Saturday 1 July 2023

लाड़ली बहना जैसी दरियादिली पेट्रोल - डीजल पर भी दिखाई जाए




वंदे भारत रेलगाड़ी के शुभारंभ पर हाल ही में भोपाल प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर जब राज्य सरकारों पर तीखा कटाक्ष किया तब वे भूल गए कि म.प्र.भी उन राज्यों में है जहां सबसे  महंगा पेट्रोल - डीजल बिकता है। उनके बयान पर विपक्ष ने तंज कसना  शुरू कर दिए । यहां तक कहा जाने लगा कि प्रधानमंत्री की उक्त टिप्पणी ने अपनी ही पार्टी की प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। ऐसा लगता है उनके दिमाग में राजस्थान घूम रहा था जिसका चुनावी दौरा वे बीते दिनों कर आए थे जहां पेट्रोल - डीजल के दाम काफी अधिक हैं । श्री मोदी का आज दोबारा म.प्र आगमन हुआ है।वे उमरिया के निकट आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करेंगे , जहां मौसम खराब होने से पिछली यात्रा में नहीं जा सके थे। ऐसा लगता है उनके आगमन को देखकर ही प्रदेश सरकार ने पेट्रोल - डीजल पर टैक्स घटाकर उनको सस्ता करने का संकेत दिया है। उससे कितना बोझ सरकार के खजाने पर पड़ेगा इसका आकलन किया जा रहा है । संभवतः जल्द ही प्रदेश वासियों को इस बारे में खुशखबरी मिलेगी। इसके पहले जब भी केंद्र सरकार ने पेट्रोल - डीजल सस्ते किए तब राज्य सरकार ने भी उस पर अमल किया। ये बात सर्वविदित है कि. म.प्र में पेट्रोलियम पदार्थों पर भारी करा रोपण होने से उनके दाम उ.प्र से कम हैं जिसका खामियाजा सीमावर्ती जिलों के पेट्रोल पंपों को होता है। उ.प्र जाने - आने वाले निजी और व्यावसायिक वाहन म.प्र में प्रवेश करने के पहले ही पूरी टंकी भरवा  लेते हैं। शराब के अलावा पेट्रोल - डीजल से मिलने वाला टैक्स राज्य सरकार की कमाई का बड़ा स्रोत है। लेकिन शराब और इसकी तुलना करना बेमानी है क्योंकि पेट्रोल - डीजल आज के समय की सबसे प्रमुख आवश्यकताओं में है। जिस व्यक्ति के पास अपना वाहन नहीं है वह भी ऑटो , बस या टेक्सी का उपयोग करता है। इसी तरह माल की ढुलाई में ट्रकों का उपयोग होता है। सड़कें बन जाने से छोटे - छोटे गांव और कस्बे तक पेट्रोल - डीजल चलित वाहन पहुंच चुके हैं। अब तो किशोरावस्था के बच्चे भी दोपहिया स्कूटी नुमा वाहन इस्तेमाल करते हैं। आवागमन के सार्वजनिक साधनों की कमी के चलते  निजी वाहनों का उपयोग मजबूरी बनता जा रहा है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों  को इनकी कीमतें कम रखने पर विचार करना चाहिए। हालांकि म.प्र सरकार यदि पेट्रोल - डीजल सस्ता करती है तो इसे प्रधानमंत्री की टिप्पणी और कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जायेगा लेकिन उपभोक्ताओं को चूंकि इससे लाभ मिलेगा इसलिए इसका स्वागत हर कोई करेगा। सभी जानते हैं कि पेट्रोल और - डीजल की वैश्विक कीमत कम हो जाने के बावजूद भारत में उन पर लगाया जाने वाला टैक्स कमरतोड़ है जिसे दूसरे शब्दों में मुनाफाखोरी कहना गलत नहीं होगा।केंद्र के साथ राज्य भी अपना कर थोपते हैं जिसका असर महंगाई बढ़ने के रूप में सामने आता है। सवाल ये है कि पेट्रोल - डीजल के दामों को  जब बाजार के उतार - चढ़ाव पर ही छोड़ने का नीतिगत फैसला लगभग दो दशक पहले कर लिया गया था तब क्या कारण है कि राजनीतिक नफे - नुकसान के मद्देनजर उनकी घट - बढ़ को केंद्र और राज्य सरकारें नियंत्रित करती हैं। पारदर्शिता का तकाजा है कि पेट्रोल - डीजल पर सरकार द्वारा लगाये  जाने वाले कर की राशि प्रति लीटर निश्चित कर दी जाए जिससे कि वैश्विक मूल्य बढ़ने पर भी टैक्स यथावत रहे। इससे जनता की नाराजगी भी दूर होगी और सरकार को अपनी आय में कमी की चिंता नहीं सताएगी। वैसे सबसे अच्छा विकल्प है पेट्रोल - डीजल , रसोई गैस और अन्य पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में शामिल कर राजनीतिक प्रपंच से मुक्त कर दिया जाए। संचार क्रांति के इस युग में साधारण व्यक्ति को भी दुनिया - जहान की थोड़ी जानकारी रहती है। इसीलिए कच्चे तेल के मूल्य घटने - बढ़ने की बात भी छुपी नहीं रहती। सरकार की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं किंतु बेहतर आर्थिक प्रबंधन के जरिए जनहित में रास्ता निकालना संभव है। शिवराज सरकार ने हाल ही में जो लाड़ली बहना योजना शुरू की उसकी प्रदेश भर में महिलाओं के बीच खूब प्रशंसा हो रही है । यदि प्रदेश सरकार ऐसी ही दरियादिली पेट्रोल - डीजल के दामों को लेकर भी दिखा दे तब केवल वाहन मालिक ही लाभान्वित नहीं होंगे अपितु व्यापार - उद्योग जगत भी इससे राहत अनुभव करेगा क्योंकि उसका सीधा असर महंगाई को रोकने पर पड़ेगा। 

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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