Tuesday 25 July 2023

ज्ञानवापी : पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई का विरोध अनुचित



वाराणसी में यूं तो अनेक मस्जिदें होंगी लेकिन ज्ञानवापी को लेकर ही क्यों विवाद होता रहा इसका कारण जानना कठिन नहीं है। हिंदुओं के आराध्य भगवान शंकर के जो 12 ज्योतिर्लिंग हैं उनमें सर्वाधिक श्रद्धालु जहां जाते हैं उनमें से एक है काशी विश्वनाथ । वाराणसी में इस परिसर से एकदम सटी बनी है ज्ञानवापी मस्जिद जिसके बारे में हिंदुओं का दावा है कि मुगल शासन में उसका निर्माण विश्वनाथ मंदिर की जमीन पर  जबरन किया गया था। इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं कि उक्त मंदिर इस्लामिक शासकों द्वारा अनेक बार तोड़ा गया। ज्ञानवापी मस्जिद औरंगजेब की समकालीन है। उसके भीतर ही हिंदुओं की एक देवी का स्थान है जिसकी पूजा का अधिकार भी अदालत द्वारा दिया जा चुका है। अयोध्या के राम मंदिर  की तरह ही वाराणसी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही मस्जिद का विवाद अदालत जा पहुंचा। ज्ञानवापी के वजू खाने में शिवलिंग मिलने की खबर ने तो इस मुद्दे को और गर्मा दिया । दीवारों पर कमल सहित अनेक ऐसे प्रतीक चिन्ह भी देखने मिले जो सनातनी परंपरा का प्रमाण हैं । अदालत द्वारा अंततः ये तय किया गया कि एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) को  वास्तविकता पता लगाने का दायित्व दिया जाए। उल्लेखनीय है अयोध्या विवाद का निपटारा भी पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई में मिले प्रमाणों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने किया था। यदि मुस्लिम पक्ष  को विश्वास है कि उक्त मस्जिद के निर्माण में वहां बने हिंदू धर्म स्थान को नहीं तोड़ा गया  तब एएसआई को खुदाई करने का जो काम अदालत ने सौंपा उससे मुस्लिम पक्ष को सहमत हो जाना चाहिए । इस बात से तो कोई भी इंकार नहीं करेगा कि काशी विश्वनाथ मंदिर भारत में इस्लाम के आगमन के पूर्व से ही वहां पर है। मुगल तो बहुत बाद में आए और औरंगजेब का शासन आते तक तो वह सल्तनत कई पीढ़ी पुरानी हो चुकी थी। ऐसे में जो प्रमाण सामने नजर आते हैं वे हिंदुओं के दावे की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त हैं । लेकिन मुसलमानों को ये कहने का मौका न मिले कि उनका पक्ष नहीं जाना गया , पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई करने कहा गया जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। आज मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर उच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है । गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय ने आज से होने वाली खुदाई पर इसीलिए रोक लगा दी जिससे मुसलमान खुदाई के आदेश को चुनौती दे सकें। इस बारे में एक बात शीशे की तरह साफ है कि ज्ञानवापी विवाद का हल बातचीत से निकलने की संभावना शून्य है। दोनों पक्षों के पास अपने दावे और तर्क हैं । धार्मिक मामलों में भावनाएं भी आड़े आती हैं। ऐसे में यही तरीका बच रहता है कि खुदाई करके देख लिया जाए कि वहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई या नहीं ? यदि पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम मंदिर से जुड़े अवशेषों को ढूंढ निकालती है तब मुस्लिम पक्ष को जिद छोड़कर स्वेच्छा से मस्जिद हटाने की समझदारी दिखानी चाहिए। ऐसा ही मामला मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि का भी है। सैकड़ों साल पहले हिंदुओं के प्रमुख आराध्यों से जुड़े धर्म स्थलों से सटाकर मस्जिद बनाने वालों ने निश्चित रूप से इस्लाम के नाम पर जोर - जबरदस्ती का सहारा लिया। काशी विश्वनाथ के मंदिर को भी अनेक बार तोड़ा गया। और बाद में वहीं ज्ञानवापी खड़ी की गई।  इस्लामिक इतिहास के अच्छे - खासे जानकार भी ये बता पाने में असमर्थ हैं कि उस दौर के मुस्लिम हुक्मरानों ने ऐसी जगहों पर मस्जिदें क्यों बनाईं जिनके एकदम करीब घंटा - घड़ियाल की आवाजों के बीच मूर्ति पूजा होती हो , जो  उनके मजहब में निषिद्ध है। जाहिर है ऐसा हिन्दुओं को चिढ़ाने और डराने के लिए किया गया था। बेहतर होता आजादी के बाद ऐसे मसलों को उसी तरह सुलझा लिया जाता जिस तरह देशी रियासतों का भारत संघ में विलीनीकरण करवाया गया। लेकिन विभाजन से बने हालातों में तत्कालीन सत्ताधीश मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त होकर भविष्य में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को नजरंदाज कर बैठे , जिसका दुष्परिणाम देश भोग रहा है। ये भी दुर्भाग्य है कि ज्यादातर राजनीतिक दल  ऐसे विवादों के हल में सहायक बनने की बजाय मुस्लिम वोट बैंक के लालच में सच्चाई को न व्यक्त करते हैं और न ही स्वीकार। ऐसे में ज्ञानवापी प्रकरण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई से रोकने का उद्देश्य मामले को टालते रहने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।  अयोध्या में हुई खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की जिस टीम द्वारा की गई उसका नेतृत्व के.के मोहम्मद नामक  मुसलमान ने किया था । चूंकि खुदाई में पाए गए अवशेषों से हिंदू मंदिर होने का प्रमाण मिला इसलिए उन्होंने निःसंकोच अपनी रिपोर्ट में सच्चाई रख दी। मुस्लिम पक्ष को ऐसा ही डर ज्ञानवापी के बारे में लग रहा है । और इसीलिए वह पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में रुकावट डालने प्रयासरत है । लेकिन मुसलमानों में थोड़े - बहुत जो लोग शिक्षित होकर आधुनिक सोच से जुड़े हैं , उनको चाहिए खुलकर आगे आएं और अपने समुदाय को बरगलाने वाले लोगों से बचने की सलाह दें। यदि खुदाई मुस्लिमों के पक्ष में गई तब ज्ञानवापी संबंधी हिंदुओं का दावा तथ्यहीन साबित हो जायेगा । लेकिन अयोध्या की तरह यहां भी हिंदू संस्कृति के प्रतीक चिन्ह मिले तब मुस्लिम नेताओं को  यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि  वह स्थान काशी विश्वनाथ का ही हिस्सा है जिस पर धर्मांध मुस्लिम शासकों ने जबरदस्ती मस्जिद खड़ी की थी।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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