Tuesday 25 April 2023

यही हाल रहा तो हर जाति की अपनी पार्टी होगी



राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सजातीय माली समाज के लोग राजमार्ग घेरकर बैठे है | उनकी मांग 12 प्रतिशत आरक्षण की है | गत दिवस एक आन्दोलनकारी ने पेड़ से लटक कर आत्महत्या भी कर ली | कहा जा रहा है आन्दोलन में फूट पड़ने से  कुछ लोगों ने राजमार्ग से हटने का निर्णय कर लिया जबकि बाकी के अभी भी रास्ता घेरकर बैठे हैं | जिन भी राज्यों में चुनाव निकट हैं वहां  जातियों के भीतर से उपजातियां निकलकर आ रही हैं | सभी के मन में असंतोष है | बात बढ़ते - बढ़ते उच्च जातियों तक आ पहुँची है | इसीलिये  आर्थिक आधार पर उनको भी 10 फीसदी आरक्षण का झुनझुना पकड़ा दिया गया | राजस्थान के मुख्यमंत्री अपनी जाति के लोगों को ही संतुष्ट नहीं कर सके तो जाहिर हैं बाकी भी असंतुष्ट होंगे ही  | हो सकता है श्री गहलोत आन्दोलनकारियों को आश्वासन देकर शांत कराने में सफल हो जाएँ किन्तु बात इतने से ही खत्म होने वाले नहीं है | आरक्षण के अंतर्गत  शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु प्राथमिकता  और छात्रवृत्ति जैसी सुविधाएं तो तकरीबन सभी राज्य सरकारें दे रही हैं | लेकिन जिन राजनीतिक दलों ने जातिवादी राजनीति का ज़हर बोया अब वे भी उसका दुष्परिणाम झेल रहे हैं | आम्बेडकर जयन्ती पर सवर्ण  और पिछड़ी जातियों के नेता बाबा साहेब की मूर्ति के सामने दंडवत करते दिखे | अखिलेश  यादव तो उनकी मूर्ति अनावरण करने तक जा पहुंचे | दलित मतों की खातिर उनकी बस्तियों में जाकर सामाजिक समरसता का राग भी अलापा गया | उसके बाद आई परशुराम जयंती में ब्राहमणों के आयोजनों में ऐसे सियासी चेहरे भी नजर आये जो मनुवादियों को गरियाने में कोई संकोच नहीं करते | कहने का  आशय ये है कि चाहे आरक्षण हो या अन्य कल्याणकारी कार्यक्रम , उन सभी के पीछे वोट बैंक का लालच ही है | जिन राज्यों में ब्राह्मणों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा वहां पुजारियों को भत्ता देने जैसी घोषणाएं हो  रही हैं | और तो और जाति के नाम पर राजनीतिक धौंस भी दी जाने लगी है जिसका ताजा उदाहरण पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक हैं जिन्होंने हाल ही में दिए एक चर्चित साक्षात्कार के दौरान बिना नाम लिये प्रधानमंत्री को चुनौती दी कि उनको छेड़ा गया तो सजातीय जन सरकार हिला देंगे | राज्यपाल पद से हटने के बाद जिस तरह से वे प्रधानमंत्री पर हमले कर रहे हैं और उनके समर्थन में जाट समुदाय की खाप पंचायतें आ रही हैं उसकी वजह से खुद  को लोहियावादी कहने वाले श्री मलिक अचानक जाट नेता बन बैठे | जबकि  जाटों के सबसे बड़े गढ़ बागपत में वे स्व. अजीत सिंह से बुरी तरह हार चुके थे | अब  ज्योंही राजभवन से वे बाहर आये त्योंही उन्हें समझ में आने लगा कि जाति के खूंटे से बंधकर ही वे शेष ज़िन्दगी गुजार सकेंगे | निश्चित तौर पर ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है | इसी का  विस्तृत रूप  है धर्म के नाम पर अपराधियों को समर्थन और संरक्षण | प्रयागराज में उमेश पाल नामक व्यक्ति की बीच सड़क पर हत्या हुई | लेकिन किसी ने उसकी जाति और धर्म का मसला नहीं उठाया | लेकिन उसके बाद के घटनाक्रम में असद , अतीक और अशरफ की मौत पर जिस तरह की राजनीति की जा रही है वह इस बात का परिचायक है कि समस्या की जड़ों को उखाड़ फेंकने के बजाय उनको सींचने का प्रयास चल पड़ा है | कर्नाटक के चुनाव में लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय के समर्थन के लिए राजनेता सब कुछ करने तैयार हैं | यही वजह है कि भाजपा , कांग्रेस और जनता दल ( सेकुलर ) नामक तीनों प्रतिद्वंदियों के जो बड़े नेता हैं उनकी योग्यता और अनुभव से ज्यादा उनके उक्त समुदाय से जुड़े होने की बात  कही जा रही है | उ.