Monday 17 April 2023

भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण सबसे बड़ी समस्या



बीते सप्ताह की अंतिम रात प्रयागराज में अपराधी सरगना अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की जिस तरह से हत्या हुई उससे पूरा देश सन्न रह गया |  पत्रकार बनकर आये तीन युवकों ने बेहद निकट से दोनों को गोली मार दी जिससे वे कुछ क्षणों के भीतर ही चल बसे | समूचा घटनाक्रम महज 15 से 20 सेकेण्ड में खत्म हो गया और हत्यारों ने ब आत्म समर्पण कर दिया | सनसनीखेज बात ये है कि दर्जन भर से ज्यादा जो पुलिस कर्मी अपराधियों के साथ तैनाती में थे ,  गोलियाँ  चलते समय पीछे हट गए | अर्थात किसी ने भी हमलवारों पर पलटवार करने का  साहस नहीं दिखाया | हो सकता है पुलिसवाले कुछ समझ पाते उसके पहले ही हत्यारों ने  अपना काम  करने के बाद खुद को उनके हवाले कर दिया हो | लेकिन ज्यादातर लोग इस बात के प्रति आशंकित हैं कि पुलिस की निष्क्रियता किसी  षडयंत्र का हिस्सा थी | जिसका खुलासा उच्च स्तरीय जो जाँच बिठाई गयी , उसमें हो सकता है | बहरहाल इस काण्ड से बहुत सी वे बातें सामने आते – आते रह गईं जिनके कारण उ.प्र ही नहीं अपितु उसके बाहर के भी कुछ ऐसे लोग लपेटे में आते जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तौर पर अतीक को तांगे वाले के बेटे से संसद तक पहुँचने में मदद की और जिनके संरक्षण के कारण ही उसके ऊपर चल रहे 100 अपराधिक प्रकरणों का निपटारा नहीं हो सका | अतीक के आतंक का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि तकरीबन 10 न्यायाधीशों ने उसके मामलों की सुनवाई से अपने को अलग कर लिया था | समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव और उनके दाहिने हाथ कहे जाने वाले अनुज शिवपाल के अतीक से कितने निकट सम्बन्ध थे ये उ.प्र की राजनीति को जानने  वाले प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात है | हालाँकि बीते कुछ समय से अतीक और सपा के बीच खुन्नस हो गयी थी | हाल ही में ये सुनने मिल  रहा था कि बसपा प्रमुख मायावती अतीक की पत्नी शाइस्ता को प्रयागराज से महापौर प्रत्याशी बनाने जा रही थीं किन्तु उसी बीच उमेश पाल हत्याकांड हो जाने से समूचा परिदृश्य बदल गया और शाइस्ता फरार हो गयी जिनका आज तक पता नहीं चल सका | अपना दल से भी अतीक का रिश्ता रहा | बीते कुछ समय से उसके असदुद्दीन ओवैसी के निकट आने की चर्चा थी | यही वजह है कि उसकी हत्या पर राजनीतिक नेता अपनी फसल काटने में जुटे हैं | दरअसल अतीक का पांच बार विधायक और एक बार लोकसभा सदस्य बनना उस लोकतंत्र के माथे पर धब्बा है जिसके बारे में आजकल कुछ ज्यादा ही छाती पीटी जा रही है | लेकिन केवल अतीक ही क्यों , उ.प्र और बिहार के अलावा भी अपराधियों के राजनीति में आकर ताकतवर बनने की लंबी सूची है | और कोई भी राजनीतिक दल यहाँ तक कि कांग्रेस और भाजपा जैसे मुख्य धारा के राष्ट्रीय दल भी अपराधियों को सत्ता के गलियारों में प्रतिष्ठित करने में किसी से पीछे नहीं हैं | जेल में बंद आपराधिक पृष्ठभूमि का कोई विधायक या सांसद जब राष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करने लाया जाता है तब संविधान की पवित्रता को होने वाले नुकसान की कल्पना आसानी से की जा सकती है | डा. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा अमेरिका से की गई संधि के विरोध में वामपंथियों द्वारा समर्थन वापस लिये जाने  के बाद संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में हिस्सा लेने अतीक अहमद को जेल से संसद तक लाया गया था | अर्थात जिस व्यक्ति को कानून ने समाज के लिए खतरा मानकर जेल में रखने की व्यवस्था की , वह केंद्र सरकार के बहुमत का फैसला करने  ससम्मान लाया गया | पराकाष्ठा तो तब हुई जब जेल में रहते हुए अपराधी सरगना शहाबुद्दीन  चुनाव जीत गया | सवाल ये है कि अपराधियों के सिर पर हाथ रखकर उन्हें फर्श से उठाकर अर्श तक पहुँचाने और फिर उनके लिए संसद और विधानसभा तक पहुंचने का रास्ता तैयार करने वाले राजनेता आखिर कब तक बचे रहेंगे ? पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर की इस बात के लिए सदैव तारीफ़ होती रही कि बिहार के चर्चित माफिया सरगनाओं से अपने रिश्तों को उन्होंने कभी नहीं छिपाया | इसी तरह स्व. मुलायम सिंह यादव ने अतीक सहित अन्य अपराधियों को राजनीति में आगे बढ़ने में जिस तरह सहायता और संरक्षण प्रदान किया वह सर्वविदित है | हाल ही में मोदी सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण देकर अलंकृत किया |  खुद भाजपाई भी राममंदिर के लिए आंदोलनरत कारसेवकों को गोलियों से भुनवा देने वाले शख्स को देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देने के औचित्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे | इसी तरह फूलन देवी को सांसद बनाना यदि सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा था तब कहने को कुछ बचता ही कहाँ है ? कुख्यात अपराधियों के अलावा दौलत के बल पर राजनीतिक दलों के ज़मीर को खरीद लेने के उदाहरण तो आज की संसद और विधानसभाओं में थोक के भाव देखे जा सकते हैं | कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं है कि भ्रष्टाचार के साथ ही राजनीति का अपराधीकरण बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है | चुनाव आयोग इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय के पाले में गेंद सरका देता है और वहां से सुनने मिलता है कि कानून बनाना उसका नहीं अपितु संसद का काम है | दुर्भाग्य से संसद के पास इस विषय में सोचने की फुर्सत नहीं है | ऐसे में लोकतंत्र और  संविधान जैसे शब्दों की परिभाषा ही बदलती जा रही है | अतीक को पहले मामले में सजा होने के पहले तक वह महज आरोपी था और चाहता तो चुनाव लड़कर मंत्री भी बन सकता था क्योंकि अब आरोप लगने  पर गद्दी छोड़ने का रिवाज नहीं रहा और जेल में  बंद होने के बाद भी मंत्री पद पर बने रहने की नई परम्परा कायम हो चुकी है | ये सब देखते हुए जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी क्योंकि लोकतंत्र उसके लिए  , उसके द्वारा और उसी की अपनी व्यवस्था है | यदि वह अतीक और शहाबुद्दीन जैसे बाहुबलियों को सांसद और विधायक बनाती रहेगी तो फिर दूसरों पर उंगली उठाने का अधिकार भी  खो बैठेगी |


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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