Friday 14 July 2023

देश की राजधानी के ये हाल हैं तो ...



देश  की राजधानी इन दिनों पानी - पानी हो गई है। जिस यमुना को प्रदूषण का पर्यायवाची मान लिया गया है वह जबरदस्त  उफान पर है। उसका जल मानव निर्मित अवरोधों को धता बताते हुए भीतर तक घुस आया है । इसकी वजह से सारी व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो चली हैं। दिल्ली सरकार अपने को असहाय महसूस करने के बाद सेना से मदद मांग रही है। स्थिति की गंभीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी हजारों कि.मी दूर फ्रांस से भी दिल्ली के ताजा हालात पता कर रहे हैं । शिक्षण संस्थानों , विशेष रूप से विद्यालयों में तो पहले से ही अवकाश घोषित कर दिया गया है। हालांकि ये स्थिति केवल दिल्ली की नहीं है। इस साल मानसून आने के साथ ही राजस्थान ,  गुजरात , हिमाचल और दिल्ली में असाधारण तौर पर ज्यादा वर्षा होने से  सभी निकटवर्ती नदियां उफान पर हैं। राजस्थान में रेगिस्तानी इलाकों से सटे शहरों तक में जल प्लावन के नजारे हैं। यद्यपि ये कोई अनोखा अनुभव नहीं है। प्रतिवर्ष किसी न किसी राज्य में ऐसे हालात बनते हैं। कुछ दिन तो खूब हल्ला मचता है । शासन - प्रशासन के अलावा जनप्रतिनिधि गण, स्वयंसेवी संगठन तथा धर्मादा संस्थाएं राहत कार्यों में सहयोग देते हैं । आपदा प्रबंधन की टीमों के साथ सेना भी बचाव अभियान में जुटती है । ऐसे समय सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव की व्यवस्था करना। उस दृष्टि से जितना हो सकता है किया भी  जाता है। दिल्ली , राजस्थान , हिमाचल और पंजाब सभी में स्थानीय प्रशासन  जरूरत पड़ने पर सेना की सहायता भी ले रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सेना से मदद मांगी है। लेकिन इसका आशय ये भी है कि राज्य सरकार के पास इस तरह के हालात से निपटने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। और इसका कारण ये है कि किसी दुर्घटना और प्राकृतिक आपदा के समय राहत और बचाव का काम तो खूब होता है किंतु इसकी पुनरावृत्ति न हो , इस बारे में सोचने की बुद्धिमत्ता नहीं दिखाई जाती । 2014 में देश की सत्ता संभालते ही श्री मोदी ने 100 स्मार्ट सिटी की महत्वाकांक्षी योजना प्रारंभ की थी। इसके अंतर्गत चुनिंदा  शहरों में  सुनियोजित विकास का ढांचा खड़ा करने की योजना बनी । करोड़ों रुपए इन शहरों को दिए भी गए । कुछ में तो अच्छा काम हुआ , और हो रहा है , लेकिन ज्यादातर में जनता के धन की होली जलाई जा रही है। उसके पहले भी शहरों के विकास को लेकर जो अदूरदर्शी रवैया रहा उसी का दुष्परिणाम वर्षा काल में देखने मिलता है। जहां तक बात दिल्ली की है तो  वह केवल एक महानगर नहीं रहा। अपितु उसके साथ हरियाणा का गुरुग्राम ( गुड़गांव ) और उ.प्र के नोएडा तथा गाजियाबाद जैसे शहर जोड़कर एनसीआर ( राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) नामक वृहत स्वरूप दे दिया गया है। बढ़ती आबादी की वजह से राजधानी के  समीपवर्ती इलाकों में आवासीय क्षेत्र विकसित करना जरूरी भी था और मजबूरी भी किंतु ऐसा करते समय भविष्य की जरूरतों का ध्यान नेताओं और नौकरशाहों ने नहीं रखा जिसकी वजह से दो शहरों के बीच का खाली स्थान भी कांक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुका है। कुछ समय पूर्व म.प्र की राजधानी भोपाल में सरकार के सचिवालय में आग लग गई । बहुमंजिला इमारत होने से स्थानीय निकाय के पास अग्निशमन की जो व्यवस्था थी वह उतनी ऊंचाई की आग बुझाने में असमर्थ नजर आई । जिसके बाद वायुसेना  की मदद हेतु खुद मुख्यमंत्री ने गुहार लगाई। आजकल मझोले किस्म के शहरों तक में बहुमंजिला अट्टालिकाएं तानी जा रही हैं किंतु अग्निशमन की व्यवस्था दो - चार मंजिल से ज्यादा नहीं होने से लोगों की जान खतरे में बनी रहती है। दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे शहरों में यदि बाढ़ का पानी भरता है तो फिर ये कहना गलत नहीं होगा कि विकास की जो योजना बनाई गई उसमें दूरदर्शिता का नितांत अभाव था या फिर वह आज की जरूरत के लिहाज से अपर्याप्त हो चुकी है।  राष्ट्रीय राजधानी और अन्य प्रमुख शहर देश की छवि प्रदर्शित करते हैं। लेकिन मुंबई , चेन्नई , कोलकाता , बेंगलुरु इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसका कारण अनियोजित विकास और तदर्थ सोच ही है। बरसाती पानी की निकासी के लिए जो नाले बनाए गए थे , उन पर या तो अतिक्रमण हो गए या उनकी सफाई नहीं होती। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि कोई परेशानी या मुसीबत कभी - कभार आए तब तो उसके बारे में उपेक्षा भाव समझ में आता है किंतु जहां हर बरसात में नाव चलने की नौबत आती है वहां सुधार क्यों नहीं होता , यह प्रश्न अनुत्तरित है। आरोप - प्रत्यारोप के रूप में राजनेता अपना खेल खेलें , किंतु ऐसे मामलों में सार्थक और परिणाममूलक विकास योजना बनाई जानी चाहिए। अति वृष्टि से उत्पन्न समस्या अपवाद हो सकती है किंतु यदि वह हर साल उत्पन्न होती है तब उसका स्थायी इलाज भी होना चाहिए। दिल्ली चाहे तो उसका उदाहरण पेश कर सकती है। शहरों के बेतरतीब  और असीमित विकास की समीक्षा का राष्ट्रीय कार्यक्रम समय की मांग है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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