Saturday 26 August 2017

पंचकूला:खट्टर सरकार की दूसरी नाकामी

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह उर्फ राम-रहीम को 15 वर्ष पूर्व अपने डेरे से जुड़ी साध्वियों के यौन शोषण का दोषी माने जाने का निर्णय आने के बाद हरियाणा के पंचकूला में जो उपद्रव शुरू हुआ उसकी आग देखते-देखते पूरे राज्य में तो फैली ही पड़ोसी पंजाब, उ.प्र., राजस्थान और दिल्ली में भी इसका प्रभाव देखा गया। टीवी चैनलों में समूचे घटनाक्रम का सीधा प्रसारण देखने के बाद साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति भी कह देगा कि ये हरियाणा सरकार की प्रशासनिक नाकामी का दुष्परिणाम था। रामरहीम के बारे में अदालती फैसला आने के एक दिन पहले ही पंचकूला में एक लाख से ज्यादा उनके समर्थक सड़कों पर डेरा जमाकर बैठ गये थे। हजारों लोगों के हाथ में लाठियां थीं। कई ने तो टीवी कैमरों पर खुलकर कहा कि फैसला बाबा के खिलाफ जाने पर वे ईंट से ईंट बजा देंगे। उधर उच्च न्यायालय ने राज्य के डीजीपी को इस बात पर लताड़ लगाई कि जब धारा 144 लगा दी गई तब पंचकूला में इतनी बड़ी संख्या में बाबा समर्थकों को जमा ही क्यों होने दिया गया? शायद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को लग रहा होगा कि 15 साल पुराने इस प्रकरण में बाबा बरी हो जाएगा और उसके बाद वहां एकत्रित जनसमूह जय-जयकार करते हुए लौट जाएगा परन्तु हुआ ठीक विपरीत। फैसला बाबा के विरुद्ध आते ही समर्थकों ने वही सब किया किया जिसकी आशंका सबको थी, सिवाय मुख्यमंत्री के। जो हुआ और जैसे हुआ वह दोहराने की जरूरत नहीं है क्योंकि पूरे देश और दुनिया ने सारा मामला टीवी पर देखा। जाट आन्दोलन में अपनी प्रशासनिक अक्षमता से हरियाणा को जलवा चुके मुख्यमंत्री खट्टर को उच्च न्यायालय के अलावा आईबी और केंद्र सरकार दोनों संभावित उपद्रवियों के प्रति आगाह करते रहे किन्तु वे न जाने किस आशावाद में बैठे थे। पुलिस तथा अर्धसैनिक बल तैनात भी किये तो वे इतने कम थे कि उपद्रवी उन्हें उल्टे पांव दौडऩे मजबूर कर देते थे। कई घंटों तक ऐसा लगता रहा मानो पंचकूला में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है। सबसे बड़ी बात ये रही कि खट्टर सरकार के एक भी मंत्री या भाजपा के विधायक ने पंचकूला में जमा हो चुके बाबा समर्थकों से संवाद कर उन्हें लौट जाने अथवा शांत रहने के लिये समझााईश नहीं दी और यदि दी भी हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा वरना हालात इस तरह बेकाबू नहीं होते। समूचे घटनाक्रम में टीवी चैनलों की भूमिका भी विवादों में घिर गई। परसों जामावड़े का सीधा प्रसारण करते हुए लोगों के साक्षत्कार दिखाना बुद्धिमत्ता नहीं थी। उसी तरह रामरहीम के सिरसा से पंचकूला तक के सफर को टीवी चैनलों ने जिस तरह कवरेज दिया वह भी चौंकाने वाला रहा क्योंकि उससे बाबा का महिमा मंडन ही हुआ तथा उनके समर्थकों का हौसला बुलंद होता गया। इसी तरह उपद्रव के बाद सारे चैनल अपने को सबसे तेज साबित करने के फेर में पूरे फसाद का सीधा प्रसारण करने में जुट गए जिसकी वजह से हरियाणा और पंजाब के बाकी शहरों तक में हिंसा भड़क उठी। बलवे के बाद नाराज उच्च न्यायालय ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए डेेरा सच्चा सौदा की पूरी संपत्ति जब्त कर उसकी बिक्री से कल हुए नुकसान की भरपाई करने का जो आदेश दिया वह एकदम सही एवं समयानुकूल था। यदि ये काम खट्टर सरकार ने किया होता तब वह अपने दामन पर लगे दागों को कुछ हल्का कर सकती थी किन्तु जैसा आरोप लग रहा है चुनावी समर्थन के बदले राम रहीम के प्रति नरम रवैया दिखाने के फेर में खट्टर सरकार और उनके साथ भाजपा ने जाट आन्दोलन के बाद एक बार फिर हरियाणा को ज्वालामुखी में धकेल दिया। मनोहर लाल खट्टर राजनीति के खिलाड़ी नहीं रहे। वे पृष्ठभूमि में रहकर संगठन का काम करते थे। हरियाणा में बहुमत आते ही जाट बहुल राज्य में