Saturday 29 July 2023

अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ प्रति व्यक्ति आय बढ़ना भी जरूरी





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2024 में  सत्ता में लौटने के आत्मविश्वास के साथ भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की जो बात कही गई उस पर तरह - तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों ने उनके दावों को कोरा आशावाद बताया तो एक वर्ग ऐसा भी है जो भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने के उनके विश्वास को न सिर्फ सही मानता है , अपितु ये भी कि उन्होंने अब तक जो कुछ लिया उससे देश की आर्थिक स्थिति सुधरी है। लेकिन देश के पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ट कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम ने श्री मोदी के बयान पर बोलते हुए कहा कि ये तो  गौरव की बात है कि भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है किंतु जब तक प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा इस अनुपात में आकर्षक नहीं होता तब तक इस तरह के दावे पूरे होने के बाद भी वह अर्थव्यवस्था का आदर्श रूप नहीं होगा। पूर्व वित्त मंत्री के अनुसार अर्थव्यवस्था की मजबूती नापने का सबसे अच्छा पैमाना प्रति व्यक्ति आय है । और यदि भारत विश्व भर में अपनी समृद्धि का ढिंढोरा पीटना चाहता है तब उसे अर्थव्यवस्था को इस तरह ढालना होगा जिससे आर्थिक विषमता अर्थात  गरीब - अमीर की माली हैसियत में जमीन और आसमान वाला अंतर खत्म हो सके। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो  उन्होंने प्रधानमंत्री के कथन पर एक तरह से कटाक्ष ही किए जो बतौर विपक्षी सांसद अपेक्षित भी हैं । गौरतलब है , भारत में जब आर्थिक उदारीकरण आया था तब डा.मनमोहन सिंह के साथ ही श्री चिदम्बरम भी नई आर्थिक नीतियों  के शिल्पकार रहे। उस दृष्टि से ये माना जा सकता है कि बीते लगभग तीन दशक के दौरान अर्थव्यस्था में आए उतार - चढ़ावों पर उनकी नजर रही है। उस दृष्टि से उन्होंने जो टिप्पणी प्रधानमंत्री के बयान पर की वह विचारणीय है। दुनिया में प्रति व्यक्ति आय के जो अधिकृत आंकड़े हैं उनके अनुसार भारत वैश्विक स्तर पर 128 वें स्थान पर है। इसका सीधा - सीधा अर्थ है कि 127 देश ऐसे हैं जिनमें प्रति व्यक्ति का आंकड़ा भारत से बेहतर है। ऐसे में श्री चिदम्बरम द्वारा उठाया गया मुद्दा हमारे नीति - निर्माताओं और सत्ता में आसीन नेताओं के लिए चुनौती है । यद्यपि  बीते एक दशक में भारत में प्रति व्यक्ति कमाई में वृद्धि हुई है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आम आदमी के पास पूर्वापेक्षा अधिक पैसा आ रहा है किंतु जिस अनुपात में अर्थव्यवस्था सुधरी उसे देखते हुए प्रति व्यक्ति आय  में आशाजनक सुधार नहीं होना ये दर्शाता है कि समृद्धि का बंटवारा इकतरफा है। अर्थात पहले से संपन्न  और सुदृढ़ हुए , जबकि पंक्ति के अंतिम  छोर पर खड़ा व्यक्ति आगे आने का इंतजार करता रह गया। हालांकि इस बारे में भी कुछ  विरोधाभास हैं,  क्योंकि बेरोजगारी और प्रति व्यक्ति आय के जो उपलब्ध आंकड़े हैं उनका सत्यापन करने का कोई प्रामाणिक तरीका अब तक नहीं बन सका। वस्तुस्थिति ये है कि करोड़ों लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत होने से न तो उनके रोजगार संबंधी जानकारी मिल पाती है और न आय की। उदाहरण के लिए घरेलू काम करने वाले पुरुष और महिलाओं के बारे में सरकारी और निजी एजेंसियां अनभिज्ञ रहती हैं इसी तरह सड़क किनारे खोमचा लगाकर खाने - पीने की चीजें बेचने वाले , टपरा रखकर नाई का काम और कपड़ों पर इस्त्री करने वाले भी हर जगह मिल जाते हैं जिनकी गणना सरकारी सांख्यिकी का हिस्सा नहीं बन पाती। आजकल कार ड्राइवरों को भी अच्छा वेतन मिलता है।  स्वरोजगार से जुड़े लाखों ऐसे लोग हैं जिनकी अच्छी खासी आय होने के बाद भी वे सरकारी रिकार्ड में बेरोजगार बनकर गरीबी रेखा वाले सारे लाभ ले रहे हैं। ऐसी विसंगतियां बड़े पैमाने पर हैं जिनके चलते  आयुष्मान योजना में ऐसे लोग भी शामिल हो गए हैं जो संपन्न वर्ग की श्रेणी में गिने जाते हैं। बावजूद इसके ये कहना गलत नहीं है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय की स्थिति शर्मनाक है। भले ही महंगी कारें और विलासिता के अन्य सामान धड़ल्ले से बिक रहे हैं , पर्यटन स्थलों पर भीड़ रिकार्ड तोड़ रही है , हवाई यात्री बढ़ रहे हैं , मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे विदेश पढ़ने जाने लगे हैं , डेस्टिनेशन शादियों पर पैसा बहाया जा रहा है । लेकिन दूसरी तरफ 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत मुफ्त अनाज बांटा जा रहा है। 1000 - 1500 की नगदी करोड़ों बूढ़े  और  निराश्रित लोगों के खाते में जमा की जा रही है । इस सबसे एक तरफ तो जहां सरकार की संवेदनशीलता प्रकट होती है वहीं दूसरी तरफ ये गरीबी के बोलते हुए आंकड़े हैं। उस दृष्टि से भारत को विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में सम्मानजनक स्थान मिलने के प्रयासों के साथ ही  प्रति व्यक्ति आय बढ़ाकर गरीबी मिटाने का राष्ट्रीय अभियान छेड़ा जाना चाहिए । काम करने वाला कोई व्यक्ति निठल्ला नहीं बैठे इसकी समयबद्ध कार्य योजना बनाकर आर्थिक विषमता मिटाने का बीड़ा यदि उठा लिया जाए तो।आगामी दस सालों  के भीतर प्रति व्यक्ति आय बढ़ाई जा सकती है जो कि अर्थव्यवस्था की मजबूती का सबसे पुख्ता प्रमाण होगा।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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