Saturday 22 July 2023

चंद्रचूड़ का पत्र : न्यायपालिका के साथ नेताओं - नौकरशाहों पर भी निशाना



देश के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ खानदानी न्यायाधीश कहे जा सकते हैं। उनके पिता भी सबसे लंबे समय तक इसी पद पर रहे । लेकिन श्री चंद्रचूड़ की शैक्षणिक - पेशेवर योग्यता और क्षमता पर संदेह नहीं किया जा सकता। ये कहना गलत न होगा कि न्याय की सर्वोच्च आसंदी पर उनके विराजमान होने के बाद से न्यायपालिका में काफ़ी हलचल आई है। अदालत में सख्ती के अलावा विभिन्न विषयों पर सार्वजनिक रूप से व्यक्त किये गए उनके विचारों से ये झलकता है कि वे अपनी पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीशों से काफी हटकर हैं। या यूं कहें कि वे नई पीढ़ी के उन न्यायाधीशों की अगुआई  करते हैं जो लीक से हटकर चलने में विश्वास करती है। उनके कतिपय निर्णय सरकार के लिए असुविधाजनक साबित हुए हैं । लेकिन अनेक मामलों में उन्होंने अपने न्यायिक दायित्व का निर्वहन जिस कुशलता से किया उसकी वजह से वे कुछ हद तक जनता का विश्वास जीतने में सफल हुए हैं। यद्यपि कालेजियम जैसे मुद्दों पर उनका रुख परंपरागत ही है । जिसकी आलोचना किए जाने पर किरण रिजजू को कानून मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। बावजूद उसके वे न्यायपालिका की प्रचलित छवि को बदलने के संकेत देते रहते हैं । इसका  ताजा प्रमाण है इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गौतम चौधरी और उनकी पत्नी को रेल यात्रा के दौरान नाश्ता उपलब्ध न होने पर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार प्रोटोकाल द्वारा रेलवे प्रबंधक को भेजे गए नोटिस पर उनकी प्रतिक्रिया । उक्त घटना के बाद श्री चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को प्रेषित पत्र में इस बात पर जोर दिया है कि न्यायाधीशों के लिए निर्धारित शिष्टाचार (प्रोटोकाल) का उपयोग इस तरह न किया जाए जिससे दूसरों को असुविधा हो और न्यायपालिका पर उंगलियां उठें। श्री चंद्रचूड़ ने रजिस्ट्रार प्रोटोकाल द्वारा रेलवे के प्रबंधक को भेजे नोटिस को एक न्यायाधीश की इच्छा से भेजा पत्र बताते हुए लिखा कि उनके पास रेलवे कर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। और यह भी कि शिष्टाचार को विशेषाधिकार नहीं माना जाना चहिए। उन्होंने उक्त पत्र से  सहयोगी न्यायाधीशों को अवगत करवाने का आग्रह करते हुए समझाइश दी कि न्यायपालिका के  भीतर आत्मचिंतन और परामर्श की जरूरत है। श्री चंद्रचूड़ द्वारा लिखा गया पत्र वैसे तो न्यायपालिका पर केंद्रित है किंतु यह उन सभी नेताओं , नौकरशाहों और सत्ता से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े महानुभावों पर भी कटाक्ष है जो बतौर शिष्टाचार मिलने वाले सम्मान को अधिकार मान लेते हैं। हाल ही में रेल मंत्री अश्विन वैष्णव ने रेल मंत्रालय के दफ्तरों में भृत्य को बुलाने घंटी बजाने की प्रथा बंद करवा दी। साथ निर्देश दिया कि फील्ड या अन्यत्र काम के लिए जाने पर नाश्ते में समय नष्ट करने के बजाय काम पर ध्यान दें। उल्लेखनीय है बालासोर रेल हादसे के बाद राहत और बचाव के साथ ही दुर्घटनाग्रस्त रेल लाइन पर दोबारा यातायात शुरू होने तक वे स्वयं कई दिनों तक रेल कर्मियों के साथ मौके पर ही रहकर उनका उत्साहवर्धन करते रहे। उस दृष्टि से श्री चंद्रचूड़ ने न्यायाधीश श्री चौधरी को नाश्ता न मिलने पर रेलवे के अधिकारी को भेजे गए नोटिस पर जो परिपत्र जारी किया वह स्वागतयोग्य है। विशेष तौर पर इसलिए क्योंकि नेता और नौकरशाह तो प्रोटोकाल को लेकर चाहे जब विवादों में घिर जाते हैं लेकिन न्यायाधीशों से शासन और प्रशासन सभी भयभीत रहते हैं । इसका कारण भी सर्वविदित है। हालांकि श्री चंद्रचूड़ की समझाइश के बाद न्यायपालिका में आमूल परिवर्तन हो जाएगा ये उम्मीद करना जल्दबाजी होगी किंतु इसे शुरुआती कदम तो माना जा सकता है । वरना उच्च या सर्वोच्च न्यायालय तो बड़ी बात है , छोटी अदालत तक के  न्यायाधीश भी अपेक्षा करते हैं कि वे जहां से गुजरें बाअदब , बामुलाहिजा होशियार का ऐलान होता रहे। यद्यपि सभी न्यायाधीश सम्मान के पात्र हैं फिर चाहे वे  सर्वोच्च न्यायालय के हों या  सबसे निचली अदालत के। लेकिन इसके लिए ये भी जरूरी है कि वे उस सम्मान के साथ जुड़ी मर्यादा का उल्लंघन न करें ताकि जैसा श्री चंद्रचूड़ ने लिखा , न्यायपालिका सार्वजनिक आलोचना से बच सके। उनका ये कहना भी बहुत ही महत्वपूर्ण कि उसके भीतर इस बारे में आत्मचिंतन और परामर्श हो। यदि उनकी भावना को व्यवहारिक रूप में परिवर्तित किया जा सके तो देश में जो नव सामंतशाही है उसको खत्म करने का  रास्ता खुल सकता है। अक्सर इस मामले में लोग दूसरों को तो उपदेश देते हैं किंतु खुद अमल नहीं करते। श्री चंद्रचूड़ ने अपने कार्यक्षेत्र में जो मुहिम शुरू की वह एक राष्ट्रीय आंदोलन बनना चाहिए क्योंकि वीआईपी कल्चर ने आजादी के 75 साल बाद भी गुलामी के दौर की तमाम व्यवस्थाओं को ज्यों का त्यों जारी रखा है जो लोकशाही के अधूरेपन का जीवंत प्रमाण है।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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