उन्हें जब गद्दी पर बैठाया गया तभी ये आशंका व्यक्त की गई थी कि वे सफल नहीं हो पायेंगे। ये कहना भी गलत नहीं है कि खुद भाजपा के भीतर भी श्री खट्टर को सर्वमान्य नेता नहीं माना जाता। एक दो वरिष्ठ मंत्री तो सार्वजनिक रूप से उनके प्रति अपनी खुन्नस निकाल चुके हैं। ऐसे में मात्र रास्वसंघ से सीधा जुड़ाव और ईमानदारी के कारण उन्हें सिर पर लादे रहना कितना महंगा पड़ गया ये बताने की जरूरत नहीं रही। रामरहीम के पास चुनावी समर्थन मांगने कांग्रेस  भी जाती रही है। यही वजह है कि कल भी पार्टी की तरफ से बाबा के विरोध में कुछ नहीं कहा गया। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने तो एक टीवी चैनल की एंकर पर मामले को अनावश्यक महत्व दिये जाने पर खरी-खरी सुनाते हुए फोन तक बंद कर दिया लेकिन जितना भी गड़बड हुआ वह सीधे-सीधे भाजपा के खाते में चला गया। खास तौर से मनोहर लाल खट्टर की हिचकोले खाती हुई चल रही गाड़ी पूरी तरह खटारा साबित हो गई। बची-खुची कसर साक्षी महाराज सरीखे बड़बोले सांसद ने पूरी कर दी जो अदालती फैसले के विरुद्ध दुष्कर्मी रामरहीम से सहानुभूति व्यक्त कर बैठे। रामरहीम की गतिविधियों को लेकर कोई पहली मर्बबा बवाल नहीं मचा। साध्वियों के यौन शोषण के अलावा हत्या के दो मामलों में भी वे आरोपी हैं। जिनमें एक पत्रकार की थी। उनकी शाही जीवन शैली, बेशुमार धन-संपत्ति तथा खुद को अलौकिक शख्सियत के तौर पर पेश करने जैसी हरकतों को भाजपा की राज्य सरकार ने अब तक नजरंदाज क्यों किया ये प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ खड़ा हुआ है। हाल ही में राज्य के एक वरिष्ठ मंत्री ने बाबा को किसी आयोजन हेतु मोटी राशि बतौर सहायता दी थी। खैर, भाजपा ये सफाई दे सकती है कि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के पहले किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता परन्तु इस तोहमत से तो वह स्वयं को नहीं बचा सकती कि चुनाव जीतने के लिये वह अच्छे-बुरे का भेद नहीं करती। कहते हैं हरियाणा-पंजाब के कई जिलों में समाज के निचले वर्ग में डेरा सच्चा सौदा का काफी प्रभाव होने से राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिये बाबा के दरवाजे पर खड़ी रहती थीं। वे भी अपनी सुविधानुसार कभी इसको तो कभी उसको उपकृत करते रहते थे। कहा जा रहा है पिछले कुछ समय से वे भाजपा पर मेहरबान थे इसलिये कल जो कुछ भी हुआ उसका भांडा भाजपा पर ही फूटा जो स्वाभाविक था। सोमवार को बाबा की सजा तय होगी। उस दिन उसे अदालत लाने की बजाय वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अदालती कार्रवाई होगी। ऐसी ही बुद्धिमत्ता गत दिवस हरियाणा सरकार और प्रशासन दिखा देता तब पंचकूला में लाखों लोग एकत्र नहीं हुए होते। खट्टर मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं ये तो भाजपा हायकमान को तय करना है परन्तु वोटों के ठेकेदार बने बैठे स्वयंभू भगवान, माफिया सरगना तथा जाति के मुखिया को सिर पर बिठाने की संस्कृति को त्यागने के बारे में सभी पार्टियों को सामने आना चाहिए क्योंकि धर्म, समुदाय, गिरोह और जाति के वोटों पर कुंडली मारकर बैठे रामरहीम नुमा लोग एक दिन में ताकतवर नहीं होते। देश भर में सैकड़ों ऐसे फर्जी लोग हैं जो जनता, प्रशासन और शासन सभी को ठेंगे पर रखते हैं। पंचकूला की घटना के बाद भी यदि हमारे राजनेताओं को अक्ल नहीं आती तब ये मान लेना चाहिए कि वे वोटों की वासना में बुद्धि-विवेक दोनों गवां चुके हैं। रही बात भाजपा की तो उसे ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि सरकार बनाना ही काफी नहीं होता उसे चलाने के गुर भी आने चाहिए और ये भी कि किसी ना योग्य और ईमानदार सिपाही को सीधे उठाकर सेनापति बना देने से कितना नुकसान होता है ये हरियाणा में दो बार साबित हो चुका है।

-रवींद्र वाजपेयी

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