Thursday 6 July 2023

इसके पहले कि भारत में फ्रांस जैसे हालात बनें , सतर्कता जरुरी



बीते कुछ  दिनों से फ्रांस अशांत है। आगजनी , तोड़फोड़  और दंगों के कारण यूरोप का ये बड़ा और ताकतवर देश हिंसा की आग में झुलसने बाध्य हो उठा है। सरकार और पुलिस को स्थिति पर नियंत्रण करने में पसीने आ रहे हैं। ये हालात तब पैदा हुए जब कार चला रहे एक  युवक को पुलिस द्वारा पूछताछ हेतु रोके जाने के बाद भागने की कोशिश करने पर गोली मार दी गई। 17 वर्षीय उक्त युवक के पास वाहन चलाने का लाइसेंस नहीं होने से वह  बचकर निकलना चाहता था किंतु पुलिस की कार्रवाई उसके लिए जानलेवा साबित हुई । किसी अरबी देश का वह मुस्लिम युवक उन लाखों लोगों में से था जो पश्चिम एशिया के विस्फोटक हालातों से बचने यूरोपीय देशों में बतौर शरणार्थी आए और अब वहीं के होकर रह गए। फ्रांस में आबादी का 10 फीसदी हिस्सा इन्हीं मुस्लिम शरणार्थियों का हो जाने से ये वहां की शांति - व्यवस्था के लिए स्थायी खतरा बन चुके हैं। उक्त घटना में यद्यपि पुलिस का रवैया ज्यादती भरा था और गोली मारने वाले गिरफ्तार भी कर लिए गए किंतु जिस प्रकार वहां रहनेवाले मुस्लिम समुदाय ने इसे धार्मिक भेदभाव का रूप देकर पूरे देश को आग के हवाले कर दिया उससे इन शरणार्थियों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिंता व्यक्त की जाने लगी है। फ्रांस के साथ ही अनेक पड़ोसी यूरोपीय देशों में बसे मुस्लिम शरणार्थियों ने  भी उपद्रव शुरू कर दिया। याद रहे जबसे अरब देशों के इन  शरणार्थियों को फ्रांस ,बेल्जियम , ब्रिटेन , जर्मनी , डेनमार्क आदि ने मानवता के नाम पर अपने यहां बसाया उसके कुछ समय बाद से ही इन्होंने बजाय उपकार मानने के  अपनी धार्मिक कट्टरता का परिचय देना शुरू कर दिया। इनकी आलोचना करने वाले अनेक पत्रकारों की हत्या के साथ उनके प्रतिष्ठानों पर हमले किए जाने लगे। ये सब देखते हुए जो स्थानीय जनता इनको शरण देने के लिए अपने देश की सरकार पर दबाव डालती थी वही इनके आक्रामक रवैये से त्रस्त हो उठी है। संदर्भित घटना के लिए दोषी पुलिसवालों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करना पूरी तरह जायज है लेकिन उसको दूसरा रूप देकर पूरे देश में  अशांति फैला देना  मुसलमानों की पहले से खराब छवि को और खराब करने जैसा है। बीते कुछ सालों में शांत समझे जाने वाले अनेक यूरोपीय देश इन शरणार्थियों को पनाह देने को गलती मान रहे हैं। अब इसी स्थिति को भारत के संदर्भ में देखें तो हमारे देश में भी राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में एक वर्ग है जो शरणार्थियों को लेकर बेहद उदार है। बांग्लादेश से आए घुसपैठिए तो पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के लिए तो नासूर बन ही चुके हैं । देश की राजधानी दिल्ली तक में इनकी अवैध बस्तियां वोटों के सौदागरों ने बनवा दीं। मणिपुर में दो माह से जो अशांति है उसके पीछे भी अतीत में म्यांमार से आए घुसपैठियों को बसने की अनुमति देना  बड़ी वजह मानी जा रही है  । ये नशीले पदार्थों की खेती और तस्करी में लिप्त होकर इतने ताकतवर हो गए कि सुरक्षा बलों का मुकाबला आधुनिक हथियारों से करने में सक्षम हैं। कुछ साल पहले म्यांमार से आए रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को वापस  भेजने की बात चली तब भी एक बड़ा वर्ग मानवता के नाम पर उनको शरण देने की मांग करने लगा। उस समय भी ये उदाहरण दिया गया था कि यूरोप के देश जब अरबी मुस्लिम शरणार्थियों को ठिकाना दे सकते हैं तब तो हमारी संस्कृति और परंपरा शरणागत को शरण देने की रही है। ऐसी सोच रखने वालों के कारण ही पूर्वोत्तर के अनेक सीमावर्ती जिले मुस्लिम बहुल हो गए जिसकी वजह से सीमापार से होने वाली घुसपैठ , तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को सहूलियत हो गई। भारत - नेपाल की सीमा पर  तराई का जो क्षेत्र है वहां जिस मात्रा में मदरसे खुले वह भी  चौंकाने वाला है। रोहिंग्या मुस्लिमों को तो कश्मीर में पाकिस्तान की  सीमा के करीब बसाने की शरारत तक की गई। आशय ये है कि जो हाल आज  फ्रांस सहित अन्य यूरोपीय देशों में हो रहा है ,  वह किसी भी समय हमारे देश में होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता । दुर्भाग्य से कुछ  राजनीतिक दल और उनके नेता सत्ता की लालसा में देश विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देने की भूल को दोहराने में जुटे हुए हैं। एक विभाजन होने के बाद भी देश को तोड़ने वाली ताकतें लगातार सक्रिय हैं जिनको विदेशी मदद और मार्गदर्शन मिलता है। यही वजह है  कि नागरिकता का रिकॉर्ड तैयार करने बनाए कानूनों को मुस्लिम विरोधी बताकर उनके विरोध में आसमान सिर पर उठा लिया गया । जबकि उनका उद्देश्य देश की सुरक्षा और अखंडता को अक्षुण्ण रखना है। यदि देश को फ्रांस जैसी स्थिति में फंसने से बचना है तो शरणार्थियों की पूरी - पूरी पहिचान होना जरूरी है। और।इसे धर्म के चश्मे की बजाय देश के दूरगामी हित की दृष्टि से देखा जाना चाहिए , अन्यथा चीन और पाकिस्तान की कार्ययोजना सफल होते देर नहीं लगेगी। नेपाल को जिस तरह  हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर साम्यवादी रंग में रंगा गया वह चेतावनी है। पाकिस्तान से तो उम्मीद करना व्यर्थ है लेकिन बांग्ला देश तक मुस्लिम कट्टरता से बाहर आने राजी नहीं है। एक सोची - समझी रणनीति के अंतर्गत भारत में घुसपैठियों को शरणार्थी बनाकर यहां का नागरिक बनाए जाने का सिलसिला आजादी के बाद से ही जारी है। असम ,बिहार , केरल और प.बंगाल के अनेक जिलों में तो गैर मुस्लिम  प्रत्याशी का चुनाव जीतना ही संभव नहीं रहा। समय आ गया है जब दुनिया में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करते समय भारत पर पड़ने वाले उनके प्रभावों की चिंता भी की जाए। वरना फ्रांस जैसे हालात कभी भी और कहीं भी बन सकते हैं और तब शायद बहुत देर हो चुकी होगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment