Monday 21 August 2017

रेल : 100 की स्पीड में ये हाल हैं तो...

बीते शनिवार उ.प्र. में मुजफ्फर नगर के समीप उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने के कारण दो दर्जन यात्री मृत्यु के आगोश में चले गये वहीं बड़ी संख्या में घायल हुए लोग अस्पतालों में हैं। उनमें कुछ की हालत चिंताजनक बनी हुई है। दुर्घटना का कारण मरम्मत हो रही पटरी पर ट्रेन का तेज गति से गुजरना बताया गया। रेलवे की व्यवस्था के अनुसार जहां भी पटरियों में सुधार अथवा मरम्मत चलती है वहां से गुजरने वाली गाडिय़ों को गति धीमी करने हेतु संकेत काफी पहले दे दिये जाते हैं किन्तु उक्त हादसे में ये चूक हुई। चूंकि एंजिन ड्राइवर को कोई संकेत नहीं मिला अत: वह 15 किमी की अपेक्षित गति की जगह 115 किमी की गति से ट्रेन दौड़ता हुआ लाया जिसके कारण हादसा हो गया। लगातार दुर्घटनाओं के कारण अच्छा काम कर रहे रेल मंत्री सुरेश प्रभु पर चौतरफा हमले होने लगे और उसी के कारण उन्होंने चंद घंटों में दुर्घटना का कारण पता कर दोषियों पर कार्रवाई करने का फरमान जारी कर दिया। मौके की नजाकत को देखते हुए मातहत अधिकारियों ने भी गजब की फुर्ती दिखाई और दुर्घटना के 24 घंटे बीतते-बीतते अदना से कर्मचारी से लेकर महाप्रबंधक तक नप गए। यद्यपि बुलेट ट्रेन की गति से की गई इस कार्रवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि अभी तक दुर्घटना स्थल से क्षतिग्रस्त हुए डिब्बे तक नहीं हटाए जा सके। चन्द घंटों के भीतर दुर्घटना के कारणों का निष्कर्ष निकालकर उसकी तह तक पहुंच जाने जैसी अभूतपूर्व दक्षता यदि रेलवे में रही होती तब सबसे सुरक्षित समझे जाने वाला यात्रा का ये साधन इस तरह असुरक्षित नहीं होता। सुरेश प्रभु की पेशेवर क्षमता तथा ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठाता। मंत्रालय से जो जानकारी मिलती रहती है उसके अनुसार वे अपने काम में पूरा ध्यान लगाते हैं परन्तु रेलवे बोर्ड से पटरी तक फैली कर्मचारियों एवं अधिकारियों की विशाल फौज उसका चौथाई भी नहीं करती। मुजफ्फरनगर हादसे के पीछे न तो तकनीकी खराबी रही और न ही कोई तोडफ़ोड़। मरम्मत के लिये रेल पटरियों को कसकर रखने वाले कपलिंक तक ढीले पड़े थे जिस पर 100 किमी से ऊपर की रफ्तार से गाड़ी को गुजरने देना अव्वल दर्जे की लापरवाही नहीं तो और क्या थी? इसके लिये सही मायनों में कौन-कौन जिम्मेदार थे ये तो अब गहन जांच के बाद ही पता चल सकेगा परन्तु आये दिन रेलवे की कार्य संस्कृति को बदलने की घोषणाओं के बावजूद भी यदि हम नहीं सुधरेंगे की कसम ही यदि खा रखी गई तब मंत्री बनकर बैठे प्रभु तो क्या साक्षात प्रभु भी धरती पर उतर आएं तब भी पटरी से लगातार उतरती जा रही रेलवे की गाड़ी को पटरी पर लाना मुमकिन नहीं होगा। रेलवे का संचालन कोई साधारण काम नहीं है। तमाम विसंगतियों के बावजूद इस सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रम की आवश्यकता तथा उसके द्वारा प्रदत्त सेवाओं को पूरी तरह नजरंदाज नहीं किया जा सकता परन्तु विश्वस्तरीय बनने के फेर में कहीं चौबे जी छब्बे बनने चले लेकिन दुबे बन गए वाली उक्ति चरितार्थ न हो जाए ये सबसे अधिक विचारणीय है। मृतकों और घायलों को मुआवजा, दोषी कर्मियों और अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई इत्यादि तो नियमानुसार होनी ही चाहिये परन्तु सोचने वाली बात ये है कि प्रतिवर्ष उन्नत तकनीक के जरिये रेल यात्रा को दुर्घटनारहित बनाने का आश्वासन सपना क्यों बना हुआ है? वाजपेयी सरकार ने सुरक्षा के नाम पर यात्रियों से अतिरिक्त किराया भी वसूलना शुरू किया था जो अभी भी जारी है। इस दिशा में कुछ नहीं किया गया ये कहना तो सही नहीं होगा परन्तु जो हुआ वह पर्याप्त नहीं है। कहने को इतने बड़े देश और रेलवे के विशालतम नेटवर्क में छुटपुट घटना होना अस्वाभाविक नहीं होता परन्तु एक हादसे की जांच पूरी होते-होते दूसरी का हो जाना ये कहने के लिये बाध्य करता है कि रेलवे में दायित्व बोध के प्रति उपेक्षा भाव को दूर करने की कोशिशें विफल रही हैं। सुरेश प्रभु से देश ने काफी उम्मीदें लगा रखी हैं। वे काफी लगन से काम भी कर रहे हैं परन्तु रूक-रूककर होने वाले रेल हादसे उनके सारे किये-धरे पर पानी फेर देते हैं। 300-400 किमी की गति वाली बुलेट टे्रन को पटरी पर उतारने की महत्वाकांक्षी परियोजना को अमली जामा पहिनाने में जुटे रेलवे से जन सामान्य की अपेक्षा महज इतनी है कि फिलहाल चल रही गाडिय़ों को ही वह सही-सलामत चलाते हुए यात्रियों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाता रहे। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि आधुनिकीकरण एवं सुविधाओं के विस्तार ने एक तरफ जहां रेल यात्रा में आकर्षण उत्पन्न किये हैं वहीं दूसरी तरफ साफ-सफाई, खाद्य सामग्री की गुणवत्ता, चोरी, डकैती से सुरक्षा आदि के मामले में जितने दावे किये जाते हैं उसका आधा भी महसूस नहीं होता। गाडिय़ों की लेटलतीफी भी रूकने का नाम नहीं ले रही। तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ रहा ये विभाग मौजूदा स्थितियों में नीति एवं निर्णय की दृष्टि से दोराहे पर खड़ा नजर आ रहा है। यही वजह है कि हर दुर्घटना के बाद उसके कारणों को तो पता लगा लिया जाता है परन्तु उनमें कमी लाने का प्रयास ईमानदारी से नहीं किया जाता।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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