Wednesday 9 August 2017

अमित का न घटा हो पर अहमद का कद ऊंचा हो गया

राज्यसभा चुनाव में विधायकों की खरीद-फरोख्त कोई नई बात नहीं है। देश के नामी-गिरामी उद्योगपति राजनीतिक दलों के अतिरिक्त मतों के अलावा निर्दलीय एवं छोटे-छोटे दलों के विधायकों को जुगाड़ तकनीक के जरिये पटाकर उच्च सदन में आते रहे हैं। इनमें कुख्यात विजय माल्या से लेकर विख्यात राहुल बजाज तक हैं। यही नहीं तो राम जेठमलानी, आर.के. आनंद और कपिल सिब्बल जैसे दिग्गज अधिवक्ताओं ने भी राज्यसभा में आने हेतु तरह-तरह के धतकरम किये थे। अनिल अंबानी की ख्याति एक धन कुबेर के तौर पर ही है परन्तु डा. लोहिया की समाजवादी विरासत का दावा करने वाले मुलायम सिंह यादव ने उन्हें अपनी पार्टी की तरफ से राज्यसभा हेतु चुना। लेकिन उक्त सभी उदाहरण चुनाव जीतने के थे जबकि गुजरात में बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटैल को पॉचवीं मर्तबा उच्च सदन में आने से रोकने के लिये था। राष्ट्रपति चुनाव के पहले ही इसकी शुरूवात हो चुकी थी जब शंकर सिंह बाघेला की अगुवाई में कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोडऩा शुरू किया। पहले-पहल लगा कि विधानसभा के आगामी चुनाव के मद्देनजर ये खेल शुरू हुआ था किन्तु जल्द ही समझ आ गया कि सारी उठापटक अहमद पटैल को रोकने के लिये थी। इस अप्रत्याशित पैंतरे से घबराई कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को बेंगलुरू के एक फार्म हाऊस में भेज दिया जो कर्नाटक की कांग्रसी सरकार के एक मंत्री का है। इसके बाद की नाटकबाजी सभी को पता है। कल हुए मतदान के दो-तीन पहले ही विधायक गुजरात लाये गये परन्तु वहां भी कड़े पहरे में उन्हें रखा गया। कांग्रेस का आरोप था कि भाजपा 15 करोड़ रुपये में विधायकों की खरीद कर रही है। यद्यपि इसका कोई प्रमाण वह नहीं दे सकी। कल मतदान के दौरान कांग्रेस के दो विधायकों ने अपना मतपत्र पार्टी के पोलिंग एजेंट के अलावा कथित रूप से भाजपा के प्रतिनिधि को भी दिखा दिया। इस पर कांग्रेस ने आपत्ति व्यक्त करते हुए उन्हें रद्द करने की मांग कर डाली क्योंकि दोनों मत भाजपा के तीसरे उम्मीदवार को दिये गये थे। बात बढ़ते-बढ़ते चुनाव आयोग तक जा पहुंची जिसने फैसला कांग्रेस के हक में दिया। रात्रि करीब 2 बजे मतगणना के बाद श्री पटैल 44 मतों के साथ जीते घोषित कर दिये गये। उन्हें जद (यू) तथा एनसीपी के अलावा गुजरात परिवर्तन पार्टी के एक-एक विधायक का मत भी मिल गया जिससे उनकी नैया पार हो गई। नतीजे के बाद साफ तौर पर ये कहा जा रहा है कि ये श्री पटैल की जीत से अधिक अमित शाह की पराजय है। राजनीतिक क्षेत्रों में ये बात काफी तेजी से प्रचारित हुई कि अमित शाह को जेल भिजवाने तथा गुजरात से बाहर रहने के अदालती फरमान की रूपरेखा चूंकि अहमद पटैल द्वारा रचित थी अत: श्री शाह उन्हें राज्यसभा में जाने से रोककर उसका बदला लेना चाहते थे लेकिन तमाम व्यूह रचना के बाद भी वे उसमें सफल नहीं रहे। कुछ लोग कह रहे हैं कि दो कांग्रेस विधायकों द्वारा क्रास वोटिंग के बाद मतपत्र भाजपा नेता को दिखाने के पीछे भी कांग्रेस की रणनीति ही रही जिससे श्री पटैल की जीत सुनिश्चित हो सके। सच्चाई तो वे विधायक ही जानते होंगे परन्तु इस बेहद चर्चित चुनाव ने एक बार फिर विधायकों के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा दिये। कांग्रेस में विघटन की शुरुवात होने के बाद 44 विधायकों को बेंगलुरू के फार्म हाऊस में छिपाकर रखने के पीछे पार्टी की यही आशंका थी कि उनमें से कोई खिसक न जाए। फिर भी अंतिम समय में दो विधायकों ने निष्ठा बदल ही दी। इसी तरह जनता दल (यू) के इकलौते विधायक ने पार्टी अध्यक्ष नीतिश कुमार के निर्देश की अवहेलना करते हुए श्री पटैल को मत दिया। ऐसे में ये भी माना जा सकता है कि कांग्रेस ने भी जद (यू) विधायक को खरीदा था। यद्यपि अहमद पटैल ने चुनाव जीत लिया किंतु भाजपा इसे लेकर अदालत जाये बिना नहीं रहेगी क्योंकि जिस सीडी को देखकर चुनाव आयोग ने कांग्रेस के दो विधायकों के मत रद्द किये उस पर भाजपा ने सवाल उठा दिये हैं। अदालत में क्या होगा ये कह पाना तो कठिन है किन्तु राज्यसभा चुनाव एक बार फिर मजाक बन कर रह गये। सतही तौर पर ये लगता है कि भाजपा ने कांग्रेस के भीतर सेंध लगाने हेतु साम-दाम, दंड-भेद रूपी सारे तरीके अपनाए वहीं इस हकीकत को भी स्वीकार करना पड़ेगा कि कांग्रेस के अपने विधायक भी पार्टी के प्रति निष्ठावान नहीं रहे। शंकर सिंह वाघेला के साथ दर्जन भर विधायकों का कांग्रेस से बाहर निकल आना इस बात का प्रमाण है कि उनकी आस्था नीति या सिद्धान्तों की बजाय व्यक्ति में थी। कांग्रेस के लिये भी ये चिंता का विषय होना चाहिए कि 57 विधायकों के होते हुए भी उसे अहमद पटैल को जिताने के लिये नाकों चने चबाने पड़ गये। चुनाव आयोग ने जो निर्णय दिया उसमें कांगे्रस को लोकतंत्र की विजय नजर आने लगी। यदि फैसला विपरीत होता तब सारी तोपें आयोग की तरफ घुमा दी जातीं। रही बात नैतिकता की तो भले ही कांग्रेस नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को चाहे जितना कठघरे में खड़ा करे किन्तु अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को गिराने हेतु उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग को मतदान हेतु लिये ये लोकसभा में लाना क्या था? उल्लेखनीय है उस समय तक उन्होंने लोकसभा से स्तीफा नहीं दिया था? कांग्रेस के ये आत्मावलोकन का समय है। जयराम रमेश की ताजा टिप्पणी पर यदि उसने ध्यान नहीं दिया तो फिर उसका बुरा दौर जारी रहेगा। रही बात श्री पटैल के जीतने का प्रभाव गुजरात विधानसभा चुनाव पडऩे की तो उसे खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि श्री वाघेला के पलायन के बाद अहमद पटैल ही एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें बतौर मुख्यमंत्री वह पेश कर सकती है और उनका चेहरा सामने आते ही भाजपा को मुंह मांगी मुराद मिल जाएगी। राजनीति के जानकार अच्छी तरह समझते हैं। इस सबके बावजूद भी ये मान लेने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि भले ही भाजपा में अमित शाह के रौब-रूतबे में कोई कमी न  आए किन्तु कांग्रेस के भीतर श्री पटैल अपनी कॉलर और ऊंची करते हुए चल सकेंगे।

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