Monday 14 August 2017

निकम्मे नौकरशाहों से मुक्ति अच्छा कदम

केन्द्र सरकार ने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के कार्य और क्षमता का आकलन करते हुए उन्हें अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने का जो निर्णय लिया उसकी बानगी स्वरूप म.प्र. और छत्तीसगढ़ के तीन आईएएस अधिकारी हटा दिये गये। उन पर अनियमितताओं के आरोप भी थे। हाल ही में प्रधानमंत्री ने संकेत दिया था कि काले धन सहित भ्रष्टाचार के मामलों में डूबे सरकारी अफसरों पर भी नजर रखी जा रही है तथा समय आने पर उनके विरुद्ध समुचित कार्रवाई की जावेगी। अन्य राज्यों के अधिकारियों पर भी ऐसी ही गाज गिरी होगी या गिरने वाली होगी। हमारे देश में सरकारी नौकरी करने वालों को सरकारी दामाद तक कह दिया जाता है। एक बार जो लगे तो आराम से 30-35 साल तक आर्थिक सुरक्षा की गारंटी हो जाती है, वहीं सेवा निवृत्ति पर अच्छी खासी रकम के बाद जीवन पर्यंत पेंशन का लाभ भी मिलता है। पेंशनभोगी की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी या पति को आधी पेंशन का प्रावधान भी है। केन्द्र सरकार के कर्मचारी एवं अधिकारियों को सेवा से निवृत्त होने के बाद सीजीएचएस योजना के तहत मुफ्त इलाज एवं दवाएं मिलती हैं। लोक कल्याणकारी शासन व्यवस्था में ऐसी सुविधाएं पूरी तरह जरूरी और जायज कही जाएंगी किन्तु ये सब उन करदााताअें की जेब से हो पाता है जिन्हें हर सुविधा के लिये अंटी ढीली करनी पड़ती है। यहां तक भी ठीक है किन्तु मोटी तन्ख्वाह एवं अन्य सुविधाओं के बाद भी कार्य की गुणवत्ता तथा समयबद्धता सरकारी दफ्तरों में देखने नहीं मिलती। लिपिक तथा भृत्य यदि ठीक से काम न करे तो समझा जा सकता है किंतु अधिकारी और वह भी आईएएस रूपी काले अंग्रेज जब काम के प्रति लापरवाह रहते हैं तथा मुंह से पैसा उठाने की हद तक गिर जाते हैं तब केवल अफसोस ही नहीं अपितु गुस्सा एवं घृणा का भाव भाव मन में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाता है। आज के परिदृश्य पर नजर डालें तो ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों तथा सत्ता में बैठे राजनेताओं के गठजोड़ ने पूरे तंत्र को बेईमान बना दिया है। नेताओं के गलत-सलत काम करने के बाद प्रशासनिक अधिकारी को दोनों हाथों से लूटने की अघोषित छूट मिल जाती है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस नब्ज पर हाथ रखने की जुर्रत कर काफी व्यवहारिक सोच का परिचय दिया है। जिस तरह एक सड़ा फल टोकरी में रखे सभी फलों को सड़ा देता है ठीक वैसे ही प्रशासनिक अमले में मौजूद भ्रष्ट और अकर्मण्य अधिकारी पूरी व्यवस्था को विकृत कर देते हैं। ये मुहिम महज रस्म अदायगी बनकर न रह जाए ये देखना होगा वरना हमारे देश में ऐसे पराक्रम क्षणजीवी ही साबित होते रहे हैं। नरेन्द्र मोदी धुन के पक्के हैं तथा आसानी से दबाव में नहीं आते इसलिये निकम्मे नौकरशाहों की छंटनी की ये मुहिम जारी रहने की उम्मीद की जा सकती है। यदि इसमें पक्षपात तथा ज्यादती न हुई तो इसके अच्छे परिणाम आ सकते हैं क्योंकि हमारे देश में सत्ता तो बदलती रहती है किन्तु व्यवस्था वही चली आ रही है जिसके कारण लोक तंत्र के प्रति वितृष्णा बढ़ती जा रही है।

-रवींद्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment