Saturday 15 April 2023

कर्नाटक का नाटक भारी पड़ेगा भाजपा को



कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए एक महीने से भी कम समय बचा है | विभिन्न राजनीतिक दल अपने – अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर रहे हैं | जिन विधायकों की टिकिट काट दी गयी अथवा जिन लोगों को उम्मीदवारी नहीं दी गयी उनमें से अनेक नाराजगी दिखा रहे हैं | पार्टी से त्यागपत्र देने के अलावा आनन – फानन दूसरी पार्टी में चले जाना या फिर निर्दलीय मैदान में उतरने की घोषणा खबरों में हैं |  सबसे ज्यादा बवाल मचा है भाजपा में | जिसके तमाम वरिष्ट नेता कोप भवन में जा बैठे हैं | इनमें पूर्व मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री स्तर के लोग भी हैं | हालाँकि भाजपा ने आसन्न खतरे को भांपते हुए पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को चुनाव अभियान की कमान सौंप दी है परन्तु ऐसा लगता है सत्ता  विरोधी रुझान से ज्यादा पार्टी को अपनी अंतर्कलह से खतरा है | आलाकमान मान - मनौवल  में जुटा हुआ है | लेकिन अनेक बुजुर्ग नेताओं द्वारा  टिकिट वितरण पर खुलकर रोष व्यक्त किये जाने से पार्टी के सामने जबरदस्त संकट उत्पन्न हो गया है | कुछ वरिष्ट नेताओं ने खुले  विरोध का रास्ता नहीं पकड़ा किन्तु राजनीति से सन्यास लेकर  दबाव बढ़ा दिया | आयु को उम्मीदवारी का मापदंड बनाकर जिन लोगों की टिकिटें काटी गईं वे दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के सामने  विरोध व्यक्त करने से भी नहीं चूके | इस असाधारण स्थिति की वजह से भाजपा आलाकमान काफी परेशानी में है क्योंकि दक्षिण के इस प्रवेश द्वार में यदि पराजय मिली तब निकट भविष्य में होने वाले राजस्थान , म.प्र , छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में उसके सामने परेशानी पैदा हो जायेगी | हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की स्थिति भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है किन्तु कर्नाटक के ही मल्लिकार्जुन खरगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाने के बाद से वह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने  में जुटी है | प्रदेश सरकार छवि के मामले में वैसे ही काफी बदनाम है जिस वजह से येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाये जाने का लाभ फ़िलहाल तो नजर नहीं आ रहा | अब तक जितने भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आये उनमें भी भाजपा कांग्रेस से पिछड़ती दिखाई गयी है | ऐसे में अब उसकी उम्मीदें जनता दल ( एस ) के प्रदर्शन पर टिकी हैं जो भाजपा  विरोधी मतों में बंटवारा करते हुए कांग्रेस का नुकसान कर सकता है | हालाँकि 2018 में भी ऐसा हो चुका है जब  भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी बहुमत से थोड़ी सी दूर रह गई | येदियुरप्पा ने शपथ भी ले ली किन्तु इस्तीफा देना पड़ा | बाद में जनता दल ( एस ) के कुमार स्वामी को समर्थन देकर कांग्रेस  ने मिली जुली सरकार भी बना ली जिसे कुछ समय बाद दलबदल करवाकर भाजपा ने गिरवा दिया और सत्ता हासिल कर ली | यही खेल बाद में म.प्र में भी  दोहराया गया | लेकिन चुनाव के ठीक पहले भाजपा में जिस तरह का नाटक कर्नाटक में चल रहा है वह उसके लिए खतरे  का संकेत है | दरअसल दूसरी पार्टी से आये लोगों के जरिये तात्कालिक लाभ अर्जित करने की नीति कालान्तर में नुकसानदेह साबित होती है | इन बाहरी लोगों की मिजाजपुर्सी में पार्टी के अपने भरोसेमंद कार्यकर्ताओं और तपे – तपाए नेताओं की उपेक्षा होती है | ये कहानी पूरे देश में चल रही है | राजस्थान में भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार की जांच को  लेकर अनशन  करने वाले सचिन पायलट को गत दिवस केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने पार्टी  में आने का न्यौता दे डाला | ऐसा नहीं है कि अन्य दलों से आये सभी लोगों का विरोध होता हो क्योंकि उनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जो वैचारिक तौर पर काफी मूल्यवान साबित होते हैं | असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और केरल के राज्यपाल आरिफ मो. खान उन लोगों में से हैं जिन्होंने पार्टी को अपने कार्य और विचार से मजबूती प्रदान की | लेकिन सतपाल मलिक जैसे भी हैं जो राज्यपाल रहते हुए भी प्रधानमंत्री की आलोचना करते रहे | प.बंगाल में तो भाजपा को इन दलबदलुओं का बेहद कड़वा अनुभव हुआ | पार्टी  अपने विस्तार के लिए नए लोगों को  जोड़े ये तो ज्ररूरी है लेकिन ऐसा करते समय उसे ये भी देखना चाहिए उनकी वजह से कहीं अपने घर में तो दरार नहीं पड़ रही | दूसरी बात ये कि एक कैडर आधारित पार्टी में जो नीति और सिद्धांतों की राजनीति करने का दावा करती है अनुशासन की डोर इतनी कमजोर कैसे होने लगी कि उसे अपंने खून पसीने से सींचने वाले भी सत्ता के मोहपाश में जकड़ गए | कर्नाटक जैसी  समस्या आने वाले समय में म.प्र में भी  आ सकती है क्योंकि यहाँ भी कांग्रेस से आये  दर्जन भर से ज्यादा नेता सत्ता में हिस्सेदार हैं जिनको लेकर विधानसभा चुनाव  के समय नाराजगी के हालात बन सकते हैं | यद्यपि कर्नाटक में भाजपा के लिये राहत की खबर ये है कि शरद पवार ने भी राकंपा के लगभग 50 प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है | लेकिन भाजपा अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छू सकेगी इसमें आज के हालात में तो संदेह है | हालाँकि उसे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री की छवि के कारण उत्तराखंड और गोवा की तरह कर्नाटक में भी उसकी नैया किनारे लग जायेगी किन्तु यही आशावाद उसे हिमाचल प्रदेश में ले डूबा था जो संयोग से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का गृह राज्य है | सही बात ये है कि सत्ता के सुखद सान्निध्य में रहकर भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के मनोभाव भी बदल गए हैं और नई भर्ती के तहत जो लोग पार्टी में आ रहे हैं उनके लिये राजनीति सेवा के बजाय एक पेशा है दौलत और शोहरत कमाने का जिनकी देखासीखी पार्टी का कथित देव - दुर्लभ कार्यकर्ता भी सत्ताभिमुखी होता जा रहा है |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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