Saturday 22 April 2023

राष्ट्र की राजनीति पर असर डालेगा महाराष्ट्र




रांकापा अध्यक्ष शरद पवार मौजूदा भारतीय राजनीति में सबसे चालाक और अविश्वसनीय व्यक्ति हैं | उनके राजनीतिक उद्भव की शुरुआत अपने गुरु वसंत दादा पाटिल को धोखा देने के साथ हुई थी | उसके बाद भी वे राजनीतिक चातुर्य के बल पर पहले महाराष्ट्र और बाद में राष्ट्रीय राजनीति में अपने पैर जमाये रहे | बीते अनेक वर्षों से स्वास्थ्य अच्छा नहीं होने के बाद भी वे जिस तरह से सकिय हैं , वह आसान नहीं है | उनकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि वे अपने राजनीतिक शत्रु से भी मित्रता बनाये रखते हैं | इसका सबसे बड़ा उदाहरण शिवसेना संस्थापक स्व. बाल ठाकरे के साथ उनके करीबी सम्बन्ध थे  , जबकि वैचारिक दृष्टि से दोनों विपरीत ध्रुव कहे जाते थे | सोनिया गांधी के विदेशी मूल का विवाद खड़ा करने के बाद कांग्रेस छोड़कर राकांपा ( राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ) बनाने का उनका पैंतरा कांग्रेस को न सिर्फ महाराष्ट्र अपितु राष्ट्रीय स्तर पर कितना नुकसानदेह साबित हुआ , ये सर्वविदित है | लेकिन कुछ साल बाद वे कांग्रेस के साथ मिलकर राजनीति करने लगे और अनेक नाजुक अवसरों पर गांधी परिवार के सलाहकार बनकर उभरे | बीते अनेक सालों से वे गैर भाजपाई विपक्ष के प्रमुख स्तम्भ बने हुए हैं | लेकिन इस मराठा नेता के अपने घर में भी उत्तराधिकार की लड़ाई  अंदर – अंदर चल रही है | जिस तरह स्व. बाल ठाकरे ने भतीजे राज ठाकरे को पीछे धकेलते हुए बेटे उद्धव को उत्तराधिकार सौंप दिया , ठीक उसी तरह श्री पवार ने भी  भतीजे अजीत जो कि उनके अघोषित सियासी वारिस समझे जाते थे , की जगह अपनी बेटी सुप्रिया सुले को  बारामती सीट से लोकसभा के लिए जितवाकर ये संकेत दे दिया कि उनके बाद पार्टी की कमान किसके पास रहेगी ? इसे लेकर परिवार में विवाद की स्थिति पहले भी बनी |  लेकिन 2019 के विधान सभा चुनाव के बाद जब शिवसेना और भाजपा के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर गाँठ बंधी तब अचानक अजीत ने सुबह – सुबह बगावत करते हुए देवेन्द्र फड़नवीस के साथ मिलकर सरकार बनाली जिससे न सिर्फ पवार परिवार अपितु समूचा राजनीतिक जगत हतप्रभ रह गया किन्तु शाम होते – होते तक चाचा ने बाजी पलट दी और परिवार की दुहाई देकर अजीत को  वापस ले आये तथा उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनवाकर उन्हें उपमुख्यमंत्री बनवा दिया | बाद में शिवसेना में हुई बगावत की वजह से वह सरकार भी चलती बनी | साथ ही  अजीत सहित पवार कुनबे पर अनेक मामलों में जांच की तलवार लटकने लगी | ज्यों – ज्यों लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं देश में भाजपा विरोधी विपक्षी मोर्चा बनाये जाने की मुहिम तेज  है | अपनी वरिष्टता की वजह से श्री पवार इसके केंद्र बिंदु बने रहने के बाद भी अपनी मंशा जाहिर नहीं  होने दे रहे | यद्यपि विपक्षी गठबंधन के लिए प्रयासरत सभी नेतागण उनसे सम्पर्क और सलाह करते रहे किन्तु संसद में अडानी समूह की जाँच हेतु जेपीसी के गठन की मांग को लेकर चल रहे गतिरोध के बीच पहले तो श्री पवार ने राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर पर की जाने वाली आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए कांग्रेस को चेतावनी दी  और उसी के बाद अडानी मामले में जेपीसी की मांग को अर्थहीन बताते हुए विपक्षी एकता के प्रयासों को पलीता लगाने की शुरुआत कर दी | उसी समय से ये कयास लगाया जाने लगा कि वे नया खेल रचने वाले हैं ,  जिसका अंत बजाय मोदी विरोधी मोर्चा बनाने के , भाजपा के