Friday 7 July 2023

ऐसा कुकृत्य मनुष्य तो क्या पशु के साथ भी नहीं होना चाहिए



 म.प्र के सीधी जिले में एक सवर्ण युवक द्वारा अनु. जनजाति के  एक व्यक्ति पर पेशाब करने का वीडियो सामने आने से राजनीतिक आरोप - प्रत्यारोप का चिर  - परिचित दौर चल पड़ा है। इस प्रकरण की गूंज दिल्ली सहित और राज्यों में भी सुनाई दे रही है। एक आदिवासी के साथ घिनौनी हरकत करने वाला व्यक्ति भाजपा विधायक से जुड़ा बताया जाने से बवाल कुछ ज्यादा ही है। वैसे  विधायक  इसका खंडन कर रहे हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव नजदीक होने से भाजपा ने  रक्षात्मक होना बेहतर समझा। आरोपी पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगाते हुए उसके घर पर बुलडोजर चलवाने की कार्रवाई भी अविलंब की गई। कांग्रेस के लिए तो ये बिन मांगी मुराद थी इसलिए उसने भाजपा पर आदिवासी विरोधी होने की तोहमत लगा दी। राहुल गांधी से मायावती तक ने ट्विटर पर प्रदेश सरकार और भाजपा  पर दनादन मिसाइलें दाग दीं।  निश्चित रूप से उक्त घटना बेहद अमानवीय थी। आदिवासी या दलित इंसान तो क्या पशु के ऊपर भी पेशाब करने जैसा कृत्य या तो मानसिक तौर पर विक्षिप्त व्यक्ति ही कर सकता है या जिसकी राक्षसी प्रवृत्ति हो। राजनीति के अपने तौर - तरीके होते हैं और उस दृष्टि से कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की बयानबाजी से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। यदि भाजपा सत्ता में न होती तब वह भी ऐसा ही करती। लेकिन इस घटना के सामने आते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तत्परता से पीड़ित आदिवासी को भोपाल  बुलवाकर मुख्यमंत्री निवास में उसके चरण धोकर उससे क्षमा मांगी वह आग को भड़कने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका था। भले ही इसे नाटकबाजी कहा जाए किंतु उन्होंने सही समय पर सही कदम उठाया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने भी जांच समिति गठित कर अच्छी पहल की। देर सवेर जनजाति आयोग वगैरह भी इस मामले की जांच करने आ सकते हैं। कुछ एनजीओ तो ऐसे अवसर की तलाश ही करते रहते हैं। हो सकता है इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव तक जिंदा रखने की कोशिश भी होती रहे। बहरहाल , जो हुआ उसकी जितनी निंदा की जाए कम है।  आरोपी को भी कड़े से कड़ा दंड  मिलना चहिए। लेकिन ऐसे मामलों में  राजनीति से ऊपर उठकर जब तक विचार नहीं होता तब तक इनकी पुनरावृत्ति होती रहेगी। अनु. जाति या जनजाति के किसी व्यक्ति के साथ होने वाला अत्याचार उच्च जाति वाले करें या उनके अपने कुनबे का कोई व्यक्ति , दोनों का अपराध एक जैसा होगा क्योंकि यहां सवाल जाति का नहीं इंसानियत का है। हमारे ही समाज में विक्षिप्त मानसिकता के कुछ लोग कभी - कभार पशुओं के साथ दुराचार जैसा कुकृत्य कर डालते हैं।उसके लिए भी दंड का प्रावधान है। इसी तरह यदि किसी सवर्ण के ऊपर कोई व्यक्ति चाहे उसकी जाति कोई भी हो ,  पेशाब करने जैसी गंदी हरकत करे तो उसकी  निंदा और सजा भी उतनी ही कड़ी होनी चाहिए । स्मरणीय है मनुष्य को ईश्वर ने बनाया है जबकि जाति नामक व्यवस्था मनुष्य द्वारा बनाई गई है। आजादी की लड़ाई के दौरान ही महात्मा गांधी ने इस बात को भांप लिया था कि जातियों में बिखरा समाज एकता के सूत्र में बंधकर नहीं रह सकेगा । ब्रिटिश सत्ता कायम होने के पहले भी समाज में वर्ण व्यवस्था थी जिसे धीरे - धीरे जातिगत पहिचान दी गई। अछूतोद्धार का अनुष्ठान उसी पहिचान को नष्ट करने हेतु प्रारंभ किया गया था। लेकिन स्वाधीन भारत में इसे चुनाव जीतने के नुस्खे में बदल दिया गया और धीरे - धीरे हालात यहां तक आ पहुंचे कि दलितों में भी अति दलित और पिछड़ों में  अति पिछड़े सामने आने लगे। सबसे अधिक चिंता का विषय ये है कि आरक्षण की खींचतान ने दलितों और पिछड़ों के बीच भी वैमनस्यता का भाव उत्पन्न कर दिया । ये समस्या अब लाइलाज बीमारी की तरह सामने आ चुकी है जिसके चलते किसी नेता की पहिचान उसके व्यक्तित्व की बजाय उसकी जाति से होने लगी है। हमारे देश में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि जात न पूछो साधु की , किंतु इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि संसद और विधानसभा में चुनकर आए अनेक साधु - सन्यासी भी अपनी जाति को लेकर बेहद मुखर रहते हैं। महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वालों में म.प्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती भी रही हैं जिनकी जाति के बारे में ज्यादातर लोग तभी जान सके जब वे खुलकर राजनीति में आईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपनी पिछड़ी जाति का खुलासा करना पड़ा । वहीं राहुल गांधी अपने ब्राह्मण होने का ऐलान करते घूमने लगे। लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के बेटों ने विवाह तो अंतर्जातीय किए किंतु वोटों की खातिर वे पिछड़ी जाति का मुखौटा उतारने तैयार नहीं हैं। ऐसे और भी उदाहरण हैं । यही वजह है कि आजादी के अमृत महोत्सव तक पहुँचने के बाद भी जाति हमारी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार बनी हुई है। म.प्र की उक्त घटना केवल किसी पार्टी अथवा नेता के लिए ही नहीं अपितु पूरे समाज के लिए चिंता और चिंतन का विषय है । 21वीं सदी में भी जाति को किसी मनुष्य की सामाजिक हैसियत का मापदंड माना जाना चौंकाता है। जिन राजनेताओं से ये उम्मीद थी कि वे इस बुराई को समाप्त करेंगे वे ही इसे बढ़ावा देने के लिए दोषी हैं किंतु दुर्भाग्य ये है कि उनके लिए कोई सजा नहीं है।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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