Friday 21 July 2023

मणिपुर : राष्ट्रपति शासन लगाकर सेना की तैनाती ही एकमात्र विकल्प




उत्तर पूर्व का राज्य मणिपुर बीते ढाई महीने से पूरी तरह  अराजकता में फंसा हुआ है। मैतेई और कुकी नामक  आदिवासी समुदायों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में प्रदेश और प्रशासन दो हिस्सों में बंट गया है । एक दूसरे के हिस्से में जाना मौत को गले लगाने जैसा है। पुलिस और सशस्त्र बलों के हथियार लूटकर दोनों समूहों ने अपनी सेना बना ली है । अस्थाई तौर पर बनाए  बंकरों में नौजवान इस तरह तैनात हैं जैसे सामने शत्रु देश की सीमा हो। राजधानी इंफाल तक सुरक्षित नहीं है। प्रशासन पूरी तरह लाचार नजर आ रहा है। पूरे राज्य में खंडहर हो चुके मकान और अन्य इमारतें नजर आती हैं। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि इसके लिए राज्य की सरकार जिम्मेदार है जो उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनु.जनजाति का दर्जा दिए जाने संबंधी फैसले के बाद उत्पन्न स्थिति से सही ढंग से निपटने में असफल रही और उपद्रवियों को नियंत्रित करने के बजाय हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखती रही। लेकिन केंद्र सरकार ने भी  आकलन में देर करते हुए राज्य सरकार की क्षमता पर  जरूरत से ज्यादा भरोसा  किया । कुकी समुदाय द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले के बाद की जाने हिंसा के बारे में खुफिया एजेंसियों द्वारा भी सही समय पर जानकारी या तो दी नहीं गई या फिर जिम्मेदार लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी त्यागपत्र देने का ऐलान करने के बाद पीछे हट गए । केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह  मणिपुर में कुछ दिन डेरा डाले रहे लेकिन उसका भी कोई असर नहीं हुआ। सरकारी कर्मचारी जिन स्थानों पर पदस्थ थे उन्हें छोड़कर अपने समुदाय के कब्जे वाले क्षेत्र में चले गए हैं। राज्य सरकार ने भी उनको वैसा करने की अनुमति दे दी है क्योंकि मैतेई प्रभाव वाले इलाके में कुकी की जान  खतरे में है और ऐसा ही दूसरी तरफ है। सवाल ये है कि अब तक वहां राष्ट्रपति शासन लगाकर स्थिति को संभालने का निर्णय क्यों नहीं लिया गया जबकि राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा की ही सरकार है । मौजूदा परिस्थिति में मुख्यमंत्री बदलने से भी कुछ लाभ नहीं होगा क्योंकि राज्य में ऐसा एक भी राजनीतिक नेता नहीं है जिसे दोनों समुदायों का विश्वास हासिल हो। लेकिन इस सबके बीच गत दिवस 4 मई को मैतेई हमलवारों द्वारा एक गांव पर धावा बोलकर पकड़ी गई दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का वीडियो सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित होने के बाद पूरे देश में जबरदस्त रोषपूर्ण प्रतिक्रिया हुई। सर्वोच्च न्यायालय से संसद तक उसकी गूंज सुनाई दी। मणिपुर पर अब तक खामोश रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सामने आकर उक्त घटना को पूरे देश को शर्मसार करने वाला बताया। विपक्ष को भी संसद का  सत्र शुरू होते ही केंद्र सरकार को घेरने का जोरदार मुद्दा हाथ लग गया जिसका लाभ लेने में उसने लेश मात्र भी देर नहीं लगाई । आनन - फानन में  दोषी लोगों की गिरफ्तारी होने के बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें फांसी तक पहुंचाने की बात कहते हुए शेखी तक बघारी लेकिन उनका ये कहना चौंकाने वाला है कि ऐसे हजारों मामले हैं और उसी लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया है। सवाल ये हैं कि यदि ऐसे हजारों मामले थे तो राज्य सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए और महिलाओं को नग्न घुमाए जाने की रिपोर्ट थाने में दर्ज हो जाने के दो महीने बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? यदि उक्त वीडियो प्रकाश में नहीं आता तब कल जो मुस्तैदी दिखाई गई वह भी न होती। हालांकि , ये  बात विचारणीय है कि 4 मई की घटना का वीडियो संसद के  सत्र तक क्यों दबाकर रखा गया ? जाहिर है इसके पीछे भी उन ताकतों का हाथ है जो मणिपुर में लगी आग को ठंडी करने के बजाय उसे और भड़काने में जुटे हुए हैं। मणिपुर में कुकी समुदाय मूलतः म्यांमार से आकर पर्वतीय क्षेत्रों में बस गया और अभी भी सीमा पार से अवैध रूप से घुसपैठ जारी है। इनके द्वारा अफीम की खेती कर तस्करी के जरिए उसे विदेश भेजने की बात भी  सामने आ चुकी है जिसमें विदेशी हाथ होना अवश्यंभावी है। ये देखते  हुए इस राज्य को पूरी तरह स्थानीय प्रशासन के भरोसे छोड़कर रखना भूल साबित हुआ है। महिलाओं के अपमान की जो घटना सामने आई वह किसी भी दृष्टि से सहनीय नहीं है। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चाहे जितनी भी दुश्मनी हो लेकिन उसके लिए किसी महिला को नग्न कर उसका जुलूस निकालना जघन्यतम अपराध है जिसकी सजा भी उसी के अनुरूप दी जाए। ऐसे में अब मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाकर सेना को तैनात किए जाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है । साथ ही  दो नग्न महिलाओं के वीडियो को अपने व्यापार का जरिया बना लेने वाले  चैनलों तथा सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों पर भी नकेल कसी जानी चाहिए क्योंकि ऐसे चित्र विकृत मानसिकता को बढ़ावा  देते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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