Wednesday 30 August 2017

धोखा और धूर्तता-चीन की विशेषता

गत दिवस पूरे देश का ध्यान दुष्कर्म करने वाले एक फर्जी बाबा को मिलने वाली सजा पर लगा था तभी खबर आ गई कि भारत भूटान-चीन सीमा पर स्थित डोकलाम को लेकर चला आ रहा तनाव ठंडा हो गया। भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता ने जानकारी दी कि भारत और चीन अपनी-अपनी सेना वहां से हटा लेंगे। प्रधानमंत्री की ब्रिक्स सम्मेलन के सिलसिले में होने वाली चीन यात्रा के पहले कूटनीतिक स्तर की चर्चा के उपरांत निकले इस समाधान को भारत की जीत के तौर पर प्रचारित किया जाने लगा। चीन ने घुटने टेके जैसे कटाक्ष शुरू हो गये। शायद इसी की प्रतिक्रिया रही कि चीन के विदेश विभाग ने स्पष्ट किया कि भारत अपने सैनिक पीछे हटाएगा किन्तु चीन द्वारा पहले की तरह अपने क्षेत्र की निगरानी हेतु सैनिकों की गश्त जारी रहेगी। इससे ये भ्रम फैला कि भारत की तरफ से जिस समझौते की बात कही गई वह गलत थी किन्तु शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि दोनों अपनी जगह सही हैं। दरअसल सारा झगड़ा डोकलाम नामक उस इलाके में चीन द्वारा सड़क बनाने की कोशिश से शुरू हुआ जो भूटान का है। चीन हड़पने की फिराक में है। गत जून में जब उसने वहां सड़क बनाने की कोशिश की तब भूटान ने उसे रोका तथा भारत को गुहार लगाई। भूटान की सुरक्षा का जिम्मा भारत के पास होने से हमारी सेना ने जाकर चीन को काम करने से रोक दिया। इस दौरान धक्का-मुक्की तथा हाथापाई भी हुई जिसके बाद डोकलाम के निर्जन पड़े इलाके में दोनों देशों के कुछ सैकड़ा सैनिक आमने-सामने तंबू गाड़कर बैठ गए। फिर चीन के सरकारी समाचार माध्यमों में भारत को धमकाने के प्रयास शुरू हो गए। 1962 से भी बुरी हार की चेतावनी दी गई। अपनी सैन्य शक्ति की बार-बार शेखी बघारी गई। सैनिक नहीं हटाने पर हमले की धमकी देने में भी चीन ने संकोच नहीं किया। इधर भारत ने साफ कर दिया कि जब तक चीन के सैनिक हैं तब तक हम भी पीछे नहीं हटेंगे। यही नहीं तो लद्दाख से डोकलाम तक सटी पूरी भारत-चीन सीमा पर हमले का माकूल जवाब देने की तैयारी कर ली गई। वायुसेना को भी तैयार कर दिया गया। रक्षा मंत्री ने दो टूक कहा कि भारत 1962 वाला देश नहंीं रहा वहीं संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बिना लाग-लपेट के कह दिया कि भारत दबाव में आकर अपने सैनिक नहीं हटाएगा। इसी बीच पूरे देश में चीनी सामान के विरुद्ध माहौल बनने लगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक ने स्वदेशी जागरण मंच नामक अपने अनुषांगिक संगठन के जरिये चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम शुरू कर दी। दीपावली सीजन पर चीनी पटाकों के उपयोग को रोकने का माहौल भी बनने लगा। भारत सरकार ने भी तमाम चीनी वस्तुओं के मानकों पर खरा न उतरने के नाम पर रोक लगाने की तरफ कदम बढ़ा दिए। इस सबके बीच कूटनीतिक प्रयास भी चलते रहे। प्रधानमंत्री ने विश्व की अन्य महाशक्तियों को जिस तरह भारत के पक्ष में किया उससे चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता चला गया। यद्यपि इस बीच वह कभी तिब्बत में सैन्य अभ्यास तो कभी सेना की परेड के वीडियो दिखाकर डराने की कोशिश करता रहा किन्तु भारत ने कूटनीति और सैन्य दोनों ही मोर्चों पर धैर्य तथा चतुराई का परिचय दिया। आने वाले दिनों में चीन में होने वाले ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री मोदी की उपस्थिति को लेकर भी भारत की तरफ से अनिश्चितता बना दी गई जिससे आयोजन स्थगित होने का खतरा पैदा हो गया। ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में गए अजीत डोभाल ने भी चीनी पक्ष के साथ जो चर्चाएं की वे कारगर साबित हुईं। अंतत: दोनों तरफ से ये संकेत आ गया कि डोकलाम में बनी युद्ध की स्थिति टाल दी गई है। भारत के सैनिक जिस क्षेत्र में तैनात किये गये वह भूटान का तथा निर्जन है। नाथुला दर्रे से 15 किमी दूर भारत-भूटान चीन की सीमाएं मिलकर एक त्रिकोण बनाती हैं। चीन इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भूटान को दबाता रहा है। उसने भूटान को आर्थिक मदद के साथ ही सैन्य संरक्षण का आश्वासन भी दिया किन्तु बात नहीं बनी। नेपाल से भी उसे अपेक्षित समर्थन नहीं मिला वहीं श्रीलंका ने भी चीन द्वारा बनाए अपने बंदरगाह के सैन्य उपयोग की अनुमति नहीं दी। इस दौरान उ.कोरिया और अमेरिका के बीच उत्पन्न युद्ध की परिस्थिति से भी चीन दबाव में आ गया। जब उसे लगा कि विश्व बिरादरी में भारत का कूटनीतिक समर्थन बढ़ता जा रहा है तब उसे अलग-थलग होने का भय सताने लगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कठोर रवैये ने भी चीन के हौसले पस्त किये किन्तु सबसे बड़ी बात रही मोदी सरकार द्वारा कूटनीतिक प्रयासों को जारी रखने के साथ ही मोर्चे पर सेना की तैनाती। जब चीन को लगा कि भारत की तरफ से भी कड़ा जवाब मिलेगा तब उसने पैंतरा बदला।  भले ही वह कहे कि उसके सैनिक पूर्व की तरह अपने क्षेत्र में गश्त करते रहेंगे किन्तु डोकलाम में घुसकर जबरन सड़क बनाने का उसका पैंतरा फुस्स होकर रह गया है। वह अपनी सीमा पर चौकसी रखे ये उसका अधिकार है जिस पर भारत और भूटान को कोई एतराज नहीं हो सकता। रही बात भारत की तो उसने अपनी टुकडिय़ां भूटान के भूभाग की रक्षा हेतु तैनात की थीं जिसमें वह हर तरह से सफल रहा। चीन की अर्थव्यवस्था इन दिनों ढलान पर है। आर्थिक प्रगति के आंकड़ों की असलियत उजागर होने लगी है। यही स्थिति रही तो आगामी पांच साल में वह भारी अर्थ संकट में घिर जाएगा। उसकी तुलना में विदेशी पूंजी का आगमन भारत में तेजी से हो रहा है। तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में उद्योग लगाने तैयार हैं। बीते तीन वर्ष में भारत सरकार ने रक्षा सौदों को लेकर जबर्दस्त सक्रियता दिखाई जिसके कारण सेना का मनोबल एवं ताकत दोनों में वृद्धि हुई है। चीन समझ गया कि 1962 को दोहराने की बात सोचना मूर्खों के स्वर्ग में रहने जैसा होगा। यदि लड़ाई 10 दिन भी चलती तब उसमें होने वाले नुकसान के अनुमान ने भी उसे निरुत्साहित कर दिया। जिस सड़क को यह मध्य एशिया होते हुए बनाना चाह रहा है उससे भारत के दूर रहने के कारण उसने डोकलाम में दबाव बनाने की चाल चली किन्तु वह कारगर नहीं हो सकी। बावजूद इसके भारत को सतर्क रहना होगा क्योंकि चीन की कूटनीति धोखे और धूर्तता पर आधारित है। डोकलाम में चूंकि उसे उम्मीद से उलट जवाब मिला इसलिये संभव है उसने फिलहाल टकराव को टालने का मन बनाया हो परन्तु इससे तरह निश्चिंत होकर बैठ जाना नुकसान देह हो सकता है। बेहतर होगा भारत लगातार आर्थिक मोर्चे पर दबाव बढ़ाए। चीन की ताकत सैन्य बल के साथ ही निर्यात भी है जिसकी काफी खपत भारत में होती है। इसमें जितनी ज्यादा कमी की जावेगी चीन का दम उतना ही फूलेगा। ये देखते हुए उचित होगा कि कूटनीतिक सफलता के उपरांत भारत सरकार बिना हल्ला मचाए चीन से हो रहे आयात में कमी लाने के उपाय ढूंढकर उन्हें लागू करे। विस्तारवाद माओ के समय में तय की गई चीन की नीति है जिसे वह पड़ोसी देशों पर थोपने की कोशिश करता रहता है। भारत उसकी राह में बड़ा रोड़ा बन गया है। इसलिये ये मानकर चलना चाहिए कि जैसा थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत कह चुके है वह डोकलाम सरीखी हरकतें भारत के साथ सटी सीमा पर दूसरी जगह भी करता रहेगा।

- रवींद्र वाजपेयी

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