साथ गठबंधन करते हुए महाराष्ट्र और केंद्र की सत्ता में हिस्सेदारी के रूप में सामने आयेगा | उल्लेखनीय है कुछ दिन पूर्व नागपुर में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के निवास पर भी श्री पवार गये थे और उसके बाद ही प्रेस क्लब में उन्होंने अडानी के बचाव में बयान दिया | और फिर  उनकी बेटी सुप्रिया ने ये कहकर सबको  चौंका दिया कि अगले 15 दिनों में दो धमाके होंगे , पहला दिल्ली और दूसरा महाराष्ट्र में | इसके पहले कि लोग इसका निहितार्थ समझ पाते अजीत ने प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में चल रहे विवाद की आलोचना  कर डाली | इस पर उद्धव ठाकरे गुट के मुखपत्र सामना में संजय राउत द्वारा लिखी गयी टिप्पणी पर अजीत और उनके बीच तीखी बयानबाजी हुई | लेकिन श्री पवार  अभी तक कुछ भी नहीं बोले  | हालाँकि अजीत ने जोर देकर कहा कि वे रांकापा नहीं छोड़ रहे और अंत तक उसी में रहेंगे लेकिन अपने ट्विटर हैंडिल से पार्टी का चिन्ह और झंडा हटाकर  संशय का माहौल बना दिया | राजनीतिक प्रेक्षक ये मान  रहे हैं कि एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना छोड़कर आये विधायकों की सदस्यता पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय प्रतिकूल आ सकता है | लिहाजा भाजपा ने अभी से आपातकालीन व्यवस्था के अंतर्गत अजीत की महत्वाकांक्षाएँ फिर जगा दी हैं | ये भी कहा जा रहा है कि उन्हें मुख्यमंत्री तक बनाया जा सकता है | गत दिवस अजीत ने प्रधानमन्त्री श्री मोदी की शान में जिस तरह कसीदे पढ़े उसके बाद ये लगने लगा है कि अजीत और भाजपा के बीच जुगलबंदी तय  है और सही समय पर उसका ऐलान किया जावेगा | लेकिन एक सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि यदि ऐसा हुआ तब क्या ये श्री पवार की मर्जी से होगा या उनको हाशिये पर धकेलते हुए भतीजा इस बार अचूक वार करेगा | कुछ लोगों का मानना है कि श्री पवार ही इस घटनाक्रम के पीछे हैं और वे अजीत की ताकत का आकलन करने के बाद ही अंतिम फैसला करेंगे | कुछ दिन पहले ही गौतम अडानी के साथ उनकी अकेले में हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस सकते में है | हालाँकि श्री पवार ने अब तक भाजपा और श्री मोदी की तारीफ़ में कुछ भी नहीं कहा किन्तु अपने भतीजे द्वारा दिए जाने वाले बयानों के बारे में  भी वे मौन हैं | बेटी सुप्रिया की उस टिप्पणी पर भी वे कुछ नहीं बोले कि अगले 15 दिनों में दो धमाके होंगे  | बहरहाल संसद के  बजट सत्र का अधिकांश समय  हंगामे में नष्ट होने पर श्री पवार ने जिस तरह विपक्ष पर निशाना साधा और फिर सावरकर तथा अडानी को लेकर कांग्रेस के विरुद्ध नीति अपनाई , उससे उनके भावी क़दमों को लेकर अनिश्चितता और उत्सुकता दोनों हैं | ये भी हो सकता है कि दूसरों को धोखा देकर राजनीति के शिखर पर पहुँचने  वाले श्री पवार अपने भतीजे के हाथों मात खा जाएँ | लेकिन  पैंतरेबाजी में माहिर श्री पवार वक्त की नजाकत को भांपकर भतीजे और बेटी दोनों के लिए सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की व्यवस्था करने के लिए भाजपा से हाथ मिला लें तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि वे जानते हैं कि कांग्रेस में उनके लिए जगह होगी नहीं और ये भी कि अजीत पर ज्यादा  दबाव बनाये रखने पर यदि वह बगावत कर गए तब फिर श्री पवार की दशा भी वही हो जायेगी जो आखिर – आखिर में स्व. मुलायम सिंह यादव की हुई थी | ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले कुछ दिन तक राष्ट्र की राजनीति महाराष्ट्र से चलेगी |

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