प्र में एक नेता ने रामचरित मानस की एक चौपाई को लेकर अनाप – शनाप बयान दिए और उसकी प्रतियाँ भी जलवाईं | लेकिन अखिलेश यादव ने उनको अपना राष्ट्रीय पदाधिकारी बना दिया क्योंकि उनके हाथ में उनकी जाति के वोट हैं | हालांकि वे खुद पिछला चुनाव हार चुके थे | राजनीति ने अपने   स्वार्थ के लिए जातिगत ध्रुवीकरण का जो खेल खेला वह उसके ही गले पड़ने  लगा है | किसी नेता की पहिचान उसकी विचारधारा से नहीं बल्कि उसकी जाति से होना लोकतंत्र के लिए कितना नुकसानदेह है ये किसी से छिपा नहीं हैं | बीते कुछ दशक में ये  बीमारी बढ़ती ही जा रही है | कुछ समय पहले राजस्थान में ब्राह्मणों का बड़ा सम्मलेन हुआ जिसमें आरक्षण की मांग तेजी से उछली | अन्य राज्यों में भी उच्च जातियां अब आर्थिक आधार पर आरक्षण के  लिए दबाव बनाने लगी हैं | चुनावी मौसम में ये चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है | सवाल ये है कि मौजूदा हालातों में आरक्षण से लाभान्वित वर्ग को हासिल क्या हो रहा है ? जिस तरह से सरकारी नौकरियां घटती चली जा रही हैं उसे देखते हुए आने वाले एक दशक के भीतर तो सरकार का आकार और छोटा होगा जिसकी शुरुआत डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल से होने लगी थी | ऐसे में आरक्षित वर्ग के शिक्षित लड़के – लड़कियों के लिये भी सरकारी नौकरी के अवसर निरन्तर कम हो रहे हैं | लेकिन कोई भी राजनीतिक दल जाति समूहों को ये बता पाने का साहस नहीं कर पा रहा कि आरक्षण के जरिए सरकारी नौकरी हासिल करने के अवसर पूर्ववत नहीं रहे इसलिए योग्यता ही काम आयेगी | आज भी दलित और पिछड़ी जातियों के अनेक युवक – युवतियां सरकारी नौकरी की मृग – मारीचिका में फंसने के बजाय स्वरोजगार के जरिये आजीविका चला रहे हैं | अब तो दलित चेंबर ऑफ कामर्स जैसे संगठन भी बन गये हैं जो इस बात का प्रमाण है कि यदि व्यक्ति में उद्यमशीलता हो तो वह  किसी का मोहताज नहीं रहेगा | सत्ता  में आने के लिए आसमानी ख्वाब दिखाने वाले नेता दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए नए – नए वायदों की झड़ी लगा देते हैं | जबकि  पिछली बार किये वायदों को ही  ईमानदारी से पूरा किया जाए तब इनकी जरूरत ही न पड़े | समय आ गया है जब राजनीतिक दलों द्वारा  जनता को भुलावे में रखने की बजाय असलियत से वाकिफ कराया जाए | देश के सामने आज आर्थिक और सामाजिक जितनी भी समस्याएँ हैं उनका सबसे बड़ा कारण  चुनाव जीतने के लिए किए जाने वाले अव्यवहारिक वायदे हैं  | आरक्षण का  दायरा जिस प्रकार बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए ये समस्या दिन ब दिन गंभीर होती जायेगी  | आर्थिक  आधार पर आरक्षण की मांग जिस तरह से बढ़ रही ही उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि समाज में जातिगत भेदभाव मिटाने की बजाय  ईर्ष्या और वैमनस्यता बढ़ती चली जा रही है |  हर बार आश्वासन देकर बात टाल दी जाती है | लेकिन असंतोष के बीज कुछ समय बाद फिर अंकुरित होने लगते हैं | जिन राज्यों में चुनावी माहौल है उनमें इसी तरह के आन्दोलन जोर पकड़ रहे हैं जिससे सामाजिक सद्भाव भी प्रभावित होता है | इस प्रवृत्ति को यदि नहीं रोका जाता तो बड़ी बात नहीं हर जाति अपनी  राजनीतिक पार्टी  बना ले क्योंकि आजकल एक – दो विधायक और सांसद भी सरकार बनाने और गिराने के काम आ जाते हैं |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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