर आयेंगे  | इसके चलते वहां यातायात जाम होने के अलावा पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है | खच्चरों से यात्रियों की आवाजाही समूचे मार्ग में गंदगी फैला देती है | साल दर साल इस बारे में बातें होती हैं किन्तु सुधार के नाम पर ले देकर शून्य ही रहता है | केदारनाथ में कुछ साल पहले हुए  जल प्रलय  के कारण  जन धन की  बड़ी क्षति हुई किन्तु जैसे ही हालात सामान्य हुए यात्रियों की आवाजाही पूर्ववत हो गयी | धर्म के प्रति आस्था के अलावा तीर्थ यात्राएं देशाटन और राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण हैं | इस दौरान भाषा और प्रांत के भेदभाव मिट जाते हैं | कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है के नारे की  सार्थकता सिद्ध करने में इन यात्राओं का योगदान किसी से छिपा नहीं है | लेकिन बीते कुछ दशकों में  बाजारवाद की छाया पड़ने से इनके साथ जुड़ीं भावनाएं भी बदलने लगी हैं | जिसके कारण इन्होंने धार्मिक पर्यटन का रूप ले लिया है | हालाँकि  इनके कारण  स्थानीय व्यापार भी बढ़ा है | लेकिन ज्यादा भीड़ की वजह से अव्यवस्था के साथ ही पर्यावरण को  क्षति होने के साथ ही वातावरण की पवित्रता पर भी आंच आती है | गत दिवस इस बारे में देश के प्रसिद्ध धर्माचार्य स्वामी अवधेशानंद जी ने भी आगाह करते हुए अपील की है कि इन तीर्थस्थानों को पर्यटन केंद्र बनाने की प्रवृत्ति से  बचा जावे | सही बात है कि यहाँ आकर मौज - मस्ती करना उन तमाम तीर्थयात्रियों को पीड़ा देता है जो विशुद्ध  श्रृद्धा भाव से आते हैं | वैसे इस बारे में उत्तराखंड सरकार को  भी सोचना चाहिए | अरसे से ये मांग उठ रही है कि चार धाम की ग्रीष्मकालीन यात्रा में यात्रियों की संख्या पर नियंत्रण लगाया जाए क्योंकि  साधनों की बढ़ती उपलब्धता और नव धनाड्य संस्कृति के विकास ने इन यात्राओं के मौलिक स्वरूप को बदल दिया है जिससे  इनकी पवित्रता और पर्यावरण दोनों नष्ट हो रहे हैं | स्वामी अवधेशानंद जी ने जो विषय उठाया वह सामयिक भी है और संवेदनशील भी | इसलिए अन्य धर्माचार्यों को भी उनकी  तरह ही लोगों को समझाइश देनी चाहिए जिससे वे तीर्थयात्रा को आमोद - प्रमोद हेतु किये जाने वाला पर्यटन बनाने से बचाएं | यदि देश भर  के धर्माचार्य अपने अनुयायियों को ये सीख दें कि न सिर्फ उत्तराखंड स्थित चार धाम , अपितु देश भर में  फैले सनातन धर्मियों के तीर्थ  स्थलों की पवित्रता की रक्षा करना भी किसी पुण्य से कम नहीं है तब उसका कुछ न कुछ असर तो होगा ही | वरना प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर बजाय पुण्य के लोग उस पाप के भागीदार बनेंगे जिसकी सजा उनकी संतानों को मिलेगी |


- रवीन्द्र वाजपेयी 


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