Friday 18 August 2017

शाह का शाही स्वागत!!

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद सबसे ताकतवर कहे जाने वाले अमित शाह तीन दिन के प्रवास पर भोपाल आये हुए हैं। 2014 की अभूतपर्व विजय के रणनीतिकार के तौर पर उभरे श्री शाह का भाजपा में धूमकेतु की तरह अचानक उभरना बहुतों के लिये कौतूहल तो बाकी के लिये ईष्या का कारण भी हो सकता है किन्तु ये मान लेने में कुछ भी गलत नहीं है कि इस शख्स ने कम उम्र में ही जिस ऊंचाई को स्पर्श किया वह आश्चर्यचकित कर देती है। एक के बाद एक प्रदेश में भाजपा का प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की उनकी रणनीति ने वाकई कमाल कर दिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में जहां पार्टी का कोई नाम लेवा नहीं था वहां येन-केन-प्रकारेण उसकी सरकारें बनवाने में प्राप्त सफलता को नैतिकता की दृष्टि से भले ही उचित नहीं माना जावे परन्तु चूंकि भाजपा के विरोधी दल भी उसके खिलाफ सिद्धांतों एवं आदर्शों को तिलांजलि देकर लड़ रहे हैं इस वजह से अमित शाह की रणनीति पर सवाल उठाने का अधिकार उन्हें नहीं रहा। सबसे बड़ी बात श्री शाह की ये रही कि वे भाजपा के मेरूदंड राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ काफी अच्छा तालमेल बनाकर चल रहे हैं जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आते जा रहे हैं। बंगाल में वामपंथियों और कांग्रेस को धकेलकर दूसरे स्थान पर भाजपा का आ जाना असंभव को संभव बना देना है। स्थानीय निकाय चुनाव के जो परिणाम गत दिवस सामने आए उनसे साफ हो गया कि श्री शाह के नेतृत्व में भाजपा बंगाल में अपने पैरों पर खड़ी होने लायक बन गई है। चूंकि उन्हें प्रधानमंत्री का विश्वास और वरदहस्त दोनों हासिल हैं इसलिये पार्टी के छोटे-बड़े नेता तक उनके आभामंडल से या तो अभिभूत हैं या भयभीत। जब भाजपा पर अटल- आडवाणी की जोड़ी का जबर्दस्त प्रभाव था तब भी उनका इतना दबदबा शायद नहीं रहा। अमित शाह का राष्ट्रीय राजनीति में पर्दापण 2013 में हुआ। जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भाजपा ने बनाया तब वे श्री शाह को गुजरात से उठाकर रातों-रात दिल्ली लाये और चुनाव संचालन उन्हें सौंप दिया। इसके पहले तक श्री शाह की पहचान गुजरात के गृहमंत्री के तौर पर कम और उन मुकदमों की वजह से ज्यादा थी जिनके चलते उन्हें महीनों जेल में रहना पड़ा। यहां तक कि अदालत ने उन्हें गुजरात से बाहर रहने तक के लिये बाध्य किया। इसी आधार पर विरोधी तड़ीपार कहकर उनका मजाक उड़ाया करते हैं। जैसी परिस्थिति बन गई है उसे देखते हुए ये कहना पूरी तरह सही होगा कि अमित शाह के पहले के किसी भी भाजपा अध्यक्ष का इतना रौब या यूं कहें कि खौफ पहले नहीं देखा गया। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे नेताओं के नाम भी पार्टी कार्यकर्ताओं को स्मरण नहीं होंगे क्योंकि तब अटलजी ही अटलजी ही थे लेकिन श्री मोदी के एक छत्र प्रभाव के बाद भी अमित शाह ने अपना जो आभामंडल बनाया वह हर दृष्टि से उल्लेखनीय है। म.प्र. की राजधानी भोपाल में उनके तीन दिवसीय प्रवास को 2018 के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है और ये गलत भी नहीं है। जैसी कि जानकारी मिली है उसके अनुसार श्री शाह सरकार के कामकाज की सूक्ष्म समीक्षा करेंगे। मंत्रियों की मौखिक परीक्षा भी ली जावेगी, वहीं जनप्रतिनिधियों और संगठन पदाधिकारियों के अलावा समाज के विभिन्न वर्गों के चुनिंदा लोगों को श्री शाह से मिलने का अवसर दिया जावेगा। भाजपा में संगठन प्रमुख का इस तरह का दौरा होता रहता है। कई बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ भी संगठनात्मक मसलों के साथ चुनावी रणनीति पर विचार किया जाता है परन्तु श्री शाह के इस दौरे को लेकर भाजपा ने भोपाल को जिस तरह सजाया है तथा हवाई अड्डे पर उनकी अगवानी से लेकर तो पार्टी के प्रदेश मुख्यालय तक में जिस तरह का तामझाम बगराया गया और कार्यालय में सब कुछ बदल दिया गया वह कचोटता है। जिस तरह राष्ट्रपति के आगमन पर सरकारी विश्रामगृहों में सब कुछ चकाचक कर दिया जाता है ठीक वैसा ही दिखावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के स्वागत में शिवराज सिंह चौहान और उनके आज्ञाकारी माने जाने वाले नंदकुमार चौहान कर रहे हैं। अध्यक्ष का भव्य स्वागत उनके मान-सम्मान के साथ ही पार्टी के प्रभाव को बढ़ाने की दृष्टि से भी जरूरी माना जाता है। ऐसे अवसरों पर अपना शक्ति प्रदर्शन रणनीति का हिस्सा होता है। भीड़ बटोरना भारतीय राजनीति की पहचान बन गई है किन्तु चाल-चारित्र और चेहरे की दुहाई देने और पं. दीनदयाल उपाध्याय के नाम की निरन्तर माला जपने वाली पार्टी सत्ता के सहारे यदि अपने धन बल का इस तरह वीभत्स प्रदर्शन करे तो वह खटकता है। पार्टी के झंडे-बैनरों से शहर को सजा देना अलग बात है और हवाई अड्डे पर चंद मिनटों की अगवानी पर फिल्मी स्टाईल का आयोजन अलग बात। भाजपा के प्रदेश कार्यालय में विगत कई दिनों से ऐसा लग रहा था मानो यहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के स्वागत की नहीं वरन् किसी राजा-महाराजा अथवा धनकुबेर की बेटी के ब्याह की तैयारी हो रही हो। म.प्र. की भाजपा अब कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल के दौर की पार्टी तो नहीं रही। चने से प्रारंभ यात्रा अब सुस्वादु व्यंजनों तक आ पहुंची है। अमित शाह की पसंद का खास भोजन इस तरह बनाया जा रहा है मानो कोई विदेशी राजप्रमुख आया हो। निश्चित रूप से शिवराज सिंह और नंदू भैया के स्नेहपूर्ण संबोधन से पुकारे जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को संतुष्ट करने के लिये वैभवपूर्ण इंतजाम किये हैं परन्तु श्री शाह बेहद पैनी नजर रखते हैं। एक दिन पहले ही स्थानीय निकाय रूपी परीक्षा में अव्वल रहने के बाद भी भाजपा को कम अंक सीटें घटने के रूप में मिले तथा काफी पीछे रहने के बाद भी कांग्रेस ने अपनी स्थिति सुधारी ये बात राष्ट्रीय अध्यक्ष से छिपी नहीं रहेगी। जिन जगहों पर मुख्यमंत्री ने धुआंधार प्रचार किया उनमें से अधिकतर में भाजपा की पराजय की जानकारी भी उन्हें मिल गई होगी। शिव राज में म.प्र. में भ्रष्टाचार के पुष्पित-पल्लवित होने से भी वे बेखबर नहीं होंगे। कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को कितना भी छिपाया जावे किन्तु वह राष्ट्रीय अध्यक्ष को पता चले बिना नहीं रहेगा। ऐसा लगता है मुख्यमंत्री और उनके हनुमाननुमा प्रदेश अध्यक्ष को परीक्षा में बजाये प्रश्नों का सही उत्तर देने के अच्छी लिखावट और सफार्ई के लिये मिलने वाले अंकों की ज्यादा चिंता है। तभी राष्ट्रीय अध्यक्ष की शाही आवभगत के इंतजाम पर करोड़ों रुपये फूंक दिये गये। भले ही श्री चौहान का कोई विकल्प 2018 के लिये भाजपा के पास नहीं है परन्तु ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि उनकी विनम्रता, सरलता और सक्रियता के बावजूद भी अब वे पहले जैसा प्रभावित नहीं कर पा रहे। उनकी छवि को लेकर भी पहले जैसी बात नहीं रही। शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने पार्टी की मजबूती और अपनी नेतृत्व क्षमता के प्रमाण स्वरूप धन और दिखावे का सहारा लिया। देखना ये है कि श्री शाह इससे किस हद तक प्रभावित होते हैं क्योंकि उनकी कार्यशैली बताती है कि वे आसानी से चक्रव्यहू में नहीं फसने वाले।

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