Thursday 10 August 2017

गौतम जैसे एक ढूढ़ों सैकड़ों मिलेंगे

अमेरिका से लौटै एक युवक को फ्लैट में अपनी मां का कंकाल मिला। वह कब मर गई कोई जान न सका। इस खबर ने हर उस इंसान की आंख गीली कर दी होगी जिसमें लेश मात्र भी संवेदनशीलता बाकी है लेकिन उसी के फौरन बाद एक दूसरी खबर आ गई जिसने सोचने को मजबूर कर दिया। यद्यपि ये कोई अनोखी घटना नहीं है और हमारे इर्द-गिर्द इस तरह के प्रसंग बिना तलाशे मिल जाते हैं किन्तु मामला चूंकि एक धनकुबेर के अर्श से फर्श पर आने का है इसलिये ये समाचार माध्यमों की सुर्खी बन गया। सुप्रसिद्ध जेके ग्रुप के विजयपत सिंघानिया कारोबारी जगत में एक जाना-पहिचाना नाम रहे है। रेमण्ड नामक प्रतिष्ठित कंपनी के मालिक विजयपत पद्यमभूषण सरीखे सम्मान से अलंकृत व्यक्ति हैं। कुछ बरस पूर्व उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने पुत्र गौतम के नाम कर दी। इसे उनकी वानप्रस्थी मानसिकता माना गया। हर पिता बुढ़ापे में अपनी जिम्मेदारियां पुत्र के हवाले कर चिंतामुक्त होने में जिस संतोष का अनुभव करता है वह अवर्णनीय है किन्तु सतयुग की सोच कलियुग आते-आते तक पूरी तरह सड़-गल गई है। विजयपत सिंहानिया ने परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने तमाम शेयर एवं संपत्ति पुत्र गौतम को सौंपकर उम्र के अंतिम पड़ाव में निश्चिंत होकर जीना चाहा परन्तु पूत ने अपने को कपूत साबित कर दिया। 36 मंजिला जेके हाऊस से बूढे पिता को बेदखल कर दिया जो अब किराए के छोटे से घर में रहने बाध्य हैं। उनसे  कार-ड्रायवर भी छीन लिये। बेबस पिता अदालत की शरण में पहुंचा है। गत दिवस सड़क पर पैदल जाम हुए उनका एक चित्र प्रसारित होने के बाद उनके पक्ष में सहानुभूति का सैलाब आ गया। जिसे देखो गौतम को पानी पी-पीकर कोस रहा है। अन्य औद्योगिक घरानों के भीतर भी इस तरह की कलह चला करती है। संपत्ति के बंटवारे को लेकर खून के रिश्तों को ताक पर रख दिया जाता है। लेकिन संदर्भित घटना वाकई हिला देने वाली है। एक बेटा अपने अरबपति पिता की संपत्ति को हासिल करने के बाद उसे पाई-पाई के लिये मोहताज कर दे, उससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी। आयकर बचाने के लिये धार्मिक स्थलों को दान देने अथवा चैरिटी के दिखावटी कामों से अपनी दानशीलता का ढिढ़ोरा पीटने वाले गौतम सिंघानिया सरीखे लोगों की तिजोरियों में भले पैसा रखने की जगह न हो किन्तु ऐसे लोग दिल से बेहद गरीब होते हैं। लेकिन जैसा प्रारंभ में कहा गया कि ये केवल विजयपत और गौतम के बीच हुआ हो ये मानना सही नहीं होगा। आधुनिकता के इस दौर में रिश्तों की मर्यादा और उनका सम्मान घटते-घटते अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है। बूढ़े-मां-बाप अब जिम्मेदारी की बजाय असहनीय बोझ और अवांछित माने जाने लगे हैं। हम दो हमारे दो का नारा परिवार नियोजन को कितना सफल कर सका ये बहस का विषय है किन्तु इसने संयुक्त परिवार को एकल परिवार में जरूर बदल दिया। विजयपत बड़े आदमी रहे हैं इसलिये उनकी बदहाली पहले पन्ने की खबर बन गई किन्तु निगाह थोड़ी दायें-बायें घुमाने पर एक-दो नहीं सैकड़ों ऐसे गौतम मिल जाएंगे जिन्होंने अपने जन्मदाता माता-पिता को जिंदा लाश बना दिया है। बड़ी बात नहीं जल्द ही ये खबर सुनने और पढऩे मिले कि गौतम सिंघानिया ने एक सर्वसुविधायुक्त वृद्धाश्रम बनाने हेतु करोड़ों रूपये दान किए हैं।

No comments:

Post a Comment