विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मौजूदा दौर के राजनेताओं में हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ वक्ता हैं। बतौर सांसद और मंत्री उनके कार्य और व्यवहार की विपक्षी भी प्रशंसा करते हैं। ललित मोदी विवाद छोड़ दें तो उन्हें घेरने का कोई अवसर विपक्ष को नहीं मिल सका। प. एशिया संकट में फंसे सैकड़ों भारतीयों को सुरक्षित निकालने में उन्होंने अपने कूटनीतिक कौशल के साथ ही निर्णय क्षमता का भी शानदार परिचय दिया। लंबे समय तक किडनी की समस्या से जूझने के बाद स्वस्थ होकर सुषमा जी ने जिस तरह शुरूवात की वह प्रभावित करने वाली है। गत दिवस राज्यसभा में विदेश नीति पर उनका भाषण बतौर वक्ता तो प्रभावशाली रहा ही किन्तु विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने सरकार की नीति को जिस तरह स्पष्ट किया वह अर्थपूर्ण था। विपक्षी सदस्यों ने खास तौर पर चीन के साथ चल रहे मौजूदा विवाद पर मोदी सरकार पर तीखे हमले किये थे। कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व मंत्री आनंद शर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि प्रधानमंत्री की 65 विदेश यात्राओं से देश को कोई फायदा नहीं हुआ। उनके बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर पहुंचकर नवाज शरीफ के पारिवारिक जलसे में शरीक होने पर भी तंज कसा गया। विपक्ष की तरफ से अधिकतर वरिष्ठ सांसदों ने सुषमा को अच्छा मंत्री बताते हुए ये कटाक्ष भी किया कि उनकी प्रतिभा का सही उपयोग नहीं किया जा रहा। प्रधानमंत्री अपनी छवि चमकाने में लगे रहते हैं इसलिये विदेश दौरों पर अपने साथ विदेश मंत्री को नहीं ले जाते। यहां तक आरोप लगाए गए कि विदेश नीति संबंधी फैसलों में विदेश मंत्री और उनके मंत्रालय को दरकिनार कर दिया जाता है। विदेश नीति चूंकि बेहद महत्वपूर्ण विषय होता है इसलिये आनंद शर्मा के अलावा शरद यादव, रामगोपाल यादव, सीताराम येचुरी तथा डैरेक ओ ब्रायन सरीखे वरिष्ठ विपक्षी सांसदों ने सरकार की चौतरफा घेराबंदी की किन्तु अपने लंबे जवाब में श्रीमती स्वराज ने सरकार का पक्ष तो मजबूती से रखा ही पिछली सरकार पर भी ये कहते हुए तीखा हमला किया कि उनके समय विदेश मंत्रालय पूरी तरह पंगु हो चला था तथा विदेश नीति विषयक अधिकतर फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा लिये जाते थे। सबसे तगड़ा हमला विदेशमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का नाम लेकर ये पूछते हुए किया कि वे विदेशी दौरों में कितनी मर्तबा सलमान खुर्शीद अथवा एस.एम. कृष्णा को लेकर गये थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्री के दौरे पर जाने की भी एक निश्चित प्रक्रिया तथा शिष्टाचार है। लेकिन इस सब बहसबाजी से ऊपर उठकर विदेश मंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति की जिस टिप्पणी पर विपक्ष ने हंगामा किया था, उस पर कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने जिस ऊंची आवाज में डोनाल्ड ट्रंप की बात का खंडन किया वह भारत की मजबूत होती वैश्विक स्थिति का परिचायक है। चीन के साथ डोकलाम विवाद पर श्रीमती स्वराज ने कूटनीतिक प्रयासों के साथ ही सेना की तैनाती संबंधी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि हमने कूटनीति एवं वाणी का संयम बनाए रखा है। युद्ध के बिना बातचीत से हल निकालने भारत तैयार है परन्तु दबाव के आगे झुकेगा नहीं। विदेश नीति को लेकर लंबे समय पश्चात संसद में इस तरह की बहस देखी गई जिससे शुरू-शुरू में विपक्ष के तीखे हमलों से सरकार रक्षात्मक होती नजर आई परन्तु आखिर में विदेश मंत्री ने न सिर्फ सत्ता पक्ष का बचाव किया अपितु अत्यंत चतुराई से विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने से भी नहीं चूकीं। व्यक्तिगत प्रशंसा से ऊपर उठकर भी ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि नरेंन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारतीय विदेश नीति में जबर्दस्त गतिशीलता आई है। प्रधानमंत्री के विदेश दौरों की विपक्ष कितनी भी आलोचना या खिल्ली उड़ाये किन्तु यह कहना सच को स्वीकार करना ही है कि श्री मोदी ने ताबड़तोड़ यात्राएं कर पूरी दुनिया में भारत के दबदबे को बढ़ाया है। बड़ी शक्तियों के साथ बराबरी के रिश्ते बनाने की उनकी शैली निश्चित रूप से बेजोड़ है। लेकिन प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी सफलता उन देशों के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते कायम करना रहा, जो पहले भारत के इतने करीब नहीं थे। व्यापारिक और सैन्य क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा करने में भी इस सरकार का योगदान उल्लेखनीय कहा जा सकता है। सुषमा स्वराज ने गत दिवस राज्यसभा में जिस अंदाज में सरकार का पक्ष प्रस्तुत किया उसके बाद विपक्ष के पास विदेश नीति को लेकर सरकार को घेरने का अवसर नहीं बचा। सबसे बड़ी बात ये रही कि विदेश मंत्री को प्रधानमंत्री के विरुद्ध भड़काने की राजनीतिक चाल को सुषमा ने बड़ी ही चतुराई से नाकाम कर दिया। बीते कई दशक बाद कोई विदेश मंत्री इतना सक्रिय और मुखर दिखाई दिया।
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