Thursday 20 April 2023

जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का इंतजार आखिर कब तक



चूंकि भारत में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई इसलिए  गत दिवस जब संरासंघ के जनसँख्या कोष के जरिये ये जानकारी प्रसारित हुई कि भारत की जनसँख्या चीन से 30 लाख ज्यादा अर्थात 142 . 86 करोड़ हो गयी , तब ये सवाल स्वाभाविक तौर पर उठा कि विश्व संस्था द्वारा दिए इस आंकड़े की प्रामाणिकता क्या है ? हालांकि सूचना क्रांति के सूत्रपात के बाद किसी भी विषय की  जानकारी हासिल करना आसान हो गया है | इस आधार पर ये माना जा सकता है कि भारत और चीन में आबादी की वृध्दि की औसत दर सहित सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से जनसंख्या कोष ने उक्त निष्कर्ष निकाला होगा | जन्म और मृत्यु के पंजीयन से भी काफी कुछ पता चल जाता है | इस बारे में एक बात तो बिलकुल साफ़ है कि बीते दो साल में चीन में जन्मदर घटने से भारत की जनसंख्या का आंकड़ा उससे ज्यादा होने में संशय नहीं होना चाहिए | दूसरी तरफ हमारे देश  में लम्बे समय से जनसँख्या नियंत्रण के लिए चलाया जाने वाला परिवार कल्याण जिसे शुरू में परिवार नियोजन कार्यक्रम कहा जाता था , एक तरह से ठप्प पड़ गया है | अब तो दीवारों पर दो या तीन बच्चे होते हैं घर में अच्छे और उस जैसे अन्य नारे भी नजर नहीं आते | यद्यपि एक बड़ा तबका ऐसा है जिसने छोटे परिवार की सलाह को पूरी तरह आत्मसात कर लिया | अनेक नव दंपत्ति ऐसे भी हैं जो एक ही बच्चे को जन्म देना पसंद कर रहे हैं | यद्यपि इसके पीछे बच्चों के लालन - पालन की समस्या और फिर उसकी शिक्षा पर होने वाला खर्च भी कारण है | कामकाजी महिला के लिए तो एक ही बच्चे की देखभाल कठिन होती है | संयुक्त परिवारों के टूटते जाने से भी कम बच्चे पैदा करने का चलन बढ़ा है | लेकिन चिंता  का विषय ये है कि आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े लोगों में अभी भी परिवार को छोटा रखने के प्रति अपेक्षित गंभीरता नहीं आई है | बेटे की चाहत में तो अनेक पढ़े लिखे दंपत्ति तक तीन – चार संतानों को जन्म दे देते हैं | इसका अलावा मुस्लिम समाज में परिवार को सीमित रखने के विरोध में जो मानसिकता है उसकी वजह से उनके बीच छोटे परिवारों की कल्पना साकार नहीं हो पाती | हालाँकि शिक्षित होने के बाद अनेक मुस्लिम परिवारों ने परिवार को नियोजित करने  की बुद्धिमत्ता दिखाई है । लेकिन धर्मगुरुओं द्वारा इस बारे में जिस तरह की दकियानूसी सोच फैलाई जाती है उसकी वजह से एक कदम आगे और चार कदम पीछे वाली स्थिति मुसलमानों के बीच है | हालाँकि भारत विश्व में सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है लेकिन इतनी बड़ी युवा शक्ति को मानव संसाधन में परिवर्तित करने का वह कारनामा हम नहीं कर सके जो  चीन ने दशकों पूर्व कर दिखाया | यहाँ तक कि जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने के लिए एक बच्चा वाला नियम भी वहां सख्ती से लागू किया गया | यद्यपि साम्यवादी व्यवस्था होने से उसके लिए  वैसा कर पाना संभव हो सका | जबकि हमारे देश में नसबंदी का मुद्दा भी 1977 के लोकसभा  चुनाव में इंदिरा गांधी की  पराजय का एक कारण बना |  उस चुनाव के बाद बनी केंद्र सरकार ने ही परिवार नियोजन विभाग का  नाम परिवार कल्याण कर दिया | कालान्तर में  सरकार भी इसके प्रति उदासीन सी हो चली और उसने छोटे परिवार रखने या न रखने का फैसला लोगों पर ही छोड़ दिया | उदारीकरण के बाद देश का माहौल जिस तरह बदला उसमें जमीन से जुड़े बहुत से ऐसे सवाल हाशिये पर सरका दिए गए जिनका देश के विकास और भविष्य से सीधा रिश्ता है , जिनमें छोटा परिवार भी कहा जा सकता है | यद्यपि इस समस्या के इलाज हेतु जनसंख्या नियंत्रण  कानून बनाये जाने की बात भी लम्बे समय से सुनाई दे रही है किन्तु वोट बैंक की राजनीति का दबाव इतना जबरदस्त है कि सत्ता में बैठे लोग चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पाए | 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से इस कानून की चर्चा काफी तेजी से चली | तीन तलाक संबंधी फैसले के बाद तो ऐसा लगने लगा कि केंद्र सरकार जल्द ही जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए संसद में कानून पेश करेगी | लेकिन कोरोना आ जाने से सरकार के कदम रुक गए | और फिर नागरिकता संशोधन और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के प्रावधानों का जिस तरह से मुस्लिम समाज के साथ विपक्ष ने विरोध किया उससे भी केंद्र सरकार के कदम ठिठक गए | ऐसे में भले ही गत दिवस संरासंघ के जनसँख्या कोष द्वारा जारी आंकड़े को पूरी तरह सही न मानें किन्तु इतना तो हर कोई जानता है कि भारत में लगातार बढ़ती जा रही जनसँख्या के कारण समूचा आर्थिक नियोजन गड़बड़ा रहा है | केंद्र सरकार द्वारा 80 करोड़ लोगों को खाद्यान्न  सुरक्षा के अंतर्गत मुफ्त अनाज के अलावा करोड़ों लोगों को आवास हेतु धनराशि दी जा रही है | हालांकि विकसित देशों में भी जमकर अनुदान दिया जाता है किन्तु उनकी आबादी कम  और प्रति व्यक्ति उत्पादकता ज्यादा होने से वे उसका बोझ आसानी से वहन कर लेते हैं | वहीं हमारे देश में करोड़ों लोग निठल्ले बैठे  हैं | इस बारे में रोचक बात ये है कि एक तरफ तो बेरोजगारी के सर्वकालिक उच्च आंकड़ों की बात कही जाती है वहीं दूसरी तरफ उत्पादन से जुड़े हर क्षेत्र में श्रमिकों के अभाव का रोना सुनाई देता है | इस विसंगति को दूर किये बिना विशाल  जनसंख्या को मानव संसाधन बनाकर उत्पादकता से जोड़ना  संभव नहीं होगा तथा मुफ्त में सरकारी अनाज खाने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती जायेगी | सरकार जनसँख्या नियन्त्रण कानून लाए या फिर और कोई उपाय  करे ,  परंतु  इस बारे में वोट बैंक की सोच से बाहर निकलना होगा | इस देश में रहने वाले प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को जब तक उत्पादन की प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जाता तब तक योजनाएं और आंकड़े कितने भी आकर्षक हों लेकिन नतीजा अपेक्षानुरूप नहीं रहेगा | समय आ गया है जब  आबादी को  बोझ की बजाय शक्ति बनाया जावे | जनसँख्या वृद्धि को नियंत्रित करना चूंकि देश हित में है इसलिए कुछ लोगों की नाराजगी की चिंता छोड़नी होगी क्योंकि 142 .86 करोड़ का आंकड़ा खुशी मनाने की बजाय चिंता को बढ़ाने वाला है |


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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