Tuesday 4 April 2023

सीबीआई को अपनी निष्पक्षता और स्वायत्तता साबित करनी होगी



ऐसे समय जब केन्द्रीय जाँच एजेंसी सीबीआई विपक्ष के निशाने पर है तब उसकी हीरक जयंती पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये कहना मायने रखता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में आज राजनीतिक इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं है और अधिकारियों को बेहिचक भ्रष्ट लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करना चाहिए , भले ही वे कितने भी ताकतवर हों | उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि भ्रष्टाचार न्याय और लोकतंत्र दोनों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है और सीबीआई की जिम्मेदारी इससे देश को मुक्त कराना है | श्री मोदी ने जाँच  एजेंसी के अधिकारियों को संबोधित करते हुए ये भी कहा कि दशकों से भ्रष्टाचार का लाभ उठा चुके लोगों ने उसको बदनाम करने का एक तंत्र बना रखा है जिससे उसे विचलित न होते हुए अपना काम निडर होकर करते रहना चाहिए | प्रधानमंत्री ने उक्त अवसर पर और भी बहुत कुछ कहा लेकिन उस सबका सार यही है कि उनकी सरकार ने राजनीतिक हस्तियों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो अभियान छेड़ रखा है उसे यह जाँच एजेंसी अंजाम तक पहुंचाए | इसमें दो मत नहीं है कि सीबीआई देश की बेहद सक्षम जांच एजेंसी है | उसकी विश्वसनीयता इसी बात से जानी जा सकती है कि किसी भी राज्य में बड़ी आपराधिक घटना या भ्रष्टाचार का काण्ड सामने आने पर उसी से जांच करवाने हेतु जनता भी सामने आती रही है | विपक्ष में बैठे दल भी राज्य की पुलिस अथवा अन्य जांच एजेंसी पर अविश्वास जताते हुए मामला सीबीआई को सौंपने की माँग करते थे | अनेक संगीन  वारदातों में अपराधियों तक पहुँचने में सीबीआई ने उल्लेखनीय कार्य किया है | लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के आरोप में जेल भिजवाने का श्रेय भी इसी एजेंसी को है | स्व. जयललिता भी इसी के कारण सजा भोगने मजबूर हुईं | लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो अनेक ऐसे  प्रकरण हुए जिनमें  सीबीआई के हाथ बांध दिए गए और उसकी जांच राजनीति के फेर में फंसकर बेनतीजा रह गयी | उ.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों के मामले सीबीआई को  वापस लेने मजबूर किया गया था क्योंकि उस समय की केंद्र सरकार को इनका समर्थन चाहिए था l बाद में सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद उन्हें दोबारा खोला गया किंतु उससे एजेंसी की स्वतंत्रता पर संदेह बन गया। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने उसके बारे में पिंजरे में बंद तोते जैसी टिप्पणी की। कालांतर में उसके कुछ उच्च पदस्थ अधिकारी भी भ्रष्टाचार के मामले में पकड़े गए। लेकिन जबसे केंद्र में मोदी सरकार आई है इस एजेंसी ने राजनेताओं और उनके सहयोगियों की गर्दन में फंदा डालने में जो  तेजी दिखाई उसकी वजह से एक तरफ तो उसकी तारीफ हो रही है  वहीं  दूसरी ओर ये आरोप भी लग रहा है कि उसके निशाने पर केवल विपक्ष के लोग ही हैं। इस आरोप को तब वजन मिलता है जब भाजपा के साथ चले जाने वाले आरोपियों की जांच बंद कर दी जाती है।  हालांकि ऐसे आरोपों से विचलित होकर इस एजेंसी का काम रुक जाए ये तो ठीक नहीं है किंतु केंद्र सरकार को विपक्ष न सही किंतु आम जनता को तो ये भरोसा दिलाना ही होगा कि सीबीआई राजनीतिक प्रतिशोध या पक्षपात से पूरी तरह परे है। ऐसा न होने पर  भ्रष्टाचार में लिप्त नेता जनता की सहानुभूति अर्जित करने में सफल हो जायेंगे। हालांकि आरोप तो न्यायपालिका पर भी लग रहे हैं किंतु उसकी भूमिका जांच एजेंसी की रिपोर्ट के बाद शुरू होती है। इसके अलावा सीबीआई को इस आरोप से भी बचना होगा कि वह छोटी मछलियों को ही फंसा पाती है और भ्रष्टाचार करने वाले मगरमच्छ बच जाते हैं । किसी जांच एजेंसी की हीरक जयंती उसके लिए आत्मावलोकन का अवसर भी है। उस दृष्टि से प्रधानमंत्री ने उससे जो अपेक्षा की उसे पूरा करने के साथ ही उसे आम जनता में भी ये छवि कायम रखनी होगी कि उसकी स्वायत्तता पर किसी का नियंत्रण नहीं है। इसके लिए जरूरी है वह सत्ता से जुड़े भ्रष्ट चेहरों को भी उजागर करे क्योंकि देश को लूटने वालों की न कोई पार्टी होती है न ही सिद्धांत।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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