Saturday 5 August 2017

मोदी-मुखर्जी : काश, अन्य नेता भी इनसे सीखें

अवकाश प्राप्त राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी दो विपरीत राजनीतिक ध्रुवों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। तीन वर्ष तक एक साथ काम करने के बाद भी दोनों ने अपनी सोच बदल ली हो ये भी देखने नहीं मिला किन्तु पद पर रहते हुए भी जिस तरह की सौजन्यता और समन्वय उनके बीच बना रहा वह राजनीति में बढ़ती कटुता और प्रतिशेध की भावना के दौर में ताजी हवा के झोके के समान है। राष्ट्रपति पद से विदाई के पहले आयोजित कार्यक्रमों में श्री मुखर्जी और श्री मोदी द्वारा एक-दूसरे की प्रशंसा के जो उद्गार व्यक्त किये गये उन्हें औपचारिकता तथा शिष्टाचार मानकर भले ही उपेक्षित कर दिया जावे परन्तु राष्ट्रपति भवन छोडऩे के बाद भी प्रणब मुखर्जी को नरेन्द्र मोदी ने जो पत्र भेजा वह यह दर्शाता है कि तमाम विरोधाभासों के बाद भी लोकतांत्रिक मर्यादाएं बदस्तूर कायम हैं। प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में जिस भाषा और भाव को प्रगट किया वह स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों बाद तक जीवित रही उस सौजन्यता और सज्जनता की याद दिला गया जो आज के राजनीतिक वातावरण में दुर्लभ होकर रह गई है। प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में स्वयं को अनुभवहीन बताकर श्री मोदी ने श्री मुखर्जी से मिले सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिये जो कृतज्ञता व्यक्त की वह निश्चित रूप से ह्दय को छू गई। प्रत्युत्तर में श्री मुखर्जी ने भी जो भावभीनी प्रतिक्रिया दी वह इस बात का संकेत है कि बड़ों को सम्मान देकर ही उनका प्यार हासिल किया जा सकता है। 1939 में जबलपुर के ऐतिहासिक त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच राजनीतिक मतभेद किस हद तक बढ़ गए थे ये इतिहास के पन्नों में विस्तार से अंकित है। लेकिन उसके बाद भी सुभाष बाबू ने गांधी जी को लिखे एक पत्र में उन्हें पहली बार राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था जो बाद में गांधी जी के साथ स्थायी रूप से जुड़ गया। राजनीतिक मतभेदों के शत्रुता में बदलने की जो प्रवृत्ति हमारे देश में बढ़ती गई उसके कारण ही राजनेताओं की छवि और प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई। नेता शब्द कभी सम्मान सूचक हुआ करता था किन्तु अब उसके साथ व्यंग्य और घृणा की भावना जुड़ गई है। इस माहौल में मोदी-मुखर्जी के बीच सज्जनता और सौजन्यता का जो अदान-प्रदान देखने मिला वह मन को सुकून देने वाला रहा। अटलबिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि राजनीति में विपक्षी शत्रु नहीं होता। पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान प्रधानमंत्री ने अपने व्यवहार से इसे साबित कर दिखाया है। काश, अन्य नेता भी इन दोनों से थोड़ा बहुत सीख लें।

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