Sunday 16 April 2023

उन सफेदपोशों का पर्दाफाश भी जरूरी जो इन सांपों को पालते -पोसते हैं



माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की कल रात प्रयागराज में हुई हत्या ने राजनीतिक हलचल के अलावा योगी प्रशासन की भी नींद उड़ा दी है। इस संबंध में गुप्तचर एजेंसियों के साथ ही प्रयागराज पुलिस की भूमिका भी जांच का विषय है। मौके पर मौजूद 17 पुलिसकर्मियों को तो निलंबित कर दिया गया किंतु सवाल ये है कि हत्यारे युवकों ने जिस आसानी से अपना काम किया उससे लगता है कि अतीक और अशरफ के साथ चल रहे पुलिस वाले या तो पूरी तरह बेफिक्र थे या फिर उनमें से कुछ की भूमिका  संदिग्ध थी। हत्यारे साधारण अपराधी बताए जा रहे हैं , ये देखते हुए उन्होंने महज प्रसिद्ध होने के लिए माफिया सरगना की हत्या जैसा जोखिम उठाया और वह भी कैमरों के सामने , ये बात गले नहीं उतरती। ऐसा लगता है वे तीनों किसी अन्य के लिए काम कर रहे थे। अतीक का पुलिस रिमांड मिलते ही ये खबरें आने लगीं कि उसने उमेश पाल की हत्या की योजना का खुलासा कर दिया है। यही नहीं तो अनेक ऐसे लोगों के नाम भी उगल दिए जिनसे उसका लेन - देन था। पूछताछ के तत्काल बाद की  गई छापेमारी में अनेक बिल्डर , चार्टर्ड एकाउंटेंट  और राजनीतिक नेता जांच एजेंसी के राडार पर आ गए थे। ये आशंका भी गलत नहीं है कि अभी भी पुलिस महकमे में अतीक के टुकड़ों पर पलने वाले लोग बैठे हों जो पूरी जानकारी संबंधित लोगों तक पहुंचाते रहे। अपराधों की दुनिया में बड़े काम के लिए छोटे लोगों को औजार बनाया जाना आम है। ऐसे में ये आशंका प्रबल है कि ज्योंही  अतीक को संरक्षण देने और उसके साथ आर्थिक रिश्ते रखने वालों के नाम उजागर होने का समय आया त्योंही उसका काम तमाम कर दिया गया। इस तरह उसकी हत्या से  अनेक ऐसे पन्ने अधखुले रह सकते हैं जो राजनीति के अनेक चमकदार चेहरों को काला करने के साथ ही उनको जेल भिजवा सकते थे । 2017 के विधानसभा चुनाव में अतीक की टिकिट काटने को लेकर अखिलेश यादव की  चाचा शिवपाल से तकरार हो गई थी। जिसके बाद शिवपाल ने  सपा छोड़ नया दल बना लिया था। आज चाचा - भतीजे दोनों अतीक की हत्या पर एक साथ योगी सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं। लेकिन उसके आपराधिक कारनामों के विरोध में उनके मुंह से एक शब्द नहीं फूट रहा। यही हाल मायावती का भी है। कांग्रेस इस मुद्दे पर बंटी हुई है। जबकि ओवैसी का मातम तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। दरअसल उ.प्र में स्थानीय निकाय चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में सभी दलों में मुस्लिम मतों को खींचने की होड़ मची है। यही वजह है कि सपा ,बसपा और ओवैसी झांसी में हुए असद के  एनकाउंटर के बाद से ही मुसलमानों की मिजाजपुर्सी में जुटे हुए थे। कल रात हुए हत्याकांड के बाद से तो मुसलमानों के बीच अतीक को शहीद बनाकर उनके मन में ये बात बिठाने की कोशिश शुरू हो गई है कि योगी सरकार अपराधियों के सफाए के नाम पर केवल उनकी जमात पर ही निशाना साध रही है। बहरहाल , अतीक और अशरफ के एक साथ मारे जाने के बाद हत्यारे युवकों से पुलिस क्या और कितना उगलवा पाती है ये जिज्ञासा का विषय है। उनके पास हथियार मिलने से एक बात तो तय है कि वे साधारण अपराधी नहीं थे । जिस आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अतीक और अशरफ को ढेर करते ही पिस्तौलें फेंक हाथ उठाकर सरेंडर - सरेंडर की आवाजें लगाना शुरू कर दिया और एक तो जमीन पर ही लेट गया , उससे उनके पेशेवर होने का सन्देह गलत नहीं है। अगर उनका उद्देश्य केवल शोहरत हासिल करना था तो वे अतीक और अशरफ को चांटा मारकर भी चर्चित हो जाते , जिसकी सजा भी मामूली थी।लेकिन हत्या जिस तरह की गई उसके बाद उनकी जिंदगी जेल के सीखचों के पीछे  कट जायेगी। अब ये पुलिस सहित अन्य जांच एजेंसियों पर निर्भर है कि उनसे हत्या के पीछे की असली वजह उगलवा पाती हैं या नहीं ? उन तीनों युवकों की पीठ पर किसी नेता , व्यवसायी अथवा विदेशी संगठन का हाथ होने की आशंका के चलते सच्चाई सामने आना जरूरी है ताकि अतीक को प्यादे से वजीर बनवाने के बाद सस्ते में निपटाने वालों के चेहरे बेनकाब कर राजनीति और अपराध जगत का याराना उजागर किया जा सके। योगी सरकार ने अपराधियों के विरुद्ध जो अभियान चला रखा है उसकी देश भर में बेहद अनुकूल प्रतिक्रिया है । लेकिन  इस कांड के बाद बात अब केवल अपराधियों तक ही नहीं अपितु उन सफेदपोशों तक भी पहुंच गई है जो अपने स्वार्थों के लिए इन जहरीले सांपों को पालते - पोसते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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