Monday 3 April 2023

रेलवे के आधुनिकीकरण में साधारण यात्रियों की उपेक्षा न हो



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जो काम कर रहे हैं वह निश्चित रूप से उत्साहवर्धक है | देश भर में राजमार्ग , पुल , फ्लाय ओवर आदि बनाने के लिए भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की विरोधी भी तारीफ करते हैं | इसी  तरह देश में हवाई अड्डों और बंदरगाहों के निर्माण का अभियान भी जिस तेजी से चल रहा है जिसकी  वजह से उड्डयन  और नौ परिवहन के क्षेत्र में जबरदस्त तरक्की दिखने लगी है | महानगरों से निकलकर अब मेट्रो ट्रेन अपेक्षाकृत छोटे शहरों में शुरू किये जाने का काम भी जोरों पर है | हाल ही में  शहरी परिवहन के एक और नए साधन के रूप में रोप वे का भी जिक्र आया | ये भी पता चला कि अभी तक इसका प्रयोग पर्वतीय क्षेत्रों में ही किया जाता था किन्तु अब शहरों में भी एक स्थान से दूसरे तक जाने के लिए रोप वे की सुविधा उपलब्ध होगी | ये सब सुनने से लगता है कि भारत वाकई में विकसित देशों  की कतार में खड़ा होने के करीब है | वैसे भी परिवहन सुविधा किसी भी देश की गतिशीलता का परिचायक होती है |  लेकिन इस सबके बावजूद रेल भारत में आम जनता के आवागमन का सबसे सुलभ और सस्ता साधन है | आजादी के बाद नई रेल पटरियां बिछाने के काम पर तो जरूरत के मुताबिक ध्यान नहीं दिया गया | लेकिन राजनीतिक नेताओं के दबाव की वजह से नई रेलगाड़ियां शुरू की जाती रहीं जिनमें करोड़ों यात्री प्रतिदिन सफर करते हैं | पटरियों की कमी का कारण ही है कि विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क होने के बावजूद सुविधा , सुरक्षा और समयबद्धता के मामले में भारतीय रेल अब भी विश्वस्तरीय मापदंडों से पीछे है |  सुपरफास्ट कही जाने वाली गाड़ियाँ तक अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद भी  घंटों तो क्या अनिश्चितकालीन विलम्ब से चलती हैं जिनके लिए किसी को भी जवाबदेह ठहराने की व्यवस्था हमारे देश में अब तक नहीं बनी | हालाँकि लम्बी दूरियों की गाड़ियों के चलाये जाने से देश के एक कोने से दूसरे में जाने वालों को आसानी हो गयी है किन्तु सोचने वाली बात ये भी है कि ऐसी गाड़ियों में वातानुकूलित और स्लीपर श्रेणी के डिब्बों की भरमार होती है जबकि साधारण टिकिट वालों के लिए बमुश्किल दो डिब्बे | ऐसे में भीड़ वाले समय में साधारण यात्रियों को अकल्पनीय  कष्ट उठाने पड़ते हैं  | बहरहाल भारतीय रेल ने देश को जोड़े रखने का जो काम किया उसके लिए उसकी प्रशंसा न की जाए तो अन्याय होगा किन्तु आजकल बात  वंदे भारत एक्सप्रेस की चल्र रही है जिनमें वैश्विक स्तर की सुविधाओं के साथ तेज गति और समयबद्धता के अलावा दुर्घटना रोकने की तकनीकी व्यवस्था भी रहेगी |  वन्दे भारत गाड़ियों  को केंद्र सरकार नए भारत के प्रतीक के तौर पर पेश कर रही है इसलिए अधिकतर स्थानों पर  हरी झंडी दिखाने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मौजूद रहते हैं | इन गाड़ियों के बारे में यात्रियों की प्रतिक्रियाएँ भी बेहद उत्साहवर्धक हैं | इनके कारण विदेशी पर्यटक भी आकर्षित होंगे और हवाई सेवाओं पर दबाव कम होने से उनकी टिकिटें भी सस्ती होंगी जिनको लेकर काफी मुनाफाखोरी होती रहती है | लेकिन इस तरह की आधुनिक गाड़ियाँ चलाने के साथ ही आम जनता की सुविधा को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए | रेलवे अपने स्टेशनों को भी हाई टेक बना रहा है | प्रधानमंत्री ने इस बारे में अपने पहले कार्यकाल  उनको हवाई अड्डे जैसा स्वरूप देने की परिकल्पना रखी थी जिस पर कोरोना काल में काफी काम हुआ | इस दौरान  नई पटरियां बिछाने के साथ ही पुलों में सुधार आदि के काम तेजी से कर लिए गए | संकटकाल का वह रचनात्मक उपयोग नेतृत्व की दूरदर्शिता और रेलवे प्रशासन की कर्मठता का उदाहरण है | हालाँकि रेलवे में आधुनिकता के साथ  गुणवत्ता के विकास की कीमत यात्रियों को बढ़े हुए किराए और रियायतें बंद होने  के रूप में चुकानी पड़ रही है | विशेष रूप से वरिष्ट नागरिकों में इसे लेकर बेहद नाराजगी है |  कोरोना के बाद उत्पन्न हालातों में ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं था लेकिन अब अर्थव्यस्था सुचारु रूप से चल रही है जिसका प्रमाण बीते वित्तीय वर्ष में जीएसटी संग्रह में हुई 22 फीसदी की वृद्धि है | तब रद्द की गयी  रियायतों को  पुनः प्रारंभ किया जाना भी जनहित ही होगा | इस बारे में रेल मंत्री की तरफ से अनेक आश्वासन भी आये लेकिन नतीजा शून्य ही है | आम जनता के मन में ये डर है कि सार्वजनिक क्षेत्र के इस सबसे बड़े उपक्रम में जिस तरह से निजीकरण का प्रवेश हो रहा है उसे देखते हुए कहीं वह मुनाफाखोरी के मकड़जाल में फंसकर संवेदनशीलता को किनारे न रख दे | इसीलिये ये देखना जरूरी है कि निजीकरण का उपयोग सेवाओं और रखरखाव में गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भले ही किया जावे किन्तु वह लोगों का रोजगार छीने तथा आम जनता के कन्धों पर असहनीय बोझ बढ़े तो लोगों में उसे लेकर असंतोष बढ़ेगा जिसकी बानगी अक्सर देखने मिलती है | सरकार कुछ मार्गों पर निजी मालगाड़ियाँ चलाने की जिस योजना पर काम कर रही है वह स्वागतयोग्य है | लेकिन यात्री गाड़ियों का परिचालन निजी हाथों में सौंपने के पहले ये देखना जरूरी रहेगा कि इससे रेलवे का अपना ढांचा कहीं बैठ न जाए | भारतीय रेल राष्ट्रीय एकता का चलता फिरता संदेश है | आम भारतीय यात्री की ये आज भी पहली पसंद है | इसीलिए इसे उसकी पहुंच में बनाये रखना जरूरी है | वंदे भारत जैसी गाड़ियां बेशक चलें किन्तु साधारण  हैसियत वाले  भारतीय नागरिक के हितों की उपेक्षा न हो इसकी चिंता रखना ही चाहिए | वरना  रेल के डिब्बे में लिखे उस वाक्य की सार्थकता खत्म हो जायेगी कि भारतीय रेल आपकी संपत्ति है |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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