एक तरफ तो उ.प्र. एवं म.प्र. सरकार ने मदरसों में स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रध्वज फहराने तथा राष्ट्रगान गाने का फरमान जारी किया वहीं केरल की वाममोर्चा सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख डा. मोहन भागवत को पलक्कड़ जिले के एक विद्यालय में स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रध्वज फहराने से रोकने संबंधी आदेश जारी कर दिया। संघ की बैठक के सिलसिले में केरल प्रवास पर पहुंचे डा. भागवत को राजधानी तिरूवंनतपुरम से 355 कि.मी. दूर स्थित पलक्कड़ जिले के एक सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालय में गत दिवस सुबह ध्वजारोहण करना था किन्तु जिलाधिकारी मैरी कुट्टी ने विद्यालय प्रबंधन को लिखित आदेश भेजकर संघ प्रमुख के राष्ट्रध्वज फहराने पर ये कहते हुए रोक लगा दी कि ये अधिकार केवल विद्यालय की प्रबंध समिति के पदाधिकारी अथवा विधायक-सांसद को हैं। डा. भागवत का विद्यालय में आना पूर्व निर्धारित था किन्तु जिलाधिकारी ने आयोजन के कुछ घंटे पूर्व ही निषेधात्मक आदेश भेज दिया। यद्यपि संघ प्रमुख ने उक्त आदेश की अवहेलना करते हुए ध्वज फहराया एवं अन्य कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया। ऐसे समय में जब केरल में संघ कार्यकर्ताओं की हत्या की खबरें आये दिन मिल रही हों तब राज्य सरकार के इशारे पर संघ प्रमुख को एक विद्यालय में राष्ट्रध्वज फहराने से रोकना इस बात का प्रमाण है कि वाममोर्चा सरकार अपने इस एकमात्र गढ़ को लेकर चिंतित हो उठी है। जबसे वहां वामपंथी सरकार सत्ता में आई है तभी से राज्य के विभिन्न अंचलों में संघ एवं भाजपा कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलों की बाढ़ आ गई है। मुख्यमंत्री के गृह जिले में तो वामपंथी खुले आम गुंडागर्दी पर उतारू हैं। दरअसल उनकी सारी खुन्नस केरल में संघ और भाजपा का तेजी से बढ़ता प्रभाव है। गत लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में हुई आश्चर्यजनक वृद्धि से भी वामपंथी सतर्क हो उठे हैं। बंगाल से सफाया हो जाने के बाद अब केरल ही उनकी शरणस्थली के रूप में बच रहा है। यद्यपि अभी भी कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा मुख्य विपक्ष के रूप में विद्यमान है किंतु जिस तेजी से केरल के युवा वर्ग में संघ एवं भाजपा के प्रति रूझान बढ़ रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगने लगा है कि आगामी कुछ वर्षों में भाजपा तीसरी ताकत के तौर पर स्थापित हो जाएगी। ईसाई मिशनरियों के साथ ही मुस्लिम लीग के प्रभाव वालेे केरल में हिंदू संगठनों की पकड़ और प्रभाव में प्रत्याशित वृद्धि होने के पीछे रास्वसंघ का परिश्रम बड़ा कारण है। वामपंथी ये समझते हैं कि भाजपा को यदि बढऩे से रोकना है तो संघ के रास्ते में रोड़े अटकाए जाएं। यही वजह है कि संघ की शाखाओं पर हमले करने के साथ ही स्वयं सेवकों को अकेला पाते ही उनकी हत्या कर देने जैसा जघन्य कृत्य बेरोकटोक किया जाने लगा है जिसे अप्रत्यक्ष रूप से वाममोर्चे की सत्ता से संरक्षण हासिल है। ये पहला अवसर नहीं है जब संघ की संगठनात्मक बैठक अथवा सरसंघ चालक का प्रवास वहां हो रहा हो। लेकिन हाल ही में जो वातावरण पूरे राज्य में निर्मित हो चुका है उसके कारण वामपंथियों को अपना भविष्य संकट में नजर आने लगा है। जहां तक बात संघ प्रमुख डा. भागवत को राष्ट्रध्वज फहराने से रोकने की थी तो जिला अधिकारी के लिखित आदेश की अवहेलना करते हुए उन्होंने ध्वज फहराकर ये संदेश दे दिया कि संघ वाममोर्चे के आतंक से पूरी तरह भयमुक्त है। राष्ट्रध्वज फहराना हर देशवासी का अधिकार ही नहीं कत्र्तव्य भी है। और फिर डा. भागवत इस देश के सबक बड़े सामाजिक संगठन के प्रमुख हैं। 15 अगस्त को रास्वसंघ के नागपुर स्थित मुख्यालय पर वे राष्ट्रध्वज फहराते हैं। संघ की बैठक के केरल में होने के कारण इस वर्ष चूंकि स्वाधीनता दिवस पर उन्हें केरल में रहना था इस कारण उनका वहां ध्वजारोहण का कार्यक्रम निश्चित हो गया था। केरल की वामपंथी सरकार ने संघ प्रमुख को राष्ट्रध्वज फहराने से रोकने की असफल कोशिश कर क्या हासिल किया ये तो वही जाने किन्तु इससे इस राज्य में ये संदेश जरूर प्रसारित हो गया कि संघ के बढ़ते कदमों से वाममोर्चा में घबराहट है। जहां तक राजनीतिक विचारधारा का सवाल है तो मौजूदा परिदृश्य पर नजर डालें तब यही लगता है कि वैचारिक संघर्ष के लिहाज से भविष्य में वामपंथी और भाजपा दो ही प्रतिद्वंदी बचेंगे क्योंकि कांग्रेस पूरी तरह भटकाव के रास्ते पर है वहीं समाजवादी तबका पूरी तरह अवसरवादी होकर रह गया है। ऐसे में जब बंगाल में वामपंथ तेजी से अप्रासंगिक होता जो रहा है तथा देश के बड़े हिस्से में राष्ट्रवादी सरकार बनती जा रही है तब वाममोर्च अपने इकलौते घर को बचाने के लिये बदहवासी में हिंसा तथा दमन का सहारा लेने के रास्ते पर चल पड़ा है जो उसकी कार्यशैली का परंपरागत तरीका भी है। लगभग चार दशक के शासन में बंगाल भी वामपंथी आतंक का दंश झेल चुका है। आखिरकार वहां उसकी जड़ें उखड़ गईं किन्तु केरल में अभी भी राजनीतिक दृष्टि से वाममोर्चा एक बड़ी ताकत है। पूरे देश के राजनीतिक वातावरण का असर इस छोटे से राज्य पर भी होने लगा है। वाममोर्चे की घबराहट का सबसे बड़ा कारण है इस पूर्ण साक्षर राज्य में जागरूकता के कारण परिवर्तन की प्रक्रिया का तेज होना। संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद संघ प्रमुख को राष्ट्रध्वज फहराने से रोकने का प्रयास हर दृष्टि से निंदनीय है। अन्य दलों को भी राजनीतिक मतभेद भुलाकर केरल सरकार के इस निर्णय की आलोचना करना चाहिए। संघ सृदश राष्ट्रवादी संगठन के प्रमुख को स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रध्वज फहराने से रोकने की कोशिश वामपंथियों की घटिया मानसिकता का ताजा उदाहरण है।
- रवींद्र वाजपेयी
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