Monday 24 July 2023

वाराणसी सम्मेलन : मंदिरों को सुव्यवस्थित बनाने की दिशा में अच्छा कदम



वाराणसी में मंदिरों की व्यवस्थाओं को लेकर आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन एक सार्थक पहल है। इसमें सनातन , बौद्ध , जैन और सिख सभी के प्रतिनिधि हैं। पहले तो केवल भारत के बाहर उन्हीं देशों में हिन्दू मंदिर थे जहां भारतीय लोगों का आना - जाना रहा। फिर बौद्ध धर्म भी पहुंचा । कंबोडिया का अंगकोर वाट तो दुनिया का सबसे विशाल हिंदू मंदिर है। श्रीलंका में बौद्ध बाहुल्य होने के बावजूद अनेक हिन्दू मंदिर भी हैं। इसी तरह इंडोनेशिया वैसे तो इस्लामिक देश है किंतु वहां सांस्कृतिक विरासत के रूप में रामलीला का मंचन होता है । मारीशस , फिजी और कैरीबियन देशों में भी हिंदू मंदिर काफी पुराने हैं । और अब तो कैनेडा ,अमेरिका , ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों में सनातन धर्म के अनुयायियों के आस्था केंद्र मंदिरों की शक्ल में दिख जाते हैं । गुरुद्वारों और मठों की भी लंबी श्रृंखला है । इस्कान , स्वामीनारायण , रामकृष्ण मिशन और ब्रह्मर्षि मिशन जैसी संस्थाओं ने भी विश्व भर में मन्दिर स्थापित किए। भारत में तो हर कदम पर मंदिर नजर आ जाते हैं। लेकिन कुछ को छोड़कर बाकी में समुचित व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक स्थानों पर मंदिर बनाने की शिकायतें भी आम हैं। बड़े - बड़े मंदिरों पर कब्जे के लिए नामचीन हस्तियां लड़ती हैं। त्यौहारों के अवसर पर उचित प्रबंधन के अभाव में प्रसिद्ध मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ की वजह से अनेक हादसे हो चुके हैं। एक बात और जो महसूस की जा रही है कि सनातन और उससे जुड़े अन्य भारतीय धर्मों के मंदिरों में प्रशिक्षित पुजारी और अन्य सहयोगी न होने से उनकी गरिमा घट रही है। ऐसे में वाराणसी के मंदिर सम्मेलन में दुनिया भर के मंदिरों को टेंपल कनेक्ट नाम से जोड़ते हुए उनमें प्रशिक्षित पुजारी एवं अन्य कर्मचारी रखे जाने की दिशा में बढ़ाये गए कदम का अच्छा प्रभाव पड़ेगा। हो सकता है इसे धर्म के अनेक सौदागर पसंद न करें क्योंकि इससे उनकी आय का स्रोत बंद हो जायेगा किंतु भारतीय संस्कृति और धर्मों को जीवंत रखने वाले हजारों मंदिरों और मठों को व्यवस्थित स्वरूप देना उनकी प्रतिष्ठा सुरक्षित रखने के अलावा ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनसे जोड़ने के लिए जरूरी है । देश के अनेक बड़े मंदिरों का प्रबंधन सरकार द्वारा बनाई गई समिति देखती है। धर्माचार्य इसका विरोध भी करते हैं । लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच्चाई है कि मंदिर जैसी पवित्र जगह में भी जब उससे जुड़े लोग बेईमानी करते हैं तब दुख होता है। उस दृष्टि से यदि मंदिरों में धार्मिक तौर - तरीकों अर्थात पूजा - अनुष्ठान में विधिवत प्रशिक्षित व्यक्ति रखे जाएं तो उसका सकारात्मक प्रभाव जरूर होगा। इसके साथ ही विशेष अवसरों पर धार्मिक केंद्रों में श्रद्धालुओं की बढ़ती जा रही संख्या से जो अव्यवस्था होती है उसे रोकने के उपायों पर भी इस सम्मेलन में विचार किया जाना बुद्धिमत्तापूर्ण सोच है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब योग को संरासंघ से मान्यता दिलवाई तो दुनिया भर में उसका आकर्षण बढ़ा और तब ये महसूस हुआ कि इसके लिए प्रशिक्षित योग शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है । उसके बाद से विभिन्न विश्व विद्यालयों में योग के पाठ्यक्रम प्रारंभ हुए और बीते कुछ वर्षों में देश ही नहीं , विदेशों तक में हजारों योग प्रशिक्षकों को रोजगार मिला। सनातन धर्म से जुड़े कर्मकांड की शिक्षा जिन गुरुकुलों में दी जाती है उनमें आने वाले छात्रों की संख्या में लगातार कमी आने का कारण रोजी - रोटी की समस्या भी है । लेकिन यदि उन्हें मंदिरों से समुचित मानदेय की व्यवस्था हो तो इस क्षेत्र में भी रोजगार सृजन के नए अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। जो बातें सम्मेलन से निकलकर आई हैं उनके अनुसार विदेशों में स्थित मंदिरों में भी अच्छे पुजारी और उनके सहयोगी कर्मियों की जरूरत है । गुरुद्वारों में भी ग्रंथियों को भारत से भेजे जाने की व्यवस्था है। भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म जिस तरह से वैश्विक स्वरूप लेता जा रहा है उसे देखते हुए मंदिरों और मठों आदि की व्यवस्था में सुधार बेहद जरूरी है। इसी के साथ देश और दुनिया भर के मंदिरों को एक साथ लेकर उन सबको आधुनिक प्रबंधन के साथ इस तरह जोड़ा जाना जरूरी है जिससे उनके परिसर में अनुशासन का एहसास हो। दर्शनार्थियों की संख्या को किस तरह व्यवस्थित किया जाए जिससे कोई दुर्घटना न हो इस दिशा में विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों में आवागमन भी समस्या है। इसके अलावा हजारों मंदिर ऐसे हैं जिनका समुचित जीर्णोद्धार कर दिया जाए तो उनका प्राचीन वैभव लौटाया जा सकता है। इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये है कि कि मंदिर चाहे छोटा हो अथवा बड़ा , उससे केवल पुजारियों की आजीविका ही नहीं चलती। अपितु पूजन सामग्री , फूल मालाएं , धार्मिक साहित्य आदि का विक्रय करने वाले भी अपना परिवार चलाते हैं। अनेक बड़े मंदिर अपनी आय से बड़े कल्याणकारी कार्य भी करते हैं । कुछ लोग हैं इस बात का उलाहना देते हैं कि मंदिरों पर पैसा खर्च करने के बजाय अस्पताल , विद्यालय , छात्रावास और शौचालय जैसी सुविधाओं पर खर्च किया जावे। उनकी बात को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता किंतु इस बारे में भी विचार करना जरूरी है कि समाज में धर्म के प्रति झुकाव भी जरूरी है और व्यवस्थित मंदिर इस दिशा में उपयोगी हो सकते हैं। उनमें जाने से व्यक्ति में परोपकार का भाव जागता है। हाल ही में वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर परिसर के साथ ही उज्जैन के महाकाल मंदिर को नया स्वरूप दिये जाने के जो नतीजे देखने मिले उसके बाद से मंदिरों को सुंदर , सुव्यवस्थित और सुविधा संपन्न बनाने के प्रति रुझान बढ़ा है। वाराणसी में आयोजित मंदिर सम्मेलन में इस बारे में जो योजना बनेगी उसका सुपरिणाम भविष्य में नजर आने की उम्मीद की जा सकती है। बड़े धर्माचार्य भी इस पहल को संरक्षण और सहयोग दें ये भी अपेक्षा है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


No comments:

Post a Comment