Thursday 27 July 2023

अविश्वास प्रस्ताव गिरने के बाद विपक्ष क्या करेगा



लोकसभा में विपक्ष द्वारा मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया गया। आगामी सप्ताह  इस पर बहस होगी जो संभवतः दो दिन चलेगी। इस प्रस्ताव को लाने के पीछे मणिपुर के संगीन हालात को कारण बताया जा रहा है। विपक्ष लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये दबाव बनाता रहा है कि वे वहां की स्थिति पर बयान दें । हालांकि , दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने वाले वीडियो के सामने आने के बाद जरूर श्री मोदी ने  अपनी नाराजगी व्यक्त की किंतु उसके अलावा वे पूरे घटनाक्रम पर खामोश ही बने हुए हैं। इसका कारण क्या है यह तो वे ही बता सकेंगे किंतु गृहमंत्री ने संसद और उसके बाहर भी इस बारे में काफी कुछ कहा जिससे विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ। जब उसे लगा कि प्रधानमंत्री उस मुद्दे पर बोलने राजी नहीं हैं और सरकार भी मणिपुर के मुद्दे पर विपक्ष की इच्छानुसार लंबी चर्चा नहीं करवाना चाहती तब उसने अविश्वास प्रस्ताव रूपी अस्त्र चला । कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ये टिप्पणी इस बारे में बेहद सटीक है कि प्रधानमंत्री को मणिपुर के बारे में बोलने के लिए बाध्य करना ही इस प्रस्ताव का उद्देश्य है। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव उनकी सरकार के ही विरुद्ध है , लिहाजा उस पर हुई बहस का जवाब उनको देना ही पड़ेगा। यद्यपि सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्षी बैंचों से भी अनेक सांसद प्रस्ताव के विरोध और समर्थन में बोलेंगे किंतु असली आकर्षण प्रधानमंत्री का भाषण होगा क्योंकि वे उनके ऊपर हुए हर हमले का बिंदुवार जवाब तो देंगे ही  जिसके लिए वे जाने जाते हैं  किंतु लगे हाथ विपक्ष को भी घेरने में संकोच नहीं करेंगे। जबसे संसद की कार्यवाही का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण होने लगा है तबसे इस तरह के अवसरों पर समाज का एक बड़ा वर्ग भी अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस को देखता है। अतीत में ऐसे प्रस्तावों पर सरकार गिरी भी है इसलिए लोगों में उत्सुकता बढ़ जाती है । स्व.अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव के दौरान एक मत की कमी से गिर गई थी। वहीं 1979 में मोरार जी भाई देसाई  की सरकार के विरुद्ध विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर रोचक बात ये हुई कि एक दिन पहले सरकार के पक्ष में धुआंधार भाषण देने वाले वरिष्ट मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज प्रस्ताव पर मतदान के समय पाला बदलकर विपक्ष में जा बैठे जिससे  सरकार के पतन का रास्ता साफ हो गया। अनेक अल्पमत सरकारें जिन्हें खुद कांग्रेस ने बनवाया उसी के समर्थन वापस लेने से गिर चुकी हैं। जिनमें चौधरी चरण सिंह , चंद्रशेखर  , एच डी देवगौड़ा और इंदर कुमार गुजराल कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए किंतु कांग्रेस ने उन सबसे गद्दी छीन ली। इसका कारण आज तक कांग्रेस स्पष्ट नहीं कर सकी। वैसे एक सरकार भाजपा ने भी गिरवाई थी। जब 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में लालू सरकार द्वारा रोके जाने पर  उसने केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सरकार गिरवा दी थी जिसे वह बाहर से समर्थन दे रही थी। जहां तक मोदी सरकार के विरुद्ध लाए इस अविश्वास प्रस्ताव का सवाल है तो लोकसभा में उसके पास चूंकि अपने बल पर ही बहुमत है इसलिए प्रस्ताव के पारित होने की संभावना न के बराबर है ।  इसके जरिए विपक्ष ने प्रधानमंत्री को अपना बचाव करने के लिए मजबूर करने का जो दांव चला है वह भी ज्यादा कारगर नहीं हो सकेगा क्योंकि एक तो उसके पास लोकसभा में ज्यादा अच्छे वक्ता हैं नहीं और दूसरी बात ये भी कि मणिपुर की हिंसा का जो असली  पक्ष है , मसलन मैतेई के पास ज्यादा जनसंख्या के बाद भी कम भूमि , कुकी के एकाधिकार वाले पर्वतीय क्षेत्र में अफीम की अवैध खेती , म्यांमार के रास्ते कुकी और रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ , मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के अलावा ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण की आड़ में अलगाववाद को बढ़ावा आदि बातें भी बहस के दौरान जब सामने आएंगी तब विपक्ष के पास भी उनका कोई जवाब नहीं होगा। मणिपुर में बीते कुछ सालों से जरूर भाजपा के नियंत्रण वाली सरकार है किंतु लंबे समय तक वहां कांग्रेस भी सत्ता में रही। मौजूदा मुख्यमंत्री भी भाजपा में कांग्रेस से आयात किए हुए हैं। ऐसा लगता है प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर बोलने से पहले विपक्ष को थका देने की रणनीति पर चलते रहे। उनकी बात सही साबित हुई क्योंकि मणिपुर के वर्तमान हालात को वह जिस तरह से भुनाना चाह रहा था उसमें कामयाबी नहीं मिली। यदि महिलाओं को निर्वस्त्र किए जाने वाली घटना सामने न आती तब उस राज्य की वास्तविकता से देश अनभिज्ञ ही  रहता।  लेकिन जैसे -  जैसे जानकारियां मिल रही हैं उनके बाद से तमाम भ्रांतियां दूर होती जा रही हैं। मैतेई और कुकी के बीच के विवाद में देश विरोधी ताकतों की  भूमिका भी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सत्ता पक्ष उजागर करने की कोशिश करेगा जिससे विपक्ष को निहत्था किया जा सके। इस अविश्वास प्रस्ताव के गिरने के बाद विपक्ष क्या करेगा ये बड़ा सवाल है । राहुल गांधी ने वहां का दौरा तो किया किंतु वे दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश से दूर रहे। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के नामंजूर हो जाने के बाद विपक्ष खाली हाथ नजर आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उसमें एक भी नेता ऐसा नहीं है जिसमें मणिपुर जाकर शांति स्थापित करने की क्षमता हो। जो विपक्षी नेता उस राज्य में हैं , वे भी कहां छिपे हैं, कोई नहीं जानता।


- रवीन्द्र वाजपेयी 


No comments:

Post a Comment