Monday 13 August 2018

सोमनाथ चटर्जी : एक सच्चे वामपंथी का अवसान

पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का निधन हो गया । 89 वर्ष के सोमनाथ दा 1971 से 2009 तक हुए चुनावों में केवल 1984 को छोड़कर कई मर्तबा लोकसभा के लिए चुने गए थे । 1984 में वे ममता बैनर्जी से हार गए थे । 2004 में वामपंथी समर्थन से  यूपीए सरकार बनने पर वे लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए थे किंतु परमाणु संधि पर मतभेदों के चलते जब उनकी पार्टी सीपीएम ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापिस लेकर श्री चटर्जी से लोकसभा अध्यक्ष का पद छोडऩे कहा तब वे ऐंठ गए जिसका परिणाम उन्हें पार्टी से निकाले जाने के तौर पर सामने आया किन्तु उससे सोमनाथ दा की वामपंथी विचारधारा में आस्था लेशमात्र नहीं घटी । हिंदू महासभाई पिता का पुत्र होने के बाद भी इंग्लैंड में कानून की शिक्षा के दौरान ही वे माक्र्स के विचारों से प्रभावित होकर साम्यवादी बन बैठे । सोमनाथ दा एक अच्छे वकील भी थे । कानून की उनकी समझ का ही उदाहरण था कि बतौर लोकसभाध्यक्ष एक मर्तबा उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के सम्मन को भी ठुकरा दिया तथा लोकसभाध्यक्ष की स्वतंत्र हैसियत को लेकर  कानून के जानकारों के बीच एक बहस भी चलवा दी । वामपंथ में  अपनी दृढ़ आस्था के बावजूद श्री चटर्जी एक सुलझे हुए व्यक्ति थे । यही वजह थी कि उनका सम्मान दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर था । लोकसभा में उनके भाषण सदैव गंभीरता और तथ्यों से भरे होते थे ।  बतौर अध्यक्ष उन्होंने सदन का संचालन जिस कुशलता से किया वह उनके व्यक्तित्व की वजनदारी का प्रमाण था । बीते कुछ वर्षों में वे सक्रिय राजनीति से सर्वथा दूर रहे । उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में वामपंथ का चर्मोत्कर्ष भी देखा और जाते - जाते उसका पतन भी देख गए । ये बात पूरी तरह सही है कि सोमनाथ दा को राजनीति में जितना मिला वे उससे कहीं ज्यादा के हकदार थे । जिस तरह 1996 में ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोककर हरिकिशन सिंह सुरजीत  ने हिमालयी भूल की वैसी ही गलती सीपीएम के अपरिपक्व नेताओं ने श्री चटर्जी को पार्टी से निकालकर दोहराई । केंद्रीय राजनीति में सोमनाथ दा वामपंथ के सबसे बड़े प्रतीक थे । उनके न रहने से देश ने एक ऐसा ईमानदार नेता खो दिया जिसने अपनी विचारधारा को सदैव सर्वोपरि समझा और सिद्धांतों से कभी भी समझौता नहीं किया । लोकसभा में उनके भाषण भावी सांसदों के लिए मूल्यवान दस्तावेज हैं । वामपंथ का प्रभाव बंगाल में खत्म होने के कारण सोमनाथ चटर्जी भले ही चर्चा से दूर चले गए हों किन्तु वामपंथ को स्थापित कर उसे ऊंचाई तक ले जाने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा । ये कहना गलत नहीं होगा कि बंगाल में वाममोर्चे के पतन के पीछे श्री चटर्जी जैसे समर्पित नेता की उपेक्षा भी एक प्रमुख कारण बन गया । विनम्र श्रद्धांजलि